ऊष्मा (Heat)

ऊष्मा (Heat)

ताप (Temperature) :-  किसी वस्तु का ताप वह भौतिक राशि है जिससे यह पता चलता है कि वस्तु कितनी गरम अथवा ठंडी है अथवा किसी वस्तु का ताप उसके गर्माहट अथवा ठंडेपन की माप है।
ताप का मापक्रम (Scale of Temperature) :-  वैसे तो इस बात का आकलन किसी वस्तु को छूकर ही किया जा सकता है कि कौन सी वस्तु गरम है और कौन सी ठंडी है परन्तु वस्तु का वास्तविक ताप क्या है, इसका पता नहीं लगाया जा सकता है। इसके लिए विभिन्न तापमापियों का प्रयोग किया जाता है तथा तापमान में निम्नलिखित पैमानों का उपयोग करते हैं।
सेल्सियस पैमाना (Celsius Scale) :- इस पैमाने से बर्फ के गलन बिन्दु को 0ºC मानते हैं तथा माप बिन्दु को 100ºc मानते हैं तथा इनके बीच की दूरी को 100 बराबर भागों में बाॅट- कर प्रत्येक भाग को 1ºc मानते हैं। इस पैमाने का उपयोग वैज्ञानिक कार्यों में किया जाता है।
फारेन हाइट पैमाना (Farenheit Scale) :-  इस पैमाने में बर्फ के गलन बिन्दु (हिमांक) को 32F तथा माप बिन्दु को 212F मानते हैं तथा इनके बीच की दूरी को 180 भागों में बाॅट कर प्रत्येक भाग को 1F मानते हैं। इस पैमाने का प्रयोग चिकित्सीय में किया जाता है।
र्यूमर पैमाना (Reamus Scale) :-  इस पैमाने में हिमांक को 0ºR  मानते हैं तथा इनके बीच की दूरी को 80 बराबर भागों में बंाटकर प्रत्येक भाग को 1ºR मानते हैं। इन तीनों पैमानों पर ताप में निम्न सम्बन्ध है।

          C/100 = F-32/180 = R/80  

केल्विन पैमाना (Kelvin Scale) :- इस पैमाने पर हिमांक को 273ºK  पर अंकित किया जाता है तथा इन्हें 100 बराबर भागों में बांट-कर प्रत्येक भाग को 1K मानते हैं। 0ºK को परमशून्य ताप  (Absolute temperature)  कहतें हैं और ऐसा माना जाता है कि इससे नीचे कोई ताप सम्भव नहीं है। सेल्सियस तथा केल्विन पैमाने में निम्नलिखित सम्बन्ध हैं।

केल्विन पैमाने पर ताप = सेल्सियस पैमाने पर ताप + 273

तापमापी (Thermometer) :-

 (1) द्रव तापमापी (Liquid Thermometer) :- इसके द्वारा ताप का मापन करने के लिए पारे का प्रयोग करते हैं। इस तापमापी द्वारा 357ºC तक ताप मापा जा सकता है। इस तापमापी का प्रयोग चिकित्सा क्षेत्र में द्रवों का ताप मापने में करते हैं।
 (2) स्थिर आयतन गैस तापमापी (Constant volume gas thermometer ) :- इस प्रकार के तापमापी में हाइड्रोजन गैस का प्रयोग करने पर 500ºC तथा नाइट्रोजन गैस का प्रयोग करने 1500ºC तक का ताप मापा जा सकता है।
 (3) प्लेटिनम प्रतिरोध तापमापी (Platinum re-sistance thermometer) :- इस तापमापी से द्वारा 200ºC से 1200ºC तक का ताप मापा जा सकता है। यह काफी सुग्राही है।
 (4) तापयुग्म तापमापी (Thermocouple Ther-mometer) :-  इस तापमापी द्वारा 200ºC से 1600ºC तक का ताप मापा जा सकता है। परन्तु 1000ºC से नीचे ताप मापने में यह कम यथार्थ है।
 (5) सम्पूर्ण विकिरण उत्तापमापी (Total radiation Pyromenter  ) इस तापमापी से 800ºC से कम का ताप नहीं मापा जा सकता है। अधिक ताप वाली वस्तुओं तथा सूर्य आदि का ताप इसी तापमापी से मापा जाता है।
 (6) अदृष्य तन्तु तापमापी (Disappearing-fila-ment pyromenter) :- इस तापमापी से 600ºC से 2700ºC तक का ताप मापा जा सकता है।
ऊष्मा प्रसार (Thermal expansion) :- किसी पदार्थ का ताप बढ़ाने से उसके आयतन में वृद्धि होती है क्योंकि ताप बढ़ाने से पदार्थ के अणुओं के बीच की दूरी बढ़ जाती है। यदि किसी ठोस पदार्थ का ताप बढ़ाया जाये तो उसके क्षेत्रफल, लम्बाई तथा आयतन में वृद्धि हो जाती है अर्थात् यदि किसी लोहे की प्लेट का ताप बढ़ायें तों उसके क्षेफल में वृद्धि हो जाती है और यह वृद्धि उसी प्रकार से होती है जैसे किसी फोटो-ग्राफिक प्लेट से बड़े आकार का फोटो तैयार किया जता है। ठोसों के ऊष्मीय प्रसार पर आधिारित कई घटनायें हमारे दैनिक जीवन में दिखायी देती हैं जैसे लकड़ी के पहिए पर लोहे का हाल चढ़ाने के लिए लोहे को गर्म किया जाता है, बोतल में फॅसी हुई कार्क को निकालने के लिए बोतल को गर्मकर दिया जाता है, रेल की पटरियाॅ जो कि लोहे की बनी होती हैं, उनके जोड़ो पर थोड़ी सी जगह छोड़ दी जाती है जिससे गर्मी के महीनों में पटरियों का प्रसार होने पर वे तिरक्षी न हों। ताप का प्रभाव लोलक के आवर्तकाल पर भी है। गर्मी में लोलक की लम्बाई बढ़जाने के कारण घड़ियों का आवर्तकाल बढ़ जाता है तथा ठंडक में लोलक की लम्बाई घट जाने के कारण आवर्तकाल घट जाता है।
ठोंसों की तरह द्रवों को गरम करने पर द्रवों के आयतन में वृद्धि होती है तथा आयतन बढ़नेे के साथ-साथ द्रव का घनत्व घटता जाता है। द्रवों के घनत्व में यह कमी ठोसों में अपेक्षाकृत अधिक होती है। परन्तु जल अन्य द्रवों की अपेक्षाकृत कुछ असामान्य व्यवहार प्रदर्शित करता है। यदि 0ºC से 4ºC तक इसका आयतन घटता है परन्तु घनत्व बढ़ता है। 4ºC से ऊपर ताप पर जल भी अन्य द्रवों की तरह ही व्यवहार करता है अर्थात ताप बढ़ाने से इसका आयतन बढ़ता है व घनत्व घटता है। जल को यदि बर्फ में परिवर्तन कर दिया जाये तो उसका आयतन बढ़ जाता है। इसी कारण से ठंडे प्रदेशों में पानी की आपूर्ति करने वाली पाइप जल के बर्फ में बदल जाने के कारण फट जाती है।
ऊष्मा का संचरण (Transmission of heat) :- पदार्थों में ऊष्मा का संचरण सदैव उच्च ताप से निम्न ताप की तरफ होता है तथा यह निम्नलिखित विधियों के द्वारा होता है।
 (A) चालन (Conduction) :- इस विधि द्वारा ऊष्मा का संचरण प्रायः ठोसों में होता है। इस विधि द्वारा ऊष्मा का संचरण करने के लिए पदार्थ के कणों को अपना स्थान नहीं परिवर्तित करना पड़ता है बल्कि प्रत्येक कण अपने आगे वाले कण को कम्पनों के द्वारा ऊष्मा को स्थानांतरित कर देतें हैं। किसी पदार्थ की इस विधि द्वारा ऊष्मा स्थानांतरण की क्षमता को पदार्थ की चालकता कहते हैं। ऊष्मा चालकता के आधार पर पदार्थों को तीन वर्गों में विभक्त किया जाता है।
 (a) सुचालक (Conductor) :- ऐसे पदार्थ में ऊष्मा का चालन तीव्र गति से तथा सरलता पूर्वक हो जाता है। समस्त धातुएं मानव शरीर, अम्लीय जल आदि ऊष्मा के अच्छे सुचालक होते हैं।
 (b) कुचलाक (Bad Conductor) :- इन पदार्थों में ऊष्मा चालन बहुत कम होता है। ये पदार्थ है, काॅच लकड़ी, वायु रबर, प्लास्टिक आदि।
 (c) ऊष्मा रोधी (Heat insulator) :-  इन पदार्थों में ऊष्मा चालन एकदम नहीं होता है अर्थात् इनकी ऊष्मा चालकता शून्य होती है।
 (B) संवहन (Convection) :- इस विधि से ऊष्मा का चालन द्रव तथा गैसों में होता है तथा इस विधि में ऊष्मा का स्थानांतरण करने के लिए पदार्थ के कण अपना स्थान बदलते रहतें हैं। जब जल को किसी बर्तन में गर्म किया जाता है तो जल के वे कण जो बर्तन की तली में रहते हैं, पहले गर्म हो जाते हैं तथा गरम होकर हल्के हो जाने के कारण ये ऊपर उठते हैं जिन्हें संवहन धारा कहा जाता है और ठंडे कण भारी होने के कारण नीचे आ जाते हैं। इस प्रकार पूरा जल गर्म हो जाता है। इसी प्रकार किसी कमरे में हमारे द्वारा उत्सर्जित होने वाली गैंसें गर्म होने के कारण रोशन दान से बाहर चली जाती है तथा उनका स्थान लेने के लिए बाहर से स्वच्छ गैंसे आ जाती हैं।
 (C) विकिरण (Radiation) :-  इस विधि द्वारा ऊष्मा के संचरण के लिए किसी माध्यम की आवश्याकता नहीं होती है। अर्थात् इसके द्वारा ऊष्मा का संचरण निर्वात में भी होता है जबकि चालन और संवहन द्वारा ऊष्मा के संचरण हेतु माध्यम की आवश्यकता होती है। सूर्य द्वारा ऊष्मा हम विकिरण से प्राप्त करते है।
सामान्यतः सभी पदार्थ विकिरण द्वारा ऊष्मा का आदान प्रदान करते हैं। विकरण द्वारा ऊष्मा ग्रहण करने को अवशोषण तथा ऊष्मा त्याग करने को उत्सर्जन कहतें हैं। जो पिण्ड अपने ऊपर पड़ने वाले समस्त विकिरणों को अवशोषित कर लेता है, उसे कृष्णिका कहतें हैं। समान्यतः काली तथा खुरदुरे सतह वाली वस्तुयें ऊष्मा की अच्छी अवशोषक होती हैं। तथा चिकनी व सफेद सतह वाली वस्तुएं ऊष्मा बुरी अवशोषक या अच्छी परावर्तक होती हैं। इसी कारण से खाना बनाने वाले बर्तनों की निचली सतह को काला व खुरदरा बनाया जाता है और केतली की ऊपरी सतह को चमकदार बनाया जाता है। जिससे चाय काफी देर तक कर्म रहती है।
गर्मियों में हम सफेद रंग का कपड़ा पहनना पसंद करते हैं क्योंकि सफेद रंग अपने ऊपर पड़ने वाली ऊष्मीय विकिरणों का काफी भाग परावर्तित कर देता है तथा ठंडक के दिनों में काले या रंगीन कपड़े काफी आराम दायक रहता है क्योंकि गहरे रंग के कपड़े अपनेे ऊपर पड़ने वाले सूर्य के विकिरण का काफी भाग अवशोषित कर लेते हैं जिससे हमें गर्मी मिलती हैं।
ऊष्मा चालकता  :-  पदार्थों का वह गुण है जिसके कारण उनमें चालन द्वारा ऊष्मा का संचरण होता है। ऊष्मीय विकिरण अथवा विकिरण में ताप के कारण वस्तुओं द्वारा ऊष्मीय ऊर्जा का उत्सर्जन होता है।

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