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कृषि वैज्ञानिक ने किसानों को बांटे धान के बीज

काशी हिदू विश्वविद्यालय वाराणसी से सोमवार को कुसम्ही कलां में खरीफ विषय पर एक किसान गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस दौरान अनुसूचित जाति के किसानों को धान के बीज बांटे गए।

जासं, नंदगंज : काशी हिदू विश्वविद्यालय वाराणसी से सोमवार को कुसम्ही कलां में खरीफ विषय पर एक किसान गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस दौरान अनुसूचित जाति के किसानों को धान के बीज बांटे गए। कार्यक्रम में उद्यान विभाग कृषि विभाग संस्थान के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर डा. यूपी सिंह ने आज के वर्तमान परिवेश में धान की खेती की बढ़ती लागत को कैसे कम करें, लगातार हो रहे मिश्रण को कैसे संरक्षित कर करें और मानसून परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के तरीके बताए। वैज्ञानिक पद्धति से संरक्षित खेती करने को बढ़ावा देने पर विशेष बल दिया।

किसानों को बांटे धान के बीज

उन्होंने खेती में कम जोताई कर फसल अवशेष प्रबंधन करने व धान की सीधी बोआई करने के बारे में जानकारी दी और बाढ़ व सूखा के प्रति सहनशील धान की प्रजातियां व पोषक तत्वों से भरपूर चावल वाली प्रजातियों के बारे में बताया। डीआरआर 50, डीआरआर 44, बीना 11, सांबा आदि धान के बीज का अनुसूचित जाति के किसानों को निश्शुल्क वितरण किया गया। राम किशन बिद, अवधेश राम, जगधारी राम, गुलाब राम श्रीराम गौतम आदि लोग उपस्थित थे।

BHU के कृषि वैज्ञानिकों ने खोजा चावल की नई प्रजाति

वाराणसी. धान की नई प्रजाति एचयूआर-917 (मालवीय सुगंधित धान-917) काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के कृषि विज्ञान संस्थान में साल 2008-09 में विकसित की गई थी। साल 2009-12 तक इसका परीक्षण अखिल भारतीय समन्वित चावल सुधार परियोजना और स्टेट वरायटल ट्रॉयल में किया गया। लगातार चार साल परीक्षण के बाद दिसंबर, 2014 में इसको यूपी सरकार ने विमोचित किया गया और 12 अक्टूबर, 2015 को भारत सरकार द्वारा किसानों के खेती करने के लिए इसे अधिसूचित कर दिया गया है।

इस प्रजाति की खासियत यह है कि यह अन्य स्थानीय सुगंधित प्रजातियों की तुलना में अधिक उत्पादन (55-60 कुंतल/हेक्टेयर) देने वाली छोटे दाने की चावल की सुगंधित प्रजाति है। यह प्रजाति 140-145 दिनों में पक के तैयार हो जाती है। इसके पौधों की लंबाई 100-110 सेमी होता है, जिससे यह काफी मजबूत और सीधे खड़े रहते हैं। यह तेज आंधी-तुफान में भी गिरते नहीं है, जबकि स्थानीय सुगंधित छोटे दाने वाली प्रजातियों के पौधों की लंबाई 160 सेमी होती है। इससे वे अक्टूबर के महीनों में चलने वाले तेज हवाओं में गिर जाते हैं, जिसकी वजह से पैदावार कम होती है।

इन लोगों ने किया विकसित

इस प्रजाति को प्रो. रवि प्रताप सिंह, निदेशक, कृषि विज्ञान संस्थान और प्रो. एच.के. जायसवाल, आनुवंशिकी और पादप प्रजनन विभाग, कृषि विज्ञान संस्थान के ने मदन कुमार के सहयोग से विकसित किया है।

चावल की बेहतर प्रजाति

प्रो. रवि प्रताप सिंह ने बताया कि इस प्रजाति का चावल खाने में स्वादिष्ट, मीठा और सुगंधित होता है। इसे किसी भी तरह से (सीधी बुआई/रोपाई) बोया जा सकता है। इसके चावल विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए जा सकते हैं। इस ग्रुप की सभी प्रजातियों की उपज 30-35 कुंटल/हेक्टेयर से अधिक नहीं होती है। ये 160-165 दिनों में तैयार होती हैं, जबकि यह प्रजाति 145 दिनों के अंदर तैयार हो जाती है। यह धान और गेहूं के फसल चक्र के लिए बहुत अच्छी है। इस प्रजाति को लगाकर किसान इसके चावल को 40-45 रु/किग्रा की दर से इसे आसानी से बेच कर पैसा कमा सकता है।

FAQ अनुसूचित जाति के किसानों को बांटे धान के बीज

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना क्या हैं ?

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों की फसलों से जुड़े हुए जोखिमों की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई करने का माध्यम है। इससे किसानों को अचानक आए जोखिम या प्रतिकूल मौसम की वजह से फसलों को हुए नुकसान की भरपाई की जाती है।

फसल बीमा के लिए कृषक द्वारा देय प्रीमियम दर क्या हैं?

खरीफ मौसम के लिए 2 प्रतिशत, रबी मौसम हेतु 1.5 प्रतिशत, व्यावसायिक और बागवानी फसलों हेतु बीमित राशि का 5 प्रतिशत।

फसल बीमा कौन करवा सकता हैं ?

ऋणी एवं गैर ऋणी किसान अधिसूचित क्षेत्र में अधिसूचित की गई फसलों के बीमा का लाभ उठा सकते हैं। ऋणी किसानों एवं गैर ऋणी किसानों के लिए यह योजना स्वैच्छिक है। यदि कोई ऋणी कृषक प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत लाभ नहीं लेना चाहता है तो उन्हें बैंक द्वारा उपलब्ध कराये गए निर्धारित प्रपत्र में लिखित में यह आवेदन करना होगा कि उसे खरीफ 2020 के लिए फसल बीमा से पृथक रखा जाये। जिसके आवेदन की अन्तिम तिथि 8 जुलाई, 2020 है।

तिलहनी फसलों पर किस योजना में अनुदान दिया जा रहा है ?

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन&तिलहन के अन्तर्गत मूंगफली] सोयाबीन] तिल] अरण्डी] सरसों व अलसी की फसलों पर आयोजित होने वाले फसल प्रदर्शनों पर कुल लागत के 50 प्रतिशत अनुदान (फसलवार निर्धारित सीमा तक) पर कृषि आदान उपलब्ध करवाए जाते है।

क्या नीम] जोजोबा व जैतून के पौध रोपण के लिए अनुदान देय है ?

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन&वृक्ष जनित तिलहन के अन्तर्गत नीम] जोजोबा व जैतून के पौध रोपण के लिए फसलवार तथा फसल की आयुवार अलग-अलग अनुदान देय है।

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