WhatsApp Channel Join Now
Telegram Group Join Now

राष्ट्रीय आंदोलन

उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारतीयों में राष्ट्रीय राजनीतिक चेतना का विकास बहुत तेजी से हुआ और भारत में एक संगठित राष्ट्रीय आंदोलन का सूत्रपात हुआ। पाश्चात शिक्षा का विस्तार, मध्यवर्ग का उदय रेलवे का विस्तार तथा सामाजिक-धार्मिक आंदोलनों ने राष्ट्रवाद की भावना के विकास में महत्पूर्ण भूमिका निभाई। इसी क्रम में दिसंबर 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। जिसके नेतृत्व में भारतीयों ने एक लंबा और पूर्ण संघर्ष चलाया और अंततः 15 अगस्त 1947 को देश को दासता से मुक्ति दिलाई। भारत में राष्ट्रीय आंदोलन अथवा राष्ट्रवाद का उदय अनेक कारणों तथा परिस्थितियों का परिणाम था, जिन्हें निम्न रूपों में देखा जा सकता है।

औपनिवेशिक शासन का परिणाम : विदेशी शासन ेके रूपों में राष्ट्रीय भावना के उदय में योगदान दिया। पहला, विदेशी शासकों की विभेदकारी शोषणकारी आर्थिक नीतियों ने भारतीय कृषि तथा पारम्परिक उद्योगों को नष्ट कर आत्मनिभर्रतामूलक ग्रामीण अर्थव्यवस्था को औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में परिवर्तन कर दिया। इसके परिणामस्वरूप लोगों में ब्रिटिश शासन के प्रति आक्रोश की भावना का उदय हुआ। ब्रिटिश शासन द्वारा अपने हितों की पेर्ति के उद्देश्य से किया गया रेलवे का विस्तार तथा डाक प्रशासनिक व्यवस्था दूसरा प्रमुख कारण था। रेलवे का विस्तार तथा डाक एवं प्रशानिक व्यवस्था के परिणामस्वरूप राष्ट्र का भौगोलिक एकीकरण हुआ। देश के विभिन्न भागों में निवास करने वाले लोगों एवं नेताओं का पारस्परिक संपर्क हुआ, जिससे राष्ट्रवाद को बल मिला। ब्रिटेन की भारत क घन के स्वयं के हित के लिए दोहन की नीति ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय हित और ब्रिटिश परस्पर विरोधी है।

भारतीय पुनर्जागरण: भारतीय पुनर्जागरण ने भी अपने दो स्वरूपों में राष्ट्रवाद की भावना को आश्रय दिया। पहला, उसने भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों, अनैतिकताओं, अवांछनीयताओं एवं रूढ़ियों से मुक्ति का मार्ग दिखाया तथा दूसरा, श्वेतों के अधिभार सिद्धांत के विपरीत भारतीय संस्कृति के गौरव को पुनःस्थापित किया। इसके परिणामस्वरूप देश में एक नवीन राष्ट्रीय चेतना की भावना को बल मिला।

Share

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *