वाष्पोत्सर्जन (Transpiration)
जीवित पौधे के वायवीय भागों में होने वाली जल हानि ही वाष्पोत्सर्जन है। जलवाष्प के रूप में पौधों से जल विसरित होता है। वाष्पोत्सर्जन की दर को प्रभावित करने वाले कारकों को आन्तरिक एवं बाहा्र कारकों की श्रेणी में बाँटा गया है। आन्तरिक कारक में पौधे की बनावट वाष्पोत्सर्जन की दर को प्रभावित करती है। पौधे की निम्न संरचना वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करती है-
बहुपर्तीय, बाहा्र त्वचा का पाया जाना, धँसे हुए रन्ध्रों का होना, पत्तियों का चमकीला एवं चिकना होना, पत्तियों, तनों पर मोटी उपचर्म का पाया जाना, पत्तियों का काँटों में बदल जाना, पत्तियों की सतह पर घने रोमों का पाया जाना आदि।
बाहा्र कारकों में प्रकाश, ताप, वायुगति, वायु की आर्द्रता, वायुमण्डलीय दाब, मृदाजल आदि आते हैं।
प्रकाश के कम होने या अन्धकार में वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है। ताप के बढ़ने से आपेक्षित आर्द्रता कम हो जाती है जिससे वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है। ताप के कम होने से इसकी दर कम हो जाती है। आपेक्षिक आर्द्रता के कम होने पर वाष्पोसर्जन की दर अधिक तथा आर्द्रता के अधिक होने पर इसकी दर कम हो जाती है। वायु की गति बढ़ जाने से भी वाष्पोत्सर्जन की दर अधिक हो जाती है। स्थिर वायु में वायुमण्डल के संतृप्त होने के कारण इसकी दर कम हो जाती है। वायुदाब के कम होने पर भी वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है। मृदा जल के कम होने पर वाष्पोत्सर्जन कम तथा मृदा जल की अधिकता में वाष्पोत्सर्जन अधिक होता है।
प्रतिवाष्पोत्सर्जन (Anti Transpiration) :- वे रसायन जो वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करते हैं प्रतिवाष्पोत्सर्जक कहलाते हैं। इन रसायनों में एब्सिसिक अम्ल आक्सी एथिलीन फिनाइल मक्र्यूरिक एसीटेट आदि आते हैं। ये पदार्थ पत्ती की सतह से जल के विसरण को रोकते हैं। ये रन्ध्रों को आंशिक रूप से बन्द करते हैं।
म्लानि(wilting) :- अत्यधिक जल के वाष्पोत्सर्जन से पत्तियों की कोशिकाएँ श्लथ हो जाती हैं और पत्तियाँ मुरझा जाती हैं। पत्तियों के मुरझाने को ही म्लानि कहते हैं।
बिन्दुस्राव (Guttation) :- कुछ शाकीय पौधों की पत्तियों के किनारों पर जहाँ शिराओं के सिरे होते हैं जल रन्ध्र स्थित होते हैं। जल रन्ध्रों से कोशिका रस (cell sap) के बाहर निकलने की क्रिया को बिन्दु स्राव कहते हैं। वायुमण्डल से अधिक आर्द्रता के कारण बिन्दुस्राव की क्रिया होती है। बिन्दुस्राव से निकलने वाले कोशिका रस में कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ घुले रहते हैं। जल रन्ध्र सदैव खुले रहते हैं। जलरन्ध्र मृदूतक की स्पंजी कोशिकाएँ होती हैं। इन्हें एपिथेम कहते हैं। एपिथेम का सम्बन्ध जाइलम ऊतक से होता है। बिन्दुस्राव वास्तव में मूल दाब के फलस्वरूप होता है।
प्रारूपिक रन्ध्र की संरचना :- स्टोमेटा या रन्ध्र वृत्ताकार रक्षक कोशिकाओं द्वारा घिरे होते हैं। रक्षक कोशिकाओं की भीतरी सतह मोटी भित्ति वाली तथा बाहा्र सतह पतली भित्ति वाली होती है। रक्षक कोशिकाओं में हरित लवक भी पाये जाते हैं। रक्षक कोशिकाओं के चारों ओर हरित लवक उपकोशाएँ होती है।
रन्ध्र के खुलने तथा बन्द होने की क्रिया विधि :- रन्ध्रीय गति रक्षक कोशिकाओं की स्फीति तथा श्लथ दशा पर निर्भर करती है। स्फीति दशा में रन्ध्र खुलते हैं तथा श्लथ दशा में रन्ध्र बन्द हो जाते हैं।
स्टार्च-शर्करा परिवर्तन मत :- सेयरे नामक वैज्ञानिक ने यह बताया कि रक्षक कोशिकाओं के ची मान में परिवर्तन होने से रन्ध्र खुलते और बन्द होते हैं। दिन के समय ची मान अधिक होता है। प्रकाश-संश्लेषण के फलस्वरूप बना ग्लूकोज ।ण्ज्ण्च् के फास्फेट से क्रिया करके ग्लूकोज – फास्फेट में बदल जाता है। इसके फलस्वरूप रक्षक कोशिकाओं की सान्द्रता बढ़ जाती है। अन्तः परासरण के फलस्वरूप रक्षक कोशिकाएँ स्फीत हो जाती हैं और रन्ध्र खुल जाते हैं।
सक्रिय K+ स्थानान्तरण क्रिया-विधि :- प्रकाश में रक्षक कोशिकाएँ मौलिक अम्ल उत्पन्न करती हैं। मौलिक अम्ल करके पोटैशियम मैलेट बनाता है। इसके फलस्वरूप रक्षक कोशिकाओं की सान्द्रता बढ़ जाती है। अतः परासरण के फलस्वरूप रक्षक कोशिकाएँ स्फीत हो जाती हैं। और रन्ध्र खुल जाते हैं। रन्ध्र बन्द होते समय K+ रक्षक कोशिकाओं से बाहर निकल उपत्वचीय कोशिकाओं में चले जाते हैं, H+ रक्षक कोशिका में वापस आ जाते हैं। इसके फलस्वरूप मौलिक अम्ल बन जाता है। रक्षक कोशिकाओं की परासरणीय सान्द्रता कम हो जाती है। रक्षक कोशिका श्लथ दशा में आ जाती है और रन्ध्र बन्द हो जाते हैं।
नोट:-
- जीवाणुओं को स्टेन करने के लिए क्रिस्टस वायलेट एवं आयोडीन के घोल का प्रयोग करते हैं।
- साधारण शर्करा का घोल जीवाणुओं के लिए उपयुक्त होता है। जीवाणु इससे अपने लिए आवश्यक भोजन प्राप्त करते हैं।
- रन्ध्रों द्वारा गेसों ओक्सीजन तथा कार्बोन डाईऑक्साइड आदान-प्रदान होता है। वातरन्ध्रों द्वारा जलवाष्प के रूपा में उड़ता है। इनसे काष्ठीय पौधों से गैसों का आदान-प्रदान होता हे।
- कुछ रसायन जैसे-ऐब्सिसिक अम्ल, आक्सीएथिलोन, फिनाइल मक्र्यूरिक एसीटेट आदि-वाष्पोत्सर्जन की दर कम करते हैं।
- रन्ध्रों के खुलते समय रक्षक कोशिकाओं का ची मान 7-8 होता है।
- रन्ध्रों के खुलने में सबसे अधिक प्रभावी प्रकाशीय किरणें लाल-तरंगदैध्र्य वाली किरणें (600 mμ) है।