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सुगंधित धान की सबसे अच्छी किस्म जाने विशेषता और लाभ

जानें, धान की इन किस्मों की विशेषताएं और लाभ

फसल उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से वैज्ञानिकों की ओर से नई-नई किस्में तैयार की जाती है ताकि अधिक उत्पादन होने के साथ ही किसानों को लाभ हो। इसी कड़ी में बीते दिनों इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की ओर से भाभा अटामिक रिसर्च सेंटर, ट्राम्बे-मुंबई के सहयोग से सुगंधित धान की नवीन म्यूटेन्ट किस्में विकसित की गई हैं। इन किस्मों का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार ने किसानों को इन किस्मों के बीज वितरित किए हैं। साथ ही सरकार किसानों को इसके उत्पादन के लिए अपनी ओर से हर संभव मदद करेगी। आज हम किसानों को धान (चावल) की इन नई किस्मों की जानकारी दे रहे हैं।

ये हैं धान की नई किस्में

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की ओर से भाभा अटामिक रिसर्च सेंटर, ट्राम्बे-मुंबई के सहयोग से पांच म्यूटेंट सुगंधित धान की किस्मों का विकास किया गया है ये किस्में ट्राम्बे छत्तीसगढ़ दुबराज म्यूटेन्ट-1, विक्रम टी.सी.आर, छत्तीसगढ़ जवांफूल म्यूटेन्ट, ट्राम्बे छत्तीसगढ़ विष्णुभोग म्यूटेन्ट, ट्राम्बे छत्तीसगढ़ सोनागाठी हैं।

क्या है धान की इन किस्मों की विशेषताएं और लाभ

  • धान की म्यूटेंट किस्मों के इस्तेमाल से उत्पादन में बढ़ोतरी होगी।
  • गुणवत्ता के मामले में ये म्यूटेंट की गई किस्में धान की अन्य किस्मों से बेहतर हैं। 
  • इसमें रोग और कीट के प्रकोप की संभावना कम पाई गई है हालांकि बुवाई से पूर्व बीजों को उपचारित किया जाना आवश्यक है। 
  • छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों में धान की हजारों परंपरागत किस्में पाई जाती है जो अपनी सुगंध, औषधीय गुणों तथा अन्य विशिष्ट गुणों के लिए मशहूर हैं। 
  • सुगंधित धान की परंपरागत किस्मों की अवधि और ऊंचाई कम करने तथा उपज बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। 

अब तक कितनी किस्मों को किया गया म्यूटेंट

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की ओर से धान की ऐसी 23 हजार 250 परंपरागत किस्मों के जनन द्रव्य का संग्रहण यानि म्यूटेंट किया गया है। बीज इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ के विभिन्न हिस्सों में धान की हजारों परंपरागत किस्में पाई जाती है जो अपनी सुगंध, औषधीय गुणों तथा अन्य विशिष्ट गुणों के लिए मशहूर हैं। 

इन किस्मों के भी तैयार किए हैं म्यूटेंट बीज

विश्वविद्यालय की ओर से परमाणु विकरण तकनीक का इस्तेमाल करके प्रदेश की परंपरागत किस्मों- दुबराज, सफरी-17, विष्णुभोग, जवांफूल और सोनागाठी की नवीन म्यूटेन्ट किस्में विकसित की जा चुकी हैं, जिनकी अवधि और ऊंचाई में उल्लेखनीय कमी तथा उपज में आशा के अनुरूप बढ़ोतरी देखी गई है। शीघ्र ही धान की अन्य परंपरागत किस्मों के म्यूटेन्ट विकसित कर किए जाएंगे। डॉ. चंदेल ने कहा कि अनुसंधान स्तर पर इन प्रजातियों के ट्रायल पूरे कर लिए गए हैं और अब इनके लोकव्यापीकरण हेतु किसानों के खेतों पर उत्पादन किया जा रहा है। परियोजना के तहत छत्तीसगढ़ की 300 परंपरागत किस्मों पर म्यूटेशन ब्रीडिंग का कार्य चल रहा है। 

क्यों तैयार किए गए धान के म्यूटेंट बीज

धान की परंपरागत सुगंधित किस्मों की दीर्घ अवधि, अधिक ऊंचाई तथा कम उपज की वजह से धीरे-धीरे किसानों ने इनकी खेती करना कम कर दिया है। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय की ओर से भाभा अटॉमिक रिसर्च सेंटर मुंबई के सहयोग से म्यूटेशन ब्रीडिंग द्वारा धान की सुगंधित किस्मों के म्यूटेंट बीज तैयार किए जा रहे हैं। इस बीजों को तैयार करने का मुख्य उद्देश्य सुगंधित धान की परंपरागत किस्मों की अवधि और ऊंचाई कम करने तथा धान की पैदावार को बढ़ावा है। उन्होंने कहा कि पिछले 7 वर्षों से संचालित इस परियोजना के तहत उत्साहजनक परिणाम सामने आएं हैं। 

सुगंधित धान उत्पादन में किसानों की मदद करेगी सरकार

कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिंह ने इंदिरा कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित सुगंधित धान की पांच नवीन म्यूटेन्ट किस्मों का वितरण प्रगतिशील किसानों को किया। कृषि उत्पादन आयुक्त ने किसानों से आह्वान किया कि वे सुगंधित धान के उत्पादन के लिए आगे आएं, राज्य सरकार सुगंधित धान के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए किसानों को हरसंभव मदद करेगी। उन्होंने छत्तीसगढ़ की परंपरागत सुगंधित धान की प्रजातियों की म्यूटेशन ब्रीडिंग के द्वारा नवीन उन्नत म्यूटेन्ट किस्में विकसित करने के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को बधाई एवं शुभकामनाएं दी। 

सुगंधित धान अन्य किस्में

सुगंधित धान की कई किस्में देश भर में मशहूर है। अधिकांश धान उगाने वाले क्षेत्रों में इन किस्मों की खेती की जाती है। कुछ सुगंधित धान की किस्में इस प्रकार से हैं-

पूसा बासमती- 6 (पूसा- 1401)

यह किस्म देश के बासमती धान उगाने वाले समस्त क्षेत्र और सिंचित अवस्था में बुआई के लिए उपयुक्त मानी गई है। धान की यह सुगंधित मध्यम बौनी किस्म है, जो पकने पर गिरती नहीं है। दानों की समानता और पकाने की गुणवत्ता के हिसाब से यह किस्म पूसा बासमती 1121 से बहुत ही अच्छी है, क्योंकि इसका दाना पकाने पर एक समान रहता है। इसमें सुगंध बहुत अच्छी आती है एवं दूधिया दानों की संख्या 4 प्रतिशत से कम है। इस किस्म की प्रति हेक्टेयर उत्पादन क्षमता 55 से 60 क्विंटल तक है।

उन्नत पूसा बासमती- 1 (पूसा- 1460)

यह किस्म देश के बासमती धान उगाने वाले समस्त क्षेत्र और सिंचित अवस्था में बुआई के लिए उपयुक्त पाई गई है। यह अधिक उत्पादन देने वाली किस्म है। यह  झुलसा रोग प्रतिरोधी किस्म है। यह सुगंधित किस्म 135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की उत्पादन क्षमता 50 से 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

पूसा बासमती- 1121

पूसा बासमती-1121 किस्म बासमती धान उगाने वाले समस्त क्षेत्र और सिंचित अवस्था में बुआई के लिए उपयुक्त है। सुगंधित बासमती धान की यह किस्म 140 से 145 दिनों में पक जाती है, जो तरावड़ी बासमती से एक पखवाड़ा अगेती है। इसका दाना लंबा (8.0 मिलीमीटर) व पतला है। इसकी पैदावार क्षमता 40 से 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। 

पूसा सुगंध- 5 (पूसा- 2511)

धान की ये किस्म पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं जम्मू कश्मीर और सिंचित अवस्था में खेती के लिए उपयुक्त पाई गई है। इस सुगंधित किस्म का दाना अच्छी सुगंध वाला और अधिक लंबा होता है। यह किस्म झडऩे के प्रति सहिष्णु है, यह गाल मिज, भूरे धब्बे की प्रतिरोधी है एवं पत्ती लपेट व ब्लास्ट के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। यह किस्म 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इससे 60 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिलती है। 

पूसा सुगंध- 3

ये किस्म पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड और सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसका दाना लंबा, बारीक एवं सुगंधित है, जो पकाने पर लम्बाई में दोगुना बढ़ता है और खाने में मुलायम तथा स्वाद में अच्छा है। यह किस्म पकने में मध्यम अगेती (125 दिन) तैयार हो जाती है। इसकी 60 से 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती है।

पूसा सुगंध- 2

ये किस्म पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड एवं सिंचित अवस्था में खेती के लिए उपयुक्त है। इसका दाना लंबा, बारीक तथा सुगंधित है, जो पकाने पर लंबाई में दोगुना बढ़ता है और खाने में मुलायम एवं स्वाद में अच्छा है। यह किस्म पकने में मध्यम अगेती (120 दिन) होने की वजह से बहुफसलीय चक्र के लिए उपयुक्त है। इस किस्म से 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। 

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