भू-संचलन

वायुमण्डल (Atmosphere)

संगठन व संरचना:- हमारी पृथ्वी के चारों ओर घिरा हुआ गैसीय आवरण जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण जुड़ा हुआ है वायुमण्डल कहलाता है। वायुमण्डल एक चलनी की तरह कार्य करता है जो सौर विकिरण की लघु तरंगों को पृथ्वी तक तो आने देता है किन्तु पृथ्वी द्वारा उत्सर्जित पार्थिव विकिरण की लम्बी तरंगों को रोककर पृथ्वी के औसत तापमान को बनाये रखता है। यदि पृथ्वी पर वायुमण्डल नही होता तो पृथ्वी के दिन का तापमान 100°c  तथा रात्रि का तापमान -100°c  होता।

वायुमण्डल के संगठन (Composition of Atmosphere) – वायुमण्डल के संगठन में तीन कारकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

 1. गैसें 2. धूल कण 3. जलवाष्प

गैसें :- वायुमण्डल अनेक गैसों का मिश्रण है जिसमें ठोस तथा तरल पदार्थों के कण असमान मात्राओं में तैरते रहते हैं। वायुमण्डल में नाइट्रोजन, आॅक्सीजन, आर्गन, कार्बनडाइक्साइड, नियान, हीलियम, ओजोन, हाइड्रोजन, क्रिप्टान, जेनान और मेथेन आदि गैसें पायी जाती हैं।

 नाइट्रोजन (78.08%) :-वायुमण्डल में नाइट्रोजन सर्वाधिक मात्रा में पायी जाती है। वायुमण्डलीय नाइट्रोजनी पोषक तत्वों की पूर्ति लेग्यूमिनियस कुल के पौधे करते हैं।

 आक्सीजन (20.84%) :- यह गैस प्राणियों के लिए जीवन दायनी है पेंड़ पौधे प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से इसे वायु मंडल में छोड़ते हैं। यह गैस दहन क्रिया में सहायता करती है।

आर्गन (0.93%) :– मात्रा के क्रम में यह वायुमण्डल की तीसरी गैस है जो एक अक्रिय गैस है।

कार्बनडाइ आक्साइड (0.03%) :- कार्बनडाइ आक्साइड भारी गैस है जो सौर्य विकिरण के लिए पारगम्य किन्तु पार्थिव विकरण के लिए अपारगम्य है। co2 पौधों का जीवन आधार है, यह सबसे भारी होते हुए वायु मण्डल में ग्रीन हाउस प्रभाव पैदा करती है।

 ओजोन (0.00006%) :- वायुमण्डल में इसकी मात्रा बहुत अल्प होती है किन्तु सूर्य के पराबैगनी किरणों के विकरण को अवशोषित कर पृथ्वी के लिए रक्षा कवच का कार्य करती है।

 हाइड्रोजन (0.00005%) :- वायुमण्डल में पायी जाने वाली सबसे हल्की गैस है।

जलवाश्प:- वायुमण्डल में इसकी मात्रा 0 से 4 प्रतिशत तक होती है। ऊँचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा कम होती जाती है 5 कि0मी0 से ऊपर जलवाष्प नहीं पाई जाती। कार्बन डाई आक्साइड की तरह यह गैस भी ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न करती है। यह ठोस, द्रव तथा गैस तीनो अवस्था में पायी जाती है जलमण्डल का कुल 0.035% जलवाष्प होता है।

 धूलकण:- धूल कण में मुख्यतः मिट्टी के कण धुँवा, राख, पराग, समुद्री नमक आदि शामिल होते हैं। घूल कणों को ’आद्रताग्राही’ न्यूक्लियस कहते हैं। धूल कणों से ही प्रर्कीणन परावर्तन आदि क्रियायें होती हैं धूल कणों के कारण गो धूलिबेला तथा सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य लाल दिखायी पड़ता है।

 वायुमण्डल की संरचना :- वायुमण्डल लगभग 1000 कि0मी0 की ऊँचाई तक विस्तारित है किन्तु वायुमण्डल का 99 प्रतिशत भार 32कि0मी0 तक ही सीमित है वायुमण्डल को पांच विभिन्न संस्तरों में बाॅटा जा सकता है।

           क्षोभ मंडल (Proposphere):- इस मंडल में प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर तापमान 10°c घटता है। ध्रुवों पर इस मंण्डल की ऊॅचाई 8 किमी0 तथा विषुवत रेखा पर 18 किमी0 पाई जाती है। क्षोभ मण्डल में तापमान के घटने की क्रिया को ’सामान्य ताप ह्ासदर’ कहतें हैं। क्षोभ मण्डल में ही वायु माण्डल में होने वाली समस्त गतिविधियाॅ पायी जाती है।

 समताप मंण्डल (Startosphere) :-  क्षोभ सीमा के ऊपर समताप मंण्डल पाया जाता है। अक्सर जेट वायुयान निम्न समताप मण्डल में उड़तें हैं क्योंकि ये परत उड़ान के लिए अत्यन्त सुविधा जनक दशायें रखती है। समताप मण्डल में ही ओजोन गैस की उपस्थिति होती है जो पराबैगनी किरणों को अवशोषित कर तापमान बढ़ाती हैं। यह मण्डल मौसमी हलचलों से मुक्त रहता है फलस्वरूप वायु यान उड़ाना इस मण्डल में सुविधाजनक होता है। इस मण्डल में जलवाष्प का पूर्ण आभाव होने के कारण मेघों का निर्माण नहीं होता और यहां की दृश्यता सर्वाधिक होती है।

मध्य मंण्डल (Mesophere) :-  इस मण्डल की ऊॅचाई 50 से 90 किमी0 तक होती है। इस परत में ऊॅचाई के साथ तापमान फिर कम होने लगता और 80 से 90 किमी0 की ऊॅचाई (मध्य सीमा) पर यह -110c° तक कम हो जाता है। गर्मियों में मध्य मण्डल के उच्च अक्षाशों में तंतुनुमा मेघों का निर्माण होता है जो उल्का धूल कणों से परावर्तित सूर्य किरणें होती है।

आयन मण्डल (Lonosphere) :- इस मंण्डल की ऊॅचाई 90 से 640 किमी0 के लगभग होती है। यहां ऊँचाई के साथ तापमान बढ़ता है तथा इस मण्डल में विद्युत अवेशित कणों की अधिकता पाई जाती है। वायुमण्डल की इसी परत से रेडियों की तरंगे परावर्तित होती है। आयन मण्डल मे मुख्यतः तीन परतें पायी जाती हैं जिसमें D परत दीर्घ तरंगों  को परावर्तित करता है। E परत रेडियो की मध्यम तरगों को परावर्तित करती है जबकि F परत रेडियो की लघु तरंगो को परावर्तित करती है।

  वाह्य मंण्डल (Exposphere) :- इस मण्डल की ऊॅचाई 640 किमी0 से 1000 किमी0 तक पायी जाती है। इस मण्डल में भी विद्युत आवेशित कणों की प्रधानता होती है। 1000 किमी0 के बाद वायुमण्डल बहुत बिरल हो जाता है अंततः यह मण्डल अंतरिक्ष में विलीन हो जाता है।

 नोट:-

  1.  वायुदाब पृथ्वी की सतह से ऊपर जाने पर उत्तरोत्तर कम होता जाता है।
  2.   वाह्य मण्डल के ऊपरी मण्डल को चुम्बकीय मण्डल भी कहतें हैं जिसकी खोज वाॅन एलन नामक वैज्ञानिक ने की थी। इसी कारण इस मण्डल को वाॅन एलन मण्डल भी कहतें हैं।

 रासायनिक संगठन के आधार वायु मण्डल का वर्गीकरण :-  वायुमण्डल की 80 किमी0 की मोटाई में गैसों का मिश्रण समान रहता है जिस कारण इसे सममण्डल भी कहते हैं। उसके बाद नाइट्रोजन, आक्सीजन, हीलियम व हाइड्रोजन की अलग-अलग आणविक परतें मिलती हैं इसी कारण इसे विषम मण्डल कहतें हैं।

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2 thoughts on “भू-संचलन”

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