WhatsApp Channel Join Now
Telegram Group Join Now

अन्तर्राष्ट्रीय विकास परिषद् (International Development Association)

अन्तर्राष्ट्रीय विकास परिषद् (International Development Association)

अन्तर्राष्ट्रीय विकास परिषद् अथवा संघ, विश्व बैंक से संबद्ध संस्था है जो 1960 में स्थापित की गई थी। कानूनी और वित्तीय तौर से यह संस्था विश्व बैंक से अलग है परन्तु वास्तव में यह विश्व बैंक की सहयोगी संस्था है। विश्व बैंक का अध्यक्ष ही इसका अध्यक्ष होता है।
इस परिषद् के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं:-

1. विश्व के दरिद्रतम देशों को गरीबी हटाने के लिए सहायता प्रदान करना।
2. आर्थिक विकास के लिए ऐसे देशों को रियायती सहायता देना जिससे लोगों का जीवन-स्तर ऊंचा हो। इनका संबंध जनसंख्या नियंत्रण, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, पोषण आहार आदि से है।

अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम (International Finance Corporation) :- अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम विश्व बैंक से संबद्ध एक अन्य संस्था है जो जुलाई, 1956 में प्रारंभ की गई थी। इसके स्थापित करने के दो मुख्य कारण थे: प्रथम, विश्व बैंक केवल एक सदस्य देश की सरकार को अथवा उसकी गारंटी पर ऋण देता है। यह निजी क्षेत्र को बिना उस देश की सरकार की गारंटी के ऋण नहीं देता है। द्वितीय, विश्व बैंक ईक्विटी अथवा उद्यम (जोखिम) पूंजी निजी क्षेत्र को प्रदान नही करता है। यह केवल परोक्ष रूप में विकास वित्त कंपनियों के माध्यम से निजी क्षेत्र को वित्तीय आवश्यकताएं पूरी करता है। अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय निगम इन दोनों कमियों को दूर करने हेतु विश्व बैंक की संबद्ध संस्था के रूप में स्थापित किया गया।

संगठन (Organization)

आई. एफ. सी., विश्व बैंक से भिन्न परन्तु इसकी सहायक संस्था है। इसका अपना स्टाॅफ है परन्तु प्रशासकीय सेवाओं के लिए यह विश्व बैंक से सहायता लेता है। इसका संगठनात्मक ढांचा है जिसमें एक अध्यक्ष, एक सभापति, शासक मंडल और अधिशासी निदेशक, विश्व बैंक के ढांचे के अनुसार हैं। विश्व बैंक का अध्यक्ष ही इस निगम का अध्यक्ष होता है परन्तु निगम की सभी प्रशासकीय शक्तियां उपाध्यक्ष में केन्द्रित होती हैं। निगम के आठ विभाग हैं, जिनमें से चार निवेश से संबद्ध हैं जो भौगोलिक आधार पर कार्य करते हैं बाकी के चार विभाग पूंजी मार्केटों, वित्त और प्रबंधन कानूनी विषयों और इंजीनियरिंग से संबंधित है जो कार्यात्मक आधार पर परिचालन करते हैं।

उद्देश्य (Objectives) :- आई.एफ.सी. के मुख्य उद्देश्य समझौते के अनुच्छेदों में धारा 1 में वर्णन किए गए हैं, जो निम्न हैं:
निगम का उद्देश्य देशों, विशेषकर कम विकसित क्षेत्रों, में उत्पादकीय निजी उपक्रम की वृद्धि को प्रोत्साहित करके आर्थिक विकास की गति को बढ़ाना है। इस प्रकार, विश्व बैंक के कार्यों का पूरक बनना है। निगम के निम्न उद्देश्य हैं:

1. निगम का निजी निवेशकों के साथ मिलकर उत्पादकीय निजी उपक्रम की स्थापना, सुधार और प्रसार के वित्त-प्रबंधन में सहायता करना है। इसके लिए इसका उद्देश्य सदस्य देश की सरकार की पुनर्भुगतान की गारंटी के बिना उस देश में निवेश करना है।

2. घरेलू और विदेशी निजी पूँजी के निवेश सुअवसरों तथा अनुभवी प्रबंधन को इकट्ठा करना है।

3. सदस्य देशों में घरेलू और विदेशी पूंजी उत्पादकीय निवेश में प्रवाहित करने के लिए प्रोत्साहन देना और उसके लिए स्थितियां निर्मित करने में प्रेरक होना है।

बहुपक्षीय निवेश गारंटी (Multilateral Investment Guarantee Agency) 

बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (मिगा) विश्व बैंक ग्रुप की नवीनतम संबद्ध संस्था है जो अप्रैल, 1988 में स्थापित हुई। यह अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम के साथ संयुक्त उपक्रम है।
उद्देश्य (Objectives) :- मिगा के मुख्य उद्देश्य निम्न हैं:
1. इसका प्राथमिक उद्देश्य सदस्य विकासशील देशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रवाह को प्रोत्साहित करना है।
2. अपने गारंटी प्रोग्राम के द्वारा यह राजनीतिक जोखिम दूर करने के लिए निवेश बीमा प्रदान करती है।
3. मिगा गारंटी प्रोग्राम निवेशकों को चार प्रकार की गैर-व्यावसायिक जोखिमों से उत्पन्न होने वाली हानियों के विरूद्ध बीमा सुरक्षा प्रदान करता है। ये जोखिम-करेंसी हस्तांतरण, स्वामित्वहरण युद्ध और नागरिक गड़बड़ी, और सरकारों द्वारा ठेका-भंग से संबद्ध है।
4. मिगा केवल नए निवेशों का बीमा कर सकता है जिसमें वर्तमान निवेशों का प्रसार, निजीकरण और वित्तीय पुर्नसंरचना करना शामिल है।
5. यह विकासशील देशों की सरकारों को प्रोत्साहन और परामर्श देने वाली सेवाएं भी प्रदान करती है ताकि उनके निवेश वातावरण का आकर्षण बढ़ाया जा सके।

ICSID :-

विश्व बैंक ने राष्ट्रों के नागरिकों के निवेश संबंधी झगड़े सुलझाने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय केन्द्र की स्थापना की है, जिसका नाम ’निवेश विवादों को सुलझाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय केन्द्र (ICSID International Center of Settlement of Investment Disputes) है। इसकी स्थापना 1966 में की गई थी। इस केन्द्र ने बहुत से अंतर्राष्ट्रीय निवेश झगड़े सुलझाने में, यथा भारत-पाकिस्तान के बीच नदी जल विवाद, मिस्र और इंग्लैंड में स्वेज नहर का विवाद, आदि के मामले में सफलतापूर्वक मध्यस्थता की थी।

अन्तर्राष्ट्रीय तरलता (International Liquidity)

अन्तर्राष्ट्रीय तरलता, एक देश के भुगतान-शेष घाटे को ठीक करने के लिए उसके केन्द्रीय बैंक द्वारा रखे गए अन्तर्राष्ट्रीय तौर से स्वीकार्य परिसम्पत्तियों के समस्त भण्डार हैं। दूसरे शब्दों में, अन्तर्राष्ट्रीय तरलता, बिना समायोजन नीतियां अपनाए, एक देश को अपने भुगतान-शेष के घाटे की वित्त व्यवस्था करने की क्षमता प्रदान करती है। अन्तर्राष्ट्रीय तरलता शब्द सामान्य तौर से अन्तर्राष्ट्रीय आरक्षणों (रिजर्व) के पर्यायवाची के रूप में प्रयोग होता है। ऐसे आरक्षणों में एक देश के अधिकृत स्वर्ण भण्डार, विनिमय, विदेशी करेन्सियों तथा SDR के धारण और प्डथ् में इसकी निवल स्थिति शामिल होते हैं हैलर और मैककिलोन जैसे अर्थशास्त्री अन्तर्राष्ट्रीय तरलता की विस्तृत परिभाषा में एक देश के आरक्षणों में अनतर्राष्ट्रीय उधार ग्रहण, व्यापारिक साख प्रचालन तथा अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय मार्किटों में कार्य कर रही वित्तीय संस्थाओं से प्राप्त करने की संभावना। अतः विस्तृत रूप में अन्तर्राष्ट्रीय तरलता में अन्तर्राष्ट्रीय तरल परिसम्पत्तियों के निजी और अधिकृत (Official)धारणा शामिल हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय तरलता में उन तत्वों को भी सम्मिलित किया जाता है जिनका सरलतापूर्वक सांख्यकीय मापन न किया जा सके जैसे, अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक बाजारों में देश के ऋण लेने की क्षमता अथवा यदि देश आरक्षित मुद्रा केन्द्र (Reserve Currency Center) हो तो अन्य देशों की उसकी मुद्रा को एकत्रित करने की इच्छा। वर्तमान समय में अन्तर्राष्ट्रीय तरलता के संबंध में अन्तर्राष्ट्रीय पूँजी बाजारों की भूमिका में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली तेल निर्यातक देशों (OPEC) के अतिरिक्त कोष को भुगतान शेष में घाटा वाले देशों की ओर प्रवाहित करने में सक्रिय भूमिका निभा रही है।

Share

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *