आधुनिक भौतिकी (Modern Physics)
एक्स किरणें ( X.rays) :- किरणों की खोज सन् 1885 में प्रोफेसर रूंटगेन ने किया था। रूंटगेन के नाम पर ही इन्हें रूंटगेन किरण भी कहते हैं। एक्स किरणों का उत्पादन करने के लिये कूलिज नलिका काम मे लायी जाती है। इसे सन् 1913 में डा0 कूजिल ने बनाया था। एक्स किरणें आॅख से दिखायी नहीं देती हैं परन्तु फोटोग्राफिक प्लेट पर प्रकाश किरणों की भाॅति की क्रिया करती है। ऐसी किरणों की तरंग दैध्र्य 1Aº से 100Aº तक होती है। इनमें छोटी तरंग दैध्र्य (1Aº) की किरणों में अधिक ऊर्जा होती है जिससे इनकी भेदन क्षमता भी अधिक होती है।
अधिक भेदन क्षमता वाली किरणों को कठोर एक्स किरण कहते हैं। अधिक तरंग दैध्र्य वाली किरणों की ऊर्जा कम होती है जिससे इनकी भेदन क्षमता कम होती है अतः इन्हें कोमल अथवा अल्पभेदी एक्स किरण कहते हैं। एक्स किरणें कम घनत्व के पदार्थों में आसानी से प्रवेश कर जाती है परन्तु अधिक घनत्व के पदार्थों जैसे लोहा, पत्थर आदि में नहीं प्रवेश कर पाती हैं।
इनके इसी गुण का उपयोग शरीर के भीतर टूटी हुयी हड्डी, धॅसी हुयी गोली, पथरी या फेफडों के विकारों को ज्ञात करने में किया जाता है। इस सबके अतिरिक्त इनका उपयोग विकिरण चिकित्सा में, इंजीनियरिंग में, पदार्थों के अणुओं की संरचना आदि ज्ञात करने में किया जाता है।
अर्द्ध चालक (Semiconductor) :- इन पदार्थों की चालकता चालक तथा पदार्थों के बीच की होती है। अर्द्धचालकों की विद्युत चालकता ताप बढ़ाने पर बढ़ती है तथा ताप घटने पर घटती है। अर्द्ध चालकों के उदाहरण हैं- सिलिकान, जर्मेनियम, कार्बन आदि।
ट्रांजिस्टर(Transistor) :- यह अर्द्धचालकों से बनी ऐसी इलेक्ट्रानिक युक्ति होती है जो ट्रायोड वाल्व के स्थान पर प्रयुक्त की जाती है। इसका आविष्कार सन्- 1948 में अमेरिकी वैज्ञानिकों बर्डीन शाॅकले तथा बै्रटन ने किया था। ट्रांजिस्टर ट्रायोड वाल्व की अपेक्षाकृत अधिक मजबूत, सस्ते तथा आकार में छोटे होते हैं ट्राजिस्टटर वाल्व की अपेक्षा कम वोल्टेज पर ही कार्य करते हैं इसलिये इनमें शक्ति क्षय कम होता है। ट्रांजिस्टर युक्त यंत्र स्विच आन करते ही क्रियाशील हो जाते हैं जबकि वाल्व में ऐसा नहीं होता है। ट्रांजिस्टरों में यांत्रिक आघात सहने की क्षमता अधिक होती है तथा इनकी आयु असीमित होती है। ट्राजिस्टरों के इन्हीं गुणों के कारण इनका उपयोग रेडियो, टेलीविजन, कम्प्यूटर आदि में किया जाता है।
प्रतिदीप्ति तथा स्फुरदीप्ति (Flour-rescenne and Phosphoresence) :- कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जिन पर यदि उच्च आवृत्ति का प्रकाश डाला जाये तो वे उसे अवशोषित कर नीची आवृत्ति का प्रकाश उत्सर्जित करने लगते है। यह उत्सर्जन तब तक ही होता है जब तक वस्तु पर प्रकाश पड़ता रहता है। ऐसे पदार्थों को प्रतिदीप्ति पदार्थ तथा इस घटना को प्रतिदीप्ति कहते हैं। उदाहरणस्वरूप जब फ्लोरोसीन, बेरियम प्लाटीनोसाइनाड के पर्दे पर प्रकाश डाला जाता है तो हरे रंग की प्रतिदीप्ति निकलती है। घरों में प्रयोग होने वाली ट्यूबलाइट वास्तव में पराबैगनी प्रकाश का उत्सर्जन करती है।
प्रतिदीप्त पदार्थ प्रकाश का उत्सर्जन तभी तक करते हैं जब तक उन पर प्रकाश डाला जाता है परन्तु कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जिन पर प्रकाश के बन्द करने के बाद भी प्रकाश उत्सर्जित होता रहता है। ऐसे पदार्थों को स्फुरदीप्त पदार्थ तथा इस घटना को स्फुरदीप्ति कहते हैं। उदाहरणस्वरूप कैल्श्यिम सल्फाइड तथा बेरियम सलफाइड सूर्य के प्रकाश का अवशोषण कर नीले रंग का प्रकाश उत्सर्जित करते हैं।
मेंसर (Maser) :- मेंसर शब्द का अर्थ है विकिरण के उदीपित उत्सर्जन द्वारा प्रकाश प्रवर्धन (Microwave Amplification by Stimulated Emission of Radiation) लेसर एक ऐसा यंत्र है जिसके द्वारा एक तीव्र, एकवर्णी समान्तर तथा उच्च कला सम्बद्ध प्रकाश पुंज प्राप्त किया जाता है। लेसर कई प्रकार के होते हैं जैसे- गैसे लेसर, अर्द्धचालक लेसर तथा रूसी लेसर आदि। लेसर का उपयोग विभिन्न कार्यों हेतु किया जाता है जैसे युद्ध क्षेत्र में प्रक्षेपास्त्रों का पता लगाने में राकेट तथा उपग्रहों को नियंत्रित करने में, कठोर पदार्थों जैसे हीरा आदि को काटने में, चन्द्रमा तथा अन्य ग्रहों की दूरियाॅ नापने में आदि। चिकित्सा विज्ञान में भी लेसर का प्रयोग जैसे आॅख की कार्निया ग्राफ्टिंग तथा पथरी, ट्यूमर तथा कैंसर के उपचार में किया जाता है।
मंदक :- रिएक्टर में नयूट्रानों की गति मंद करने के लिए मंदक के रूप में भारी जल, गे्रफाइट या बेरेलियम आक्साइड का प्रयोग किया जाता है।
परमाणु पाइल :-. यह एक प्रकार की परमाणु भट्टी होती है जिसमें परमाणुओं का नियंत्रित दायरे में कृत्रिम तरीके से विखंडन कराया जाता है और अपार ऊर्जा मुक्त होती है।
नियंत्रक (Controller) :- विखंडन क्रिया की गति पर नियंत्रण के लिए कैडमियम की छडों का प्रयोग किया जाता है। रिएक्टर की दीवार में इन छड़ों को लगा दिया जाता है और आवश्युक्तानुसार इन्हें अन्दर-बाहर खिसका कर विखंडन की गति को नियंत्रित किया जाता है।
परिक्षक (Shield) :- सुरक्षा की दृष्टि से रिएक्टर के चारों ओर कंकरीट की मोटी दीवार परिक्षक का कार्य करती है।
परमाणु क्रमांक (Atomic Number) :- किसी परमाणु के नाभिक में विद्यमान प्रोटानों की संख्या अथवा इलेक्ट्रानों की संख्या ही परमाणु क्रमांक है। परमाणु क्रमांक के कारण ही रासायनिक तत्वों के गुणों में भिन्नता होती है।
परमाणु भार (Atomic weight) :- नाभिक में विद्यमान प्रोटानों तथा न्यूट्रानों की संख्या के योग को परमाणु भार कहते हैं।
इलेक्ट्रानः- इसकी खोज 1897 में जे0जे0 थामसन ने की थी। यह ऋणावेशित कण है। इसका द्रव्यमान9-1×10-31 किग्रा तथा इस पर1-69×10-27 कूलाम का आवेश होता है।
प्रोटान :- यह एक धनावेशित कण है जिसकी खोज 1919 में रदरफोर्ड ने की थी। इलेक्ट्रान के बराबर आवेश तथा इसका द्रव्यमान 1.69×10-27 किग्रा है।
न्यूट्रान :- आवेश रहित (उदासीन) मूल कण जिसकी खोज 1932 में जेम्स चैडविक ने की थी। प्रोटान के बराबर इनका द्रव्यमान तथा इनका जीवन काल 17 मिनट होता है।
पाजिस्ट्रान :- इलेक्ट्रान का एन्टीकरण (प्रतिकरण) द्रव्यमान तथा आवेश इलेक्ट्रान के बाराबर यह धनावेशित मूल कण हैं।
पाई मैसाॅनः- इसकी खोज 1935 में वैज्ञानिक युकावा ने की थी। धनात्मक तथा ऋणात्मक अस्थायी कण, द्रव्यमान इलेक्ट्रान के द्रव्यमान का 874 गुना तथा जीवनकाल 10-8 सेकेण्ड हाता है।
फोटान :- ऊर्जा के बण्डल जो प्रकाश की चाल से आगे बढ़ते हेै तथा सभी प्रकार की विद्युत चुम्बकीय किरणों का निर्माण इन्हीं मूल कणों द्वारा होता है।
अर्द्ध आयुः- वह समय जिसमें कोई रेडियो ऐक्टिव तत्व की मात्रा विघटित होकर अपने प्रारम्भिक मात्रा की आधी रह जाती है। इसे ही अर्द्ध आयु (Half life) कहते हैं।
रेडियो एक्टिव क्षय :- किसी रेडियो एक्टिव तत्व से α,β,γ किरणों के उत्सर्जन से उस तत्व के परमाणु क्रमांक तथा परमाणु भारों में परिवर्तन हो जाता है तथा नये तत्व का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया को ही रेडियो ऐक्टिव क्षय कहते हैं।