1876-80 वाइसराय एवं गवर्नर जनरल लार्ड लिटन वह ब्रिटेन में बेजामिन डिज़रायली की कंजर्वेटिव सरकार का भारत में प्रतिनिधि था। लिटन एक प्रसिद्ध कवि, उपन्यासकार और लेखकार होने के बावजूद भारतीय मामलों में बहुत प्रतिक्रिया वादी औरदमनशील था व भारतीय भाषा प्रेस अधिनियम, शस्त अधिनियम आदि जैसे प्रतिक्रियावादी कानूनों को पारित करने के लिए उत्तरदायी था। ब्रिटिश संसद ने शाही उपाधि अधिनियम (Royal Titles Act) पारित करके साम्राज्ञी विक्टोरिया को कैसर-ए-हिन्द या भारत की महा सम्राज्ञी की उपाधि सेसम्मानित किया। एक भव्य औपाचारिक समारोह में इस उपाधि से साम्राज्ञी विक्टोरिया को सम्मानित करने के लिए 1 जनवारी , 1877 को एक वैभवपूर्ण दिल्ली दरबार का आयोजन किया, जब भारत का बहुत बड़ा भाग भयंकर अकाल की चपेट में था, जिसमे असंख्य भारतीय लोग भाूख और भुखमरी से मर रहे थे। भारत राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत करने में यह दिल्ली दरबार दुखद परिस्थितियों में एक वरदान सिद्ध हुआ।
भारतीय भाषा अधिनियम (Vernacular Press Act) 1878– भारत में व्यापक अकाल और जनता के कष्टों के प्रति सरकार के निराशजनक दृष्टिकोण के कारण सैकड़ों कृषिजन्य उपद्रव, गिरोहों द्वारा लूटपाट और साहूकारों पर हमले किए गए, जिन्हें भारतीय भाषाओं में समाचार-पत्रों ने बढ़ा-चढ़ाकर प्रकाशित किया। इन समाचारों-पात्रों की आवाज का गला घोंटने के लिए भारतीय भाषा प्रेस अधिनियम पारित किया गया, जिसके द्वारा मजिस्ट्रेटों को यह आदेश दिए गए कि वे भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों से इस बात की लिाित गारण्टी या बचनबद्धता लें कि वे किसी ऐसी सामग्री का प्रकाशन नहीं करेगें, जिससे ब्रिटिश शासन के विरूद्ध असन्तोष पैदा होता है।
शस्त्र अधिनियम 1878:-इस अधिनियम के द्वारा बिना लाइसेन्स के हथियार रखने या लेकर चलने को दण्डनीय अपराध घोषित किया गया। इस अधिनिय के विरूद्ध इस कारण रोष व्यक्त किया गया कि इससे रंगभेद की दुर्भावना स्पष्टतः झलकती थी, क्योंकि यूरोपियन, एंग्लों-एण्डियन एवं कुछ विशेष श्रेणियों के सरकारी कर्मचारियों को इस अधिनियम के अनुपालन से मुक्त रखा गया था।
अधिनिमित सिविल (The Statutory Civil Service) प्रशासकीय सेवा-1833 के चार्टर एक्ट ने भारत में समस्त पदो के लिए योग्यता के आधार पर नियुक्ति के सिद्धांत ने कम्पनी के अधीन उच्च प्रकाशकीय सेवाओं में चयन के लिए लन्दन में प्रतियोगी परीक्षाओं के आयोजन का प्रावधान रखा गया था। भारत में ब्रिटिश नौकरशाही प्रशासनिक सेवाओं में भारतीयों के प्रवेश की विरोधी थी। लार्ड लिटन का भी यही विचार था और वह उच्च प्रशासनिक सेवाओं के द्वारा भारतीयों के लिए बिल्कुल बन्द कर देना चाहता था। अपने इस उद्देश्य में विफल होने पर उसने प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रवेश के लिए अधिकतम आयु सीमा 21 से 19 वर्ष कम करके भारतीयों द्वारा प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने के मार्ग में अवरोध खड़े किए। इस दुर्भावनापूर्ण कार्य को सम्पूर्ण भारत में भारतीय प्रशासकीय सेवाओं में भारतीय प्रत्याशियों के चयन की संभावनाओं को अवरूद्ध करने वाला कृत्य माना गया और इसकी भयंकर भत्र्सना की गई।
द्वितीय अफगान युद्ध:- लिटन ने पश्चिमी सीमान्त में ’’वैज्ञानिक सीमान्त’’की स्थापना के लिए अफगानों के विरूद्ध एक विवेकहीन युद्ध को भड़का दिया। यह दुस्साहसपूर्ण कार्य पूर्णतः विफल रहा, जबकि इसमें निर्धन भारतीय से वसूले गए लाखों रूपयों को इसमें बरबाद किया गया।
1880-84 वायसराय एवं गवर्नर जनरल लाॅर्ड रिपन:- जिस रिपन को भारत का वाइसराय नियुक्त किया गया, उस समय ग्लेड्स्टोन के नेतृत्व वाली लिबरल पार्टी इ्रंगलैण्ड में सत्ता में आ गई। इस प्रकार रिपन के साथ भारत में उदारवादीयुग का अरूणोदय हुआ और उसने लिटन के अधिकांकश प्रतिक्रियावादी और अलोकव्रिय कार्याें को निरस्त कने का प्रयास किया।
वेनेक्युलर प्रेस एक्ट 1878 को निरस्त करना:- 1878 के अति निन्दित वेनैंक्युलर प्रेस एक्ट को समाप्त करदिया गया और भारतीय भाषाओं में प्रकाशित समाचार-पत्रों को शेष भारतीय समाचार-पात्रों के समान स्वतंत्र की अनुमति दी गई।
फैक्ट्री एक्ट, 1881:- कारखानों के श्रमिकों की स्थिति सुधारने के लिए पहली बार किसी अधिनियम को पारित किया गया, जिसमें भारतीय मजदूरोंकी सेवा की स्थितियों को नियमित करने तथा सुधारने का प्रयास किया गया।
वित्तीय विकेन्द्रीकरण , 1882:– लार्ड मेयो द्वारा शुरू किए गए वित्तीय विकेन्द्रीकरण को रिपन ने अधिक व्यापक रूप प्रदान किया। राजस्व के संसाधनों को तीन श्रेणियों अर्थात केन्द्रीय प्रान्तीय और वर्गीकृत नाम से विभाजित किया गया।
स्थानीय स्वशासन,1882:-आयुनिक भारत में रिपन स्थानीय स्वशासन का प्रवर्तक था। 1883-85 के दौरान विभिन्न प्रान्तों में स्थानीय स्वशासन अधिनियम पारित किए गए। शहरी और ग्रामीण स्थानीय निकायों की स्थापना की गई।स्थानीय स्वशासन का जितना अधिक लाभ प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण एवं उसकी सक्षमता के रूप में नहीं हुआ जितना कि भारतीय जनता के राजनीतिक प्रशिण के रूप में हुआ।
शैक्षिक सुधार:- वुड्स डिस्पैच के बाद देश में शिक्षा के विकास की समीक्षा की समीक्षाकरने के लिए 1882 में एक शिक्षा आयोग हंटर आयोग की नियुक्ति की गई थीजिसने प्राथमिक शिक्षा के प्रसार और सुधार के लिए राज्यों को विशेष रूप से उत्तरदायी बनाने के लिए जोर दिया। प्राथमिक शिक्षा का दायित्व नवस्थानीय निकायों को सौंपा जाना था। माध्यमिकस्तर पर शिक्षा के विकास के लिए सहायता अनुदान की प्रणाली अनुदान की प्रणाली और स्त्री शिक्षा के लिए सुविधाए देने का प्रस्ताव किया गया।
इलबर्ट बिल विवाद, 1883-84रिपन के गौरवपूर्ण शासनकाल का इलबर्ट बिल विवाद के नाम से ज्ञात दुभाग्यशाली विवाद के साथ समाप्त हुआ। पहले यूरोप वासियों के मुकदमों की सुनवाई यूरोपीय मजिस्ट्रेज और न्यायाधीशों द्वारा की जाती थी, लेकिन वाइसराय की परिषद् के विधिया कानूनी सदस्य सर सी0पी0 एलबर्ट ने एक विधेयक तैयार किया जिसमें केवल जाति-भेद पर आधारित प्रत्येक न्यायिक भेदीााव को पूर्णतः समाप्त किया गया था। इस बिल की यूरोपीय लोगों, विशेषतः भारत के अंग्रेजों समुदाय द्वारा कटु आलोचना की गई। अन्ततः यूरोपीय समुदाय के दबाव में लि को संशोधित किया गया जिसेमें उसे सिद्धांतत को तिलांजलि देदी गई जिसके लिएबिल को प्रस्तावित किया गया था। 26 जनवारी, 1884 को तथाकथित इलबर्ट बिल में सेशोधन करके इसमें यह प्रावधान रखा गया कि ब्रिटिश भारत के अंगे्रज और यूरोपियन (अपराधी)प्रजाजनों को बारह जूरियों के द्वारा मुकदमों की सुनवाई का अधिकार होगा, जिसमें सात जूरियों का यूरापियन या अमरीकन अर्थात श्वेत होना आवश्यक था। न्याय व्यवस्था के क्षेत्र में रंगभेद की नीति के प्रति भयंकर रोश व्यक्त किया गया।
मैसूर राजय की उसके पुराने शासक को वापसी- बैंटिक कुप्रशासन के आधार पर मेसूर राज्य का ब्रिटिश साम्राज्य मे विलय कर लिया था। पर रिपन ने इसे उसके पुराने शासन राजवंश का पचास वर्श बाद वापस कर दिया, जो ब्रिटिश भारत के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना थी।
1884-88 वाइस राय एवं गवर्नर लार्ड डफरिन-उसके कार्यकाल में 1885 में तृतीय आंग्ल बर्मी युद्ध हुआ। परिणामस्वरूप ऊपरी बर्मा (म्यांमार) को ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य में शामिल कर लिया गया और स्वतंत्र देश के रूप में बर्मा का अस्तित्व समाप्त हो गया। भारत के भावी इतिहास की दृष्टि से इसी वर्षकी दूसरी महत्वपूर्ण घटना ए0ओ0 ह्म द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांगे्रस की स्थापना थी। परंतु उत्तर पश्चिम सीमान्त में अफगानिस्तान की सीमा पर पंजदेह की घटना ने ब्रिटेन को रूस के साथ युद्ध के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया। इस युद्ध की संभावना के कारण भारतीय सेना की संख्या-वृद्धि की गइ।
1888-94 वाइसराय एवं गवर्नर जनरल र्लाॅउ लैंसडाउन- उनके कार्यकाल के दौरान 1891 में मणिपुर में एक विद्रोह हो गया, जिसके परिणाम स्वरूप वहां सैनिक अभियन भेजा गया। विद्रोह का दमन करने के उपरान्त मणिपुर के राजकुमार तिकेन्द्रजीत और तोंगोल सेनानाय, जिन्होंने विद्रोह का नेतृत्व किया था, को सार्वजनिक रूप से फांसी दी गई और महाराजा, कुलचन्द्र और उनके भाई को आजन्म करावास की सजादी गई इससे 1889 में कश्मीर के महाराजा को राजगद्दी का परित्याग करने के लिए बाध्य किया गया।
इंडियन काउन्सिल एक्ट,1892- इस संवैधानिक अधिनियम का पारित होना एक बहुत महत्वपूर्ण घटना थी, क्योंकि भारतीय संविधान निर्माण की दिशा में यह पहला चरण था। इस अधिनियमको भारतीयों में बढ़ते असंतोष के कारण पारित किया गया था जिसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपनी स्थापना के साथही व्यक्त करना आंरम्भ कर दिया था। 1892 के अधिनियम ने विधायिकाओं का विस्तार किया और उन्हें लघु संसदों के रूप में परिण कर दिया। विधायिकाओं के अधिकारों में विस्तार के परिणामस्वरूप देश के सर्वाेत्तम प्रतिभाशाली इनकी और आकर्षित हुए। अनेक प्रतिष्ठित भारतीय नेताओं, जैसाकि गोपालकृष्ण गोखले, अशुतोष मुकर्जी, रस बिहारी घोष और सुरेन्द्र नाथ बनर्जी आदि ने इन विधायिकाओं में स्थान प्राप्त किए, चूंकि इन विधायिकाओं केसदस्यों का निर्वाचन एक अस्पष्ट और अप्रत्यक्ष तरीके सेएक निर्वाचक मंडल के द्वारा किया जाता था और विधायिका का कार्यपालिका पर कोई नियंत्रण नहीं था अतः यह अधिनियम भारतीय राष्ट्रवादी को संतुष्ट नहीं कर सका और भारतीय राष्ट्रीय कांगे्रस के प्रत्येक अनुवर्ती अधिवेशनों में इसकी भत्र्सना की जाती रही।
1894-99 वाइसराय और गवर्नर जनरल एल्गिन द्वितीय- उसके पांच वर्श का कार्यकाल उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रदेश की कबाइली जातियों के विद्रोहों के कारण संकट ग्रस्त रहा। इन कबाइली विद्रोहों कादमन करने के लिए सैनिक अभियान किए गए जो जनहानि एवं संसाधनोंको अपव्यव की दृष्टि से बहुत मंहगे सिद्ध हुए। 1895 में एक आंग्ल-रूसी समझौता पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके द्वारा रूस ने काबुल काबुल (आॅक्सस) नदी को ब्रिटिश साम्राज्य की दक्षिणी सीमा के रूप में स्वीकार किया। 1896
797 में भारत का अधिकांश भाग एक भयंकर अकाल की चपेट में आ गया इस अकाल के उपरांत अकाल के कारणों की जांच के लिए लाॅयल आयोेग को नियुक्त किया गया। परंतु अयोग की जांच रिपोर्ट पूर्ण होने से पूर्व की, 1899 में भारत मे दूसरा कहीं भयंकर अकाल पडा। ऐसे व्यापक और विनाशकारी अकाल को पिछले दो सौ वर्षों में कभी भी अनुभव किया गया था। इस स्थिति के कारण लार्ड कर्जन ने द्वितीय आकाल जांच आयोग नियुक्त किया।