WhatsApp Channel Join Now
Telegram Group Join Now

आयुर्वेद क्या है?

आयुर्वेद क्या है?

आयुर्वेद शब्द दो शब्दों आयुष्+वेद से मिलकर बना है जिसका अर्थ है “जीवन विज्ञान’ – “Science of Life”‘. आयुर्वेद (Ayurved) केवल रोगों की चिकित्सा तक ही सिमित नहीं है अपितु यह जीवन मूल्यों, स्वास्थ्य एंव जीवन जीने का सम्पूर्ण ज्ञान प्रदान करता है. पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार संसार की प्राचीनतम पुस्तक ऋग्वेद है. विभिन्न विद्वानों ने इसका निर्माण काल ईसा के 3 हजार से 50 हजार वर्ष पूर्व तक का माना है. इस संहिता में भी आयुर्वेद के अति महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों का वर्णन है. अनेक ऐसे विषयों का उल्लेख है जिसके संबंध में आज के वैज्ञानिक भी सफल नहीं हो पाये है. इससे आयुर्वेद की प्राचीनता सिद्ध होती है. अतः हम कह सकते हैं कि आयुर्वेद की रचना सृष्टि की उत्पत्ति के आस पास हुई है

आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य 

आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा और रोगों से बचाव करना है। रोगों से बचाव के लिए ऋषियों ने अनेक बातों पर ध्यान दिया है। आयुर्वेद के अनुसार कोई भी रोग केवल शारीरिक या मानसिक नहीं होता, शारीरिक रोगों का कुप्रभाव मन पर तो मानस रोगों का कुप्रभाव शरीर पर पड़ता है। इसलिए आयुर्वेद में सभी रोगों को मनोदैहिक मानकर चिकित्सा की जाती है।

आयुर्वेद का चिकित्सक केवल रोगों के लक्षणों के आधार पर ही नहीं, बल्कि उनके साथ-साथ रोगी की आत्मा, मन, शारीरिक प्रकृति, वात, पित्त, कफ आदि दोषों, मलों तथा धातुओं की स्थिति को ध्यान में रखकर रोगी की चिकित्सा करता है, इसलिए आयुर्वेद लाक्षणिक नहीं सांस्थानिक चिकित्सा पद्धति है। आयुर्वेद में प्रयुक्त होने वाली प्रत्येक औषधि रसायन का रूप है, रोग-प्रतिरोधक औषधियों व पथ्य आहार का विस्तृत विवरण विश्व को आयुर्वेद की ही देन है।

औषधि चिकित्सा के साथ-साथ दिनचर्या , प्रात:जागरण, प्रातः खाली पेट जल-सेवन की विधि, मल त्याग की विधि, दंतधावन (दाँत साफ करने की वैज्ञानिक-विधि), शरीर की मालिश तथा व्यायाम से लेकर वस्त्र व आभूषण धारण आदि का विस्तृत विवरण भी आयुर्वेद में किया गया है। इसी तरह से रात्रिचर्या* , रात्रि में सोने का समय, रात्रि-भोजन तथा आचार आदि का भी सम्यक् वर्णन आयुर्वेद में किया गया है।

विभिन्न ऋतुओं के अनुसार किए जाने वाले आचरण, खान-पान, रहन-सहन आदि का विस्तृत उल्लेख भी आयुर्वेद में प्राप्त होता है। जिसके अनुसार आहार-विहार अपनाने से स्वास्थ्य की रक्षा होती है तथा मनुष्य रोगों से बचा रहता है।

जीवन में स्वस्थ तथा सुखी रहने के लिए धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष का वर्णन भी आयुर्वेद में प्राप्त होता है। प्रत्येक मनुष्य का आचरण कैसा होना चाहिए?, व्यवहार की मर्यादाएं क्या हैं? आदि सामाजिक, पारिवारिक, राष्ट्रीय, अध्यात्मिक एवं वैश्विक विचारों का समावेश भी आयुर्वेद में किया गया है, किस तरह के आचरण से दूर रहना चाहिए, मार्ग-गमन, स्वभाव, व्यवहार, बैठने की विधि 

क्या है तीन दोष औरआयुर्वेद कैसे काम करता है ?

आयुर्वेद तीन मूल प्रकार के ऊर्जा या कार्यात्मक सिद्धांतों की पहचान करता है जो हर किसी इंसान और हर चीज में मौजूद हैं। इसे त्रिदोष सिद्धांत कहते है।  जब ये तीनों दोष – वात, पित्त और कफ  (Vata, pitta, kapha) संतुलित रहते हैं तो शरीर स्वस्थ रहता है। आयुर्वेद के सिद्धांत शरीर के मूल जीव विज्ञान से संबंधित हो सकते हैं। आयुर्वेद में, शरीर, मन और चेतना संतुलन बनाए रखने में एक साथ काम करते हैं। शरीर, मन और चेतना की असंतुलित अवस्था (vikruti) विकृति कहा जाता है। आयुर्वेद स्वास्थ्य लाता है और दोषों को संतुलन में रखता है। कुल मिलाकर, इसका उद्देश्य सामान्य स्वास्थ्य को बनाए रखना और बेहतर बनाना है, चाहे आप किसी भी उम्र के हों।
१- आयुर्वेदिक दर्शन के अनुसार हमारा शरीर पांच तत्वों (जल, पृथ्वी, आकाश, अग्नि और वायु) से मिलकर बना है। वात, पित्त और कफ इन पांच तत्वों के संयोजन और क्रमपरिवर्तन हैं जो सभी निर्माण में मौजूद पैटर्न के रूप में प्रकट होते हैं।
 
२- भौतिक शरीर में, वात आंदोलन की सूक्ष्म ऊर्जा है, पाचन और चयापचय की ऊर्जा, और शरीर की संरचना बनाने वाली ऊर्जा को साफ करती है। वात गति से जुड़ी सूक्ष्म ऊर्जा है – जो अंतरिक्ष और वायु से बनी है। यह श्वास, निमिष, मांसपेशियों और ऊतक आंदोलन, हृदय की धड़कन और साइटोप्लाज्म और कोशिका झिल्ली में सभी आंदोलनों को नियंत्रित करता है। संतुलन में, वात रचनात्मकता और लचीलेपन को बढ़ावा देता है। संतुलन न होने से, वात भय और चिंता पैदा करता है।
 
३- पित्त शरीर की चयापचय प्रणाली के रूप में व्यक्त करता है – आग और पानी से बना है। यह पाचन, अवशोषण, आत्मसात, पोषण, चयापचय और शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है। संतुलन में, पित्त समझ और बुद्धि को बढ़ावा देता है। संतुलन न होने से, पित्त क्रोध, घृणा और ईर्ष्या पैदा करता है।

कफ  वह ऊर्जा है जो शरीर की संरचना – हड्डियों, मांसपेशियों, टेंडन – का निर्माण करती है और “गोंद” प्रदान करती है जो कोशिकाओं को एक साथ रखती है, जो पृथ्वी और जल से मिलकर बनती है। यह जोड़ों को चिकनाई देता है, त्वचा को मॉइस्चराइज़ करता है, और प्रतिरक्षा को बनाए रखता है। संतुलन में, कफ को प्यार, शांति और क्षमा के रूप में व्यक्त किया जाता है। संतुलन से बाहर, यह लगाव, लालच और ईर्ष्या की ओर जाता है।

Share

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *