विद्युत ( Electricity)

विद्युत ( Electricity)

विद्युत आवेष  (Electric Charge) :-  प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक थेल्स के अनुसार जब अम्बर नामक पदार्थ को ऊन से रगड़ा जाता है तो उसमें हल्की वस्तुओं जैसे कागज आदि को आकर्षित करने का गुण आ जाता है। सन् 1600 में इंग्लैण्ड के डा0 गिवर्ट ने भी यह पाया कि अम्बर की भाॅति कुछ अन्य पदार्थों में भी रगड़ने के बाद आकर्षण का गुण आ जाता है। इस गुण को प्राप्त कर लेने पर पदार्थ वैद्युतमय हो जाते हैं तथा वह कारण जिससे यह गुण उत्पन्न होता है, विद्युत कहलाता है। किसी पदार्थ के वैद्युतमय हो जाने पर विद्युत आवेश कहा जाता है कि पदार्थ ने आवेश प्राप्त कर लिया। आवेश दो प्रकार के होते हैं- धनात्मक व ऋणात्मक। ये आवेश पदार्थ में उपस्थित धनावेशित तथा ऋण आवेशित कणों की संख्या पर निर्भर करते हैं। उदासीन पदार्थ में इनकी संख्या समान होती है परन्तु धनावेशित पदार्थ ऋण आवेशित (इलेक्ट्रान) कणों की संख्या कम और धनावेशित कणों की संख्या अधिक होती है। इसी तरह से ऋणावेशित पदार्थों में इनकी संख्या धनावेशित पदार्थों के विपरीत होती हैं। किसी पदार्थ में आवेशों का स्थानान्तरण इलेक्ट्रानों के द्वारा होता है। आवेश का मात्रक कूलाॅम होता है।
कूलाॅम का नियम( Coulomb’SLaw) :-  इस नियम के अनुसार दो स्थिर बिन्दु आवेशों के बीच लगने वाला आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण बल दोनों आवेशों की मात्राओं के गुणनफल के अनुक्रमानुपती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के ब्युत्क्रमानुपाती होता है। यदि दो बिन्दु आवेश q¹ तथा q² एक दूसरे से त दूरी पर रखे गये हों तो उनके बीच लगने वाला बल r होगा।
                    F = 1 / 4πεο q¹ q²/r²  न्यूटन
                    जहाॅ – 1/4πϵ∪ =9.0×109 न्यूटन/मीटर2/कूलाम2
वैद्युत क्षेत्र ( Electric field) :- किसी आवेश के चारों ओर वह क्षेत्र जिसमें कोई अन्य आवेश आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण बल का अनुभव करता है, वैद्युत क्षेत्र कहलाता है तथा वैद्युत क्षेत्र में किसी स्वतंत्र धन आवेश के चलने के मार्ग को वैद्युत बल रेखा कहतें हैं। ये बल रेखायें धन आवेश से चलकर ऋण आवेश पर समाप्त होती हैं। वैद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर रखे परीक्षण आवेश पर लगने वाले बल तथा परीक्षण आवेश के मान की निष्पत्ति को उस बिन्दु पर वैद्यत क्षेत्र की तीव्रता कहतें हें। जैसे यदि किसी क्षेत्र में किसी बिन्दु पर परीक्षण आवेश qº पर लगने वाला बल F हो तो उस क्षेत्र पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता निम्न सूत्र से ज्ञात की जा सकती है-
                                 E=F /qº = 1/4πεº q/r² न्यूटन/कूलाॅम
वैद्युत विभव और वैद्युत विभवान्तर ‘‘वैद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर वैद्युत विभव किसी परीक्षण आवेश को अनन्त से उस बिन्दु तक लाने में किये गये कार्य तथा परीक्षण आवेश के मान के निष्पत्ति के बराबर होता है। यदि किसी परीक्षण आवेश को अनन्त से वैद्युत क्षेत्र के किसी बिन्दु तक लाने में एक जूल प्रति कूलाॅम कार्य करना पड़े तो उस बिन्दु पर विभव एक वोल्ट होगा। वैद्युत क्षेत्र में किसी परीक्षण आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में किये गये कार्य तथा परीक्षण आवेश के मान की निष्पत्ति को उन बिन्दुओं के बीच विभवान्तर कहतें हैं, इन दोनों का मात्रक वोल्ट होता है।
विद्युत धारा (Electric Current) :- आवेश के प्रवाह को विद्युत धारा कहतें हैं विद्युत धारा की दिशा इलेक्ट्रान या ऋण आवेश के प्रवाह के विपरीत मानी जाती है। विद्युत अपघटनी पदार्थों जैसे अम्ल, क्षार लवण के जलीय विलयन में विद्युत धारा का प्रवाह ऋणात्मक तथा धनात्मक आयनों के द्वारा होता है परन्तु ठोस पदार्थों में इसका प्रवाह इलेक्ट्रानों के द्वारा होता है। विद्युत धारा दो प्रकार की होती है दिष्ट धारा जिसमें धारा की दिशा में कोई परिवर्तन नहीं होता अर्थात् धारा एक ही दिशा में बहती है तथा प्रत्यावर्ती धारा जिसमें धारा की दिशा लगातार बदलती रहती है। घरों में विद्युत की सप्लाई प्रत्यावर्ती धारा के रूप में ही की जाती है। धारा का मात्रक एम्पियर होता है।
विद्युत धारा के प्रभाव (Efect of electric current) :-  विद्युत धारा ऊष्मीय, चुम्बकीय तथा रासायनिक प्रभाव उत्पन्न करती हैं। विद्युत धारा का उष्मीय प्रवाह गतिशील इलेक्ट्रानों के चालक के परमाणुओं से टकराने से उत्पन्न होता है। बल्ब, प्रेस, ट्यूबलाइट, विद्युत हीटर आदि। यंत्र इसी प्रभाव के अन्तर्गत कार्य करते हैं। जब किसी लवण के विलयन में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तब उस विलयन का आयनांे के रूप में अपघटन शुरू हो जाता है जिसे विद्युत धारा का रासायनिक प्रभाव कहतें हैं। विद्युत लेपन धातु का वैद्युत परिष्करण विद्युत मुद्रण आदि क्रियायें विद्युत धारा के रासायनिक प्रभाव पर ही आधारित है। जब किसी चालक में विद्युत में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो उसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है, जिसे विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव कहतें हैं। टेलीग्राफ, टेलीफोन, विद्युत घंटी, विद्युत मोटर, पंखा आदि यंत्र इसी प्रभाव के अन्तर्गत कार्य करते हैं।
संधारित्र (Capacitor) :-  यह एक ऐसा समायोजन है जिसमें किसी चालक के आकार में परिवर्तन किये बिना उस पर आवेश की पर्याप्त मात्रा संचित की जा सकती है। संधारित्र में किसी भी आकार की दो चालक प्लेटें लगी रहती हैं जो एक दूसरे के समीप लगी रहती हैं तथा उन पर बराबर व विपरीत आवेश होता है। संधारित्र का उपयोग आवेशों को संचित करके किसी परिपथ  में क्षणिक विद्युत धारा उत्पन्न करने में, ऊर्जा संचित करने में किया जाता है- जैसे सिन्क्रोसाइक्लोट्रान नामक इलेक्ट्रानों को त्वरित करने वालें यंत्र में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए इलेक्ट्रोनों का एक बड़ा बैंक होता है।, उपकरणों को चिंगारी विमुक्त करने के लिए, इलेक्ट्रानिक परिपथों में वोल्टता के उच्चावचन कम करने में तथा रेडियो व टेलीविजन के कार्यक्रमों के प्रसारण व अभिग्रहण में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
वैद्युत प्रतिरोध (Electric resistance) :- किसी चालक में धारा प्रवाहित करने पर उसके सिरों के बीच एक विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है। इस विभवान्तर तथा धारा के अनुपात को वैद्युत प्रतिरोध (R) कहतें हैं।
              वैद्युत प्रतिरोध (R) =     चालक के सिरों के बीच उत्पन्न  विभवान्तर / प्रवाहित धारा (i)
वैद्युत प्रतिरोध किसी पदार्थ का वह गुण होता है जिसके द्वारा वह धारा के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करता है। चालकों का प्रतिरोध कम परन्तु कुचालकों का प्रतिरोध बहुत अधिक होता है तथा गर्म करने से चालकों का प्रतिरोध बढ़ता है लेकिन अर्धचालकों का प्रतिरोध घटता है। जिन पदार्थों का प्रतिरोध शून्य होता है उन्हें अतिचालक कहतें हैं। पारा निम्न ताप 4ºK पर अतिचालक की भाॅति कार्य करता है। प्रतिरोध का मात्रक ओम (Ω) होता है।
ओम का नियम (Ohm ‘S  Law) :- इस नियम का प्रतिपादन सन्- 1826 में डाॅ0 जार्ज साइमन ओम ने किया था। इस नियम के अनुसार यदि किसी चालक की भौतिक अवस्था (जैसे ताप) में कोई परिवर्तन न हो तो उसके सिरों पर लगाये गये विभवान्तर तथा उसमें बहने वाली धारा का अनुपात नियत होता है।
                                                      v/i = नियतांक = R (प्रतिरोध)
विषिश्ट प्रतिरोध Specificity  resistance) :- किसी चालक का प्रतिरोध उसकी लम्बाई के अनुक्रमानुपाती तथा उसके अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के व्युत्क्रमानुपाती होता है। यदि चालक की लम्बाई हो तथा उसकी अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल A हो तो प्रतिरोध होगा।
 R= ρ 1/A
यहाॅ ρ एक नियतांक है जिसे चालक का विशिष्ट प्रतिरोध कहतें हैं। इसका मात्रक ओम मीटर होता है।
विद्युत सामथ्र्य (Electric Power) :- कार्य करने की दर को सामथ्र्य कहतें हैं और विद्युत सामथ्र्य किसी चालक में विद्युत ऊर्जा के व्यय के दर को विद्युत सामथ्र्य कहते हैं। विद्युत सामथ्र्य का मात्रक वाॅट होता है।
विद्युत सामथ्र्य( P) =  व्यय  हुयी ऊर्जा (W) वाॅट / व्यय समय (t)
1वाॅट = 1जूल / सेकेड
वाॅट चॅूकि बहुत छोटा मात्रक है अतः इसके स्थान पर एक बड़े मात्रक किलोवाॅट का प्रयोग करते हैं। 1 किलोवाॅट =10³ वाॅट = 1000 वाॅट,       1 अश्वशक्ति = 746 वाॅट
यदि किसी बल पर 100w -.220v लिखा हो तो इसका अर्थ है कि यदि 220 वोल्ट पर जलाये तो इसमें 100 वाॅट की शक्ति क्षय होगी अर्थात 1 सकेंड में 40 जूल विद्युत ऊर्जा प्रकाश तथा उष्मा में बदल जायेगी।
घरेलू कार्यों में विद्युत (Electric in domesic uses)  :-  घरों में विद्युत का वितरण दे तारों के द्वारा किया जाता है जिसमें से एक तार को जीवित तार या फेज तार तथा दूसरे को उदासीन तार कहतें हैं। इन तारों में विद्युत के वितरण से पहले एक फ्यूज लगा रहता हैं। जो शीशा, टिन तथा ताॅबा की मिश्र घातु से बना रहता है। इसका गलनांक निम्न होता है। फ्यूज अधिक पावर सप्लाई होने या शार्ट-सर्किट होने पर पिघलकर नष्ट हो जाता है जिससे विद्युुत का प्रवाह घरेलू पउकरणों में बन्द हो जाता है और उपकरण सुरक्षित रहते हैं। घरेलू उपकरणों जैसे बल्ब, पंखा हीटर, इन तारों से समान्तर क्रम में जोड़ा जाता है जिससे इनमें समान वोल्टता की धारा प्रवाहित हो। व्यापारिक कार्यों तथा मकानों में व्यय होने वाली बिजली का मूल्य वैद्युत ऊर्जा के आधार पर निकाला जाता है तथा इसे किलोवाॅट-घंटा अथवा बोर्ड आॅफ यूनियन (B.T.U) में मापते हैं। साधारण बोलचाल में इसे यूनिट कहतें हैं।
खर्च हुयी यूनिटों की संख्या =
 विभवान्तर (वो0) × प्रवाहित धारा (ए0) × समय (घं0) /1000
 जहां वो0 = वोल्ट
                            ए0 = एम्यिर
                            घं0 = घंटा
                          
विद्युत वेल्डिंग :-   इसमें धातु की दो छड़ों को एक दूसरे से सम्पर्क में लाकर तेजी के साथ विद्युत प्रवाहित की जाती है। चॅूकि दोनों छडों के सम्पर्क बिन्दु पर प्रतिरोध शक्ति बहुत अधिक होती है जिससे वेल्डिंग के लिए अपेक्षित अत्यधिक ताप शीघ्र ही उत्पन्न हो जाता है।
ओटेक तकनीक :-  यह ओसन थर्मल इनर्जी कनवर्जन का संक्षिप्त नाम है। यह तकनीक समुद्र जल द्वारा ग्रहीत ऊर्जा के विद्युत ऊर्जा में परिणत करने की एक प्रणाली है।
सेफ्टी फ्यूज :- यह टिन और सीसा की मिश्र धातु से बना निम्न द्रवणांक और उच्च प्रतिरोध शक्ति वाला तार होता है जिसका प्रयोग मुख्य विद्युत प्रतिष्ठापन को क्षतिग्रस्त होने से बचाने के लिए किया जाता है।
 
 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *