अन्तर्राष्ट्रीय ऋण समस्या (International Debt Problem)

अन्तर्राष्ट्रीय ऋण समस्या (International Debt Problem)

अल्पविकसित देशों की विदेशी ऋण की समस्या बहुत गंभीर है क्योंकि वे अपनी विकास की समस्याओं के वित्त प्रबंधन हेतु पूंजी के विदेशों से अंतर्वाह पर निर्भर करते हैं। अल्पविकसित देश गरीब होने के कारण उनकी घरेलू बचत तथा निवेश की दरें कम होती हैं। उनमें आर्थिक तथा सामाजिक उपरि-पुंजी तथा आधारभूत और मूल उद्योगों का अत्यंत अभाव है। आर्थिक विकास की दर को तीव्र करने के लिए वे पुंजी पदार्थ, उपकरण, कच्चे माल तथा तकनीकी जानकारी के आयात के लिए उधार लेते हैं। इसके अतिरिक्त वे अपनी बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपभोक्ता वस्तुओं के वित्त प्रबंधन के लिए भी उधार लेते हैं। क्योंकि उनके निर्यात कुछ प्राथमिक वस्तुओं तक सीमित होते हैं इसलिए वे अपने घरेलू संसाधनों की पूरकता और वृद्धि के लिए उधार लेते हैं। इनसे चालू लेखा भुगतान-शेष घाटे के वित्त प्रबंधन के लिए अल्पविकसित देश विदेशों में बांड बेचकर, विदेशी व्यापारिक बैंकों, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं जैसे विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) आदि तथा निजी विदेशी फर्मों से उधार लेते हैं। इस प्रकार के सभी मामलों में देश बाह्य ऋण का संचय करता है जिसका भविष्य में मूल और ब्याज के रूप में भुगतान करना होता है।

प्रशुल्क एवं व्यापार सम्बन्धी सामान्य करार (गैट) (General Agreement on Tariffs and Trade-GATT)

प्रशुल्क एवं व्यापार सम्बन्धी सामान्य करार (गैट) हवाना चार्टर की राख से विकसित हुआ। विश्व में 1930 के दशक और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान व्यापार की व्यापक पद्धति को कड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा था। अतः सम्बद्ध शक्तियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् उदार विश्व व्यापार व्यवस्था अपनाने की सोची। इस उद्देश्य के लिए हवाना में 1947-48 के शीतकाल में व्यापार और रोजगार का अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया। 53 देशों ने इस सम्मेलन में भाग लिया और एक अन्र्राष्ट्रीय व्यापार संगठन का गठन करने के लिए एक चार्टर पर हस्ताक्षर किये। परन्तु अमरीकी कांग्रेस ने हवाना चार्टर का कभी समर्थन नहीं किया जिसके परिणामस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन गठित नहीं किया जा सका। इसके साथ-साथ 23 देश जेनेवा में व्यापार-रियायतों के लिए व्यापक टैरिफ बातचीत जारी रखने के लिए सहमत हो गए जिनहें गैट में शामिल किया गया। इस करार पर 30 अक्टूबर, 1947 को हस्ताक्षर किये गए और जब अन्य देशों ने भी इस पर हस्ताक्षर कर दिए थे तो 1 जनवरी, 1948 को यह लागू हुआ। 1 जनवरी 1995 को गैट समापत हो गया और विश्व व्यापार संगठन में शामिल कर दिया गया।

गैट एक बहुपक्षीय संधि थी जिस पर 96 देशों ने हस्ताक्षर किए थे, 31 अन्य देशों ने गैट नियम अपनाए थे। गेट न तो कोई संगठन था और न ही न्यायालय। यह सामान्यतः एक बहुराष्ट्रीय संधि थी जो विश्व-व्यापार का 80 प्रतिशत पूरा करती थी। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के आचार नियमों की एक संहिता वाली और व्यापार उदारीकरण की कार्यप्रणालीयुक्त यह एक निर्णय लेने वाली संस्था थी। यह एक मंच थी जहां अनुबन्ध करने वाले विभिन्न देश अपनी व्यापार समस्याओं पर बातचीत करने और उनका हल ढूढ़ने तथा अपने व्यापार को बढ़ाने को सम्भावनाओं पर वार्ता करने के लिए समय पर एकत्र होते थे। गैट के नियमों में व्यापार सम्बन्धी विवादों का निपटान करने, व्यापार दायित्वों का त्याग करने और यहां तक कि प्रतिशोधात्मक उपायों को अपनाने की व्यवस्था थी।
गैट एक स्थायी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन था जिसके प्रतिनिधियों की स्थायी परिषद् का मुख्यालय जेनेवा में था। इसका कार्य बहुपक्षीय आधार पर व्यापार उदारीकरण के बारे में अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करना था।

गैट के उद्देश्य (Objectives of Gatt)

गैट के उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार आचार-संहिता में उल्लिखित कुछ मौलिक सिद्धान्तों पर आधारित थे:
1. परममित्र राष्ट्र (एम. एफ. एन.) सिद्धान्त का बिना शर्त अनुसरण करना।
2. व्यापार को बिना किसी भेदभाव, आदान-प्रदान और निष्कपट होकर करना।
3. घरेलू उद्योगों को केवल टैरिफ के जरिए ही संरक्षण देना।
4. बहुपक्षीय वार्ताओं के जरिए टैरिफ और गैर-टैरिफ उपायों को उदार बनाना।
इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए, करार में यह व्यवस्था की गई है: (क) बहुपक्षीय व्यापार-वार्ताएं, (ख) विवादों पर परामर्श, सुलह-सफाई और निपटान, तथा (ग) अपवादात्मक मामलों में छूट-की अनुमति।

उदार विश्व व्यापार व्यवस्था स्थापित करने का अन्तिम उद्देश्य जीवन-स्तर में सुधार करना, निरन्तर बढ़ती हुई प्रभावशाली मांग और वास्तविक मांग के जरिए पूर्ण रोजगार सुनिश्चित करना, विश्व के संसाधनों का पूर्णतया विकास तथा विश्व-स्तर पर उत्पादन और वस्तुओं के विनिमय को बढ़ाना था।

विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation)

उरुग्वे दौरे के गैट विचार-विमर्श 15 अप्रैल, 1994 को माराकेश (मोरक्को) में समाप्त हो गए। यूरोपीय संघ देशों के अतिरिक्त भारत तथा 123 देशों के मंत्रियों ने अंतिम एक्ट पर हस्ताक्षर किए जिसमें बहुपक्षीय व्यापार विमर्शों का आठवां दौर शामिल था। अंतिम एक्ट में (1) WTO समझौता, जिसमें इस संस्था का जन्म और उसकी काय-प्रणाली के नियम, और (2) मंत्रिस्तरीय निर्णय और घोषणाएं-जिसमें महत्वपूर्ण समझौते, वस्तुओं, सेवाओं और बौद्धिक सम्पत्ति में व्यापार तथा बहुपाश्र्विक Trilateral व्यापार सम्मिलित है। उसमें झगड़ा निपटान संबंधी नियम और व्यापारिक नीति का पुनरावलोकन तंत्र भी शामिल है। वास्तव में WTO समझौता उरुग्वे समझौता ही है, जिसके द्वारा प्रारम्भिक गैट अब WTO समझौते का ही एक भाग बन गया है जो 1 जनवरी, 1995 से लागू हुआ।

विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation)

WTO गैट का ही उत्तराधिकारी है। गैट एक मंच था जहां सदस्य देश समय पर एकत्रित होते थे और विश्व व्यापार की समस्याओं पर वार्तालाप करते थे और उनको सुलझाते थे। परन्तु WTO एक सुव्यवस्थित और स्थायी विश्व व्यापार की संस्था है। इसकी एक कानूनी स्थिति है और यह विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के समकक्ष ही स्थान रखता है। इसमें (1) उरुग्वे दौर द्वारा संशोधित गैट, (2) गैट के अन्तर्गत स्वीकृत सब समझौते और व्यवस्थाएं, तथा (3) उरुग्वे दौर के सम्पूर्ण परिणाम सम्मिलित हैं।

उद्देश्य (Objectives)

WTO के स्थापन समझौते की प्रस्तावना में निम्न उद्देश्य वर्णित हैंः
1. व्यापार और वित्तीय प्रयासों के क्षेत्र में इसके संबंध इस प्रकार चलाए जांएगे जिससे रोजगार सुनिश्चित होना और विस्तृत वास्तविक आय और प्रभावी मांग में लगातार वृद्धि द्वारा रहन-सहन के स्तर में सुधार हो तथा वस्तुओं और सेवाओं, के उत्पादन और व्यापार का प्रसार हो।
2. विश्व के साधनों का इष्टतम उपयोग सततीय  की दृष्टि से करना। इसका उद्देश्य (क) पर्यावरण की रक्षा और संरक्षण करना, और (ख) पर्यावरण रक्षा के साधनों का विस्तार आर्थिक विकास के विभिन्न स्तरों की आवश्यकताओं ओर समस्याओं के अनुरूपज्ञ ळज्ञैं
3. निश्चयात्मक प्रयत्न करना जिससे विकासशील देश, विशेषतः निम्नतम विकसित देश अपने आर्थिक विकास की आवश्यकताओं के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की वृद्धि में अपना उचित भाग पा सकें।
4. पारस्परिक और परस्पर लाभकारी व्यवस्थाएं जिनके द्वारा टैरिफ और व्यापार की रुकावटें तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधों में पक्षपातकारी व्यवहार को हटाकर इन उद्देश्यों की प्राप्ति करना।
5. गैट में सम्मिलित, भूतकालीन व्यापार उदारीकरण के परिणाम और उरुग्वे दौर की सभी बहुपक्षीय व्यापार वार्ताओं के फलस्वरूप अधिक स्थायी और व्यवहार्य बहुपक्षीय संगठित व्यापार प्रणाली को विकसित करना।
6. व्यापारिक नीतियों, पर्यावरण संबंधी नीतियों और सततीय विकास से संबंध स्थापित करना।

कार्य (Function) 

WTO के निम्न कार्य हैं:
1. यह समझौते और बहुपक्षीय व्यापार समझौतों के कार्यान्वयन, प्रबंधन और संचालन को सरल बनाता है।
2. यह नागरिक विमानन, सरकारी खरीदारी, दुग्धोत्पाद व्यापार और गोमांस संबंधी बहुपक्षीय व्यापार समझौतों के कार्यानवयन, प्रशासन और परिचालन के लिए उचित ढांचे का प्रबंध करता है।
3. यह सदस्यों के लिए मंत्रीस्तरीय कान्फ्रेंस द्वारा स्वीकृत समझौतों संबंधी, बहुपक्षीय व्यापार संबंधी वार्ताओं तथा इनके द्वारा किए गए निर्णयों के कार्यान्वयन के लिए एक मंच प्रस्तुत करता है।
4. यह समझौते के झगड़ा-निपटान नियमों तथा प्रक्रियाओं की व्याख्या का प्रबंध-संचालन करता है।
5. यह IMF विश्व बैंक तथा इसकी सहयोगी शाखाओं के मध्य विश्व व्यापार के लिए नीति निर्धारण में अधिकतर संगति उत्पन्न करता है।

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