चट्टान (Rocks) की उत्पत्ति तथा विशेषताएं

चट्टान (Rocks)

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1 चट्टान (Rocks)

rock भूपटल के सभी कठोर एवं मुलायम पदार्थ चट्टान (Rocks) कहलाते हैं, उदारणार्थ- पत्थर, बालू, मिट्टी आदि। अर्थात् भूपटल के वे सभी पदार्थ, जो खनिज नहीं हैं, चट्टानें कहलाती हैं। ये ग्रेनाइट के समान कठोर हो सकती हैं और मिट्टी जैसी मुलायम भी हो सकती है। सामान्यतः वनस्पति एवं जैविक पदार्थों को चट्टानों से अलग माना जाता है। यद्यपि खनिज चट्टानों में ही पाये जाते हैं, फिर भी खनिजों को भी चट्टान (Rocks) से अलग माना जाता है।

चट्टानों एवं खनिजों का निर्माण पृथ्वी की उत्पत्ति के समय हुआ था। इसी कारण ये दोनों तत्व मिश्रित रूप में पाये जाते हैं। अधिकांश चट्टानों में एक या अनेक खनिज पाये जाते हैं। उदाहरण के लिए ग्रेनाइट चट्टानों में कई खनिज मिले रहते हैं। जैसे-स्फटिक, फेल्सपार, अभ्रक आदि। जबकि संगमरमर में एक ही खनिज कैल्साइट(Calcite) मिला रहता है। इस प्रकार चट्टानों में एक या एक से अधिक खनिज उपलब्ध हो सकते हैं। इसके अलावा चट्टानों का अधिकतम भाग खनिज पदार्थों का मिश्रण होता है।

(a) चट्टानों की उत्पत्ति या निर्माण (Formation of Rocks) 

पृथ्वी अपनी उत्पत्ति के समय अत्यधिक गर्म थी। उसके क्रमशः ठंडे होने के कारण आग्नेय चट्टानों का निर्माण हुआ था। इन चट्टानों के टूटने-फूटने से एवं नदी, वायु और सागरीय तरंग आदि के द्वारा परतदार चट्टानें बनीं। आग्नेय और परतदार चट्टानें दबाव एवं अधिक ताप के कारण रूपांतरित चट्टानों में रूपांतरित हो गई। इस प्रकार रूपांतरित चट्टानों की उत्पत्ति आग्नेय एवं परतदार चट्टानों से हुई है। भूपटल में पाई जाने वाली चट्टानों में 75% परतदार चट्टाने हैं तथा 25% आग्नेय और रूपांतरित चट्टानें। लेकिन घनत्व की दृष्टि से लगभग 95% भाग आग्नेय चट्टानों से बना है, शेष 5 प्रतिशत में अन्य चट्टान है।

(b) उत्पत्ति के आधार पर चट्टानें तीन प्रकार की होती हैं-

  1.  आग्नेय चट्टानें Igneous Rocks
  2.  परतदार चट्टानें Sendimentaty Rocks
  3.  रूपांतरित चट्टानेंMatamorphic Rocks

 आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks)

 (Igneous Rocks)आग्नेय चट्टानों को प्रारंभिक चट्टानें(Primary Rocks)  अथवा मूल चट्टानें (basic Rocks) भी कहते है, क्योंकि इनकी रचना सबसे पहले हुई थी। इन चट्टानों की उत्पत्ति लावा (Leva) या मैग्मा (Magma) के ठंडे होने से हुई है। इसलिए कहा जाता है कि ’वे चट्टाने जिनकी उत्पत्ति लावा या मैग्मा के ठंडे होने से होती है, आग्नेय चट्टानें है।’ प्रमुख आग्नेय चट्टानें ग्रेनाइट (Granite) गैब्रो (Gabro) बेसाल्ट (Basalt) आदि है।

पृथ्वी का आन्तरिक भाग अत्यधिक गर्म है, कई भागों में अत्यधिक ताप के कारण वहाँ सभी तत्व पिघली हुई अवस्था में हैं। इस पिघले पदार्थ को मैग्मा कहते हैं। जब मैग्मा ज्वालामुखी द्वारा सतह पर आता है तो इसे ही लावा कहते हैं। लावा में खनिज एवं अन्य तत्व पिघली हुई अवस्था में रहते हैं इसलिए लावा से बनने वाली चट्टान में अनेक खनिज मिले हुए रहते हैं।

आग्नेय चट्टानों की विशेषताएँ (Characteristics of Igneous Rocks)

  1.  आग्नेय चट्टानें पिघले हुए गर्म पदार्थ से बनती हैं, इसलिए ये अत्यधिक कठोर और ठोस होती हैं।
  2.  ये रवेदार होती हैं रवों (Crystals) की संख्या और आकार निश्चित नहीं होता। सामान्यतः अंतर्भेदी चट्टानें (Intrustive Rocks) बड़े रवों वाली होती हैं तथा बाहरी चट्टानों (Extursive Rocks) में छोटे-छोटे रवे पाये जाते हैं।
  3.  इनमें परतें नहीं होतीं, लेकिन एक चट्टान में अनेक जोड़ (Joints) हो सकते हैं।
  4. . इन चट्टानों में जैविक अवशेष(Fossils) नहीं मिलते।
  5. . आग्नेय चट्टानों में रन्ध्र या छिद्र नहीं होते जैसे कि परतदार चट्टानों में होते हैं।
  6.  ये चट्टाने ज्वालामुखी क्षेत्रों में सतह पर ही मिलती हैं।

उपरोक्त विशेषताओं के कारण ही आग्नेय चट्टानें, परतदार या रूपांतरित चट्टानों से पूर्णतः भिन्न होती हैं।

 आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण (Callsification of Igneous Rocks)

यद्यपि सभी आग्नेय चट्टानें गर्म एवं पिघले हुए मैग्मा एवं लावा के ठंडे होने से बनी हैं, लेकिन भूपटल की सभी आग्नेय चट्टानें एक जैसी नहीं हैं। उनकी बनावट, संरचना और स्वरूप में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। सामान्यतः आग्नेय चट्टानें अनेक प्रकारों में प्राप्त होती हैं। उत्पत्ति के आधार पर इन चट्टानों के दो प्रकार होते हैं।

  1.  अंतर्भेदी चट्टानें या अंतः निर्मित चट्टानें (Intrusive Rocks)
  2.  बाह्य निर्मित चट्टानें (Extrusive Rocks)
    1- अंतर्भेदी चट्टानें:- पृथ्वी के आंतरिक भाग के कई स्थान पर सभी पदार्थ अत्यंत गर्म एवं पिघली अवस्था में होते हैं। इन्हें मैग्मा कहते हैं। जब कभी यह अत्यंत गर्म एवं पिघला पदार्थ (मैग्मा) भूपटल के सतह की ओर गतिशील होता है, तब इस मैग्मा का कुछ भाग भूपटल में स्थित दरारों आदि में ठंडा होकर एकत्र हो जाता है। धरातल के नीचे इस प्रकार से बनने वाली चट्टानों को अंतर्भेदी आग्नेय चट्टानें कहते हैं। इन चट्टानों के ठंडे होने में अपेक्षाकृत अधिक समय लगता है, इसीलिए इनके रवे (Crysrals) बड़े आकार के होते हैं। उदाहरणार्थ-गे्रनाइट, फेल्सपार आदि।

सामान्यतः अंतर्भेदी चट्टानें दो प्रकार की होती हैं-

  1.  पातालीय अंतर्भेदी (Plutonic Intrusive Rocks)
  2.  मध्यवर्ती अंतर्भेदी (Hypabyssal Intrusive Rocks)

1. पातालीय अंतर्भेदी चट्टानें:- भूपटल में अधिक गहराई पर पाई जाने वाली आग्नेय चट्टानें हैं। जब मैग्मा ऊपर जाते समय भूपटल के नीचे काफी गहराई में चट्टानों के रूप में जम जाता है तो उन चट्टानों को पातालीय चट्टानें कहते हैं। ग्रेनाइट इस प्रकार की चट्टानों का उदाहरण है।

 2. मध्यवर्ती अंतर्भेदी चट्टानें:- ये भूपटल में बहुत कम गहराई पर पाई जाती है। इनका निर्माण मैग्मा के अपेक्षाकृत कम गहराई पर ठंडे हो जाने के कारण होता है। पातालीय चट्टानों की अपेक्षा ये चट्टानें कुछ जल्दी बनती हैं, इसीलिए इनके रवे ;ब्तलेजंसेद्ध छोटे-छोटे हैं। मध्यवर्ती चट्टानें भूपटल में स्थित विभिन्न दरारों एवं खाली स्थानों में पाई जाती हैं। इन चट्टानों में लैकोलिथ बैथोलिथ फैकोलिथ लैपोलिथ आदि प्रमुख हैं।

मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानों के इन विभिन्न रूपों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है-

1. लैकोलिथ:- इन चट्टानों की आकृति छत्रक के समान गुम्बदाकार रूप में होती है। ऊपरी परत सैकड़ों फुट से हजारों फुट तक मुड़ जाती है।

 2. बैथोलिथ:- ये चट्टानें गुम्बदाकार एवं खड़े ढाल वाली होती हैं। इनका आधार तल बहुत अधिक गहराई पर रहता है। ये ज्वालामुखी उद्गार वाले पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं।

 3. फैकोलिथ:- मोड़दार पर्वतों की अपनति और अभिनति  में जमने वाले लावा स्वरूपों को फैकोलिथ कहते हैं।

 4. लैपोलिथ:- लावा के छिछले रूप में तश्तरी के आकार का जमाव लैपोलिथ कहलाता है। ट्रांसवाॅल में चार सौ किलोमीटर लंबा लैपोलिथ का जमाव पाया जाता है।

 5. सिल:- जब भूपटल के भीतर मैग्मा प्रवाहित होता है, तो उसमें कुछ भाग परतदार एवं रूपांतरित चट्टानों के बीच स्थित दरारों आदि में भर जाता है। जब इस जमाव की मोटाई अधिक या स्पष्ट होती है, तो उस आकृति को सिल कहते हैं। सिल की सामान्य मोटाई कुछ सेंमी. से कई मीटर तक हो सकती है। यह प्रायः क्षैतिज होता है।

 6. डाइक:- सिल के समान लम्बी एवं पतली परतों को डाइक कहते हैं। डाइक एक दीवाल की तरह होती है। इसकी मोटाई कुछ सेमी. से सैकड़ों मीटर तक होती है तथा लम्बाई कुछ मी. से कई किमी. तक होती है।

(2) बाह्य चट्टानें:- मैग्मा या लावा के भूपटल पर आकर ठंडे होने से बनने वाली चट्टानें बाह्य या निःस्रावी  आग्नेय चट्टानें कहलाती हैं। इस प्रकार की चट्टानें अधिकतर ज्वालामुखी के विस्फोट के समय बनती हैं, इसलिए इन्हें ज्वालामुखी चट्टानें भी कहते हैं। ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा धरातल पर आकर फैल जाता है और बाहर के वातावरण में ठंडा होकर चट्टान बन जाता है। भूपटल की ये चट्टानें लावा के बहुत जल्दी ठंडे होने से बनती हैं। इस कारण इनमें रवे अत्यधिक छोटे-छोटे होते हैं। बेसाल्ट इस चट्टान का अच्छा उदाहरण है।

 अवसादी (परतदार) चट्टानें (Sendimentary Rocks) 

अवसादी (परतदार) चट्टानें (Sendimentary Rocks) भूपृष्ठ के जिन चट्टानों में व्यवस्थित परतें होती हैं, उन्हें अवसादी (परतदार) चट्टानें कहते हैं। इनका निर्माण अपरदन के तत्वों, जैसे-नदियों आदि के द्वारा बहाकर लाये गये पदार्थों के जमाव से होता है। आग्नेय चट्टानों का नदियों, हवा सागरीय तरंग, हिमनदी, भूमिगत जल आदि के द्वारा अपरदन होता रहता है। अपरदन से प्राप्त पदार्थ को तलहट या अवसाद (Seximent) कहते हैं। यह अवसाद समुद्रों, झीलों आदि की तली में जमा होता रहता है। यह अवसाद परतों के रूप में प्रतिवर्ष जमा होता है। कई वर्षों की परतों को अलग पहचाना जा सकता है। हजारों वर्षों के बाद अत्यधिक दबाव और ताप के कारण ये परतें चट्टानों के रूप में परिणत हो जाती हैं। इन्हें ही अवसादी या परतदार चट्टानें (Sendimentaty Rocks) कहते हैं। परतदार चट्टानों के उदाहरण-बलुआ पत्थर (Sendstone) चूना पत्थर (Limestone) चाॅक(Chalk) क्ले (Clay) शेल (Shale)आदि हैं।

अवसादी (परतदार) चट्टानों की विशेषताएं (Chaaracterisrics of Sendimentary Rocks)

  1. . इन चट्टानों का निर्माण नदियों आदि द्वारा परतों के रूप में निक्षेपण से हुआ है, इसलिए इनमें परते पायी जाती हैं। यह इनकी प्रमुख विशेषता है, क्योंकि अन्य चट्टानों में परतें नहीं होती।
  2.   परतदार चट्टानों का निर्माण आग्नेय एवं रूपांतरित चट्टानों के टुकड़ों एवं धूल, वनस्पति, जीव जन्तुओं के अवशेष आदि से हुआ है इसलिए इनमें जीव-जन्तुओं के अवशेष तथा मूल चट्टानों के टुकड़े मिलते हैं।
  3.  अधिकांश परतदार चट्टानों का निर्माण समुद्र की तली में हुआ है, इसलिए इनमें समुद्री लहरों आदि के चिह्न मिलते हैं।
  4. ये चट्टानें अपेक्षाकृत कम कठोर होती हे इसलिए अपक्षय एवं अपरदन जल्दी हो जाता है।
  5.  इनमें रवे ;ब्तलेजंसेद्ध नहीं होते, जैसे कि आग्नेय चट्टानों में होते हैं।
  6. ये छिद्रयुक्त और प्रवेश्य ;च्वतवने ंदक च्मतअपवनेद्ध होती है। इसीलिए इनमें पानी एवं खनिज तेल का जमाव भी मिलता है।
  7.  अधिकांश परतदार चट्टानें क्षैतिज (Horizontal)रूप में पायी जाती है।
  8. . परतदार चट्टानों में दरारें (Cracks)जोड़ (Joints)आदि होते हैं, इसीलिए इनका विखण्डन आसानी से हो जाता है।

परिवर्तित या रूपान्तरित चट्टानें (Metamorphic Rocks)

जब आग्नेय और रूपांतरित चट्टानों के रंग, स्वरूप और संगठन में अत्यधिक दबाव के कारण परिवर्तन हो जाता है, तो इन नवीन चट्टानों को रूपांतरित चट्टानें कहते हैं। इन चट्टानों का अधिक ताप के कारण केवल रंग और स्वरूप बदलता है, उनका विघटन (Decomposition)अथवा वियोजन (Disintagration नहीं होता। इन चट्टानों में स्थित खनिजों के गुणों में परिवर्तन हो जाता है, इसके साथ-साथ चट्टान की कठोरता बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। जब कभी अत्यधिक परिवर्तन हो जाता है, तो उसके मूल रूप को पहचानना भी कठिन हो जाता है। चट्टानों में रूपांतरण शीघ्रता से तथा धीरे-धीरे भी हो सकता है। रूपांतरित चट्टानों के उदाहरणों में चूना पत्थर (Limestone) से संगमरमर (Marbale) शेल (Shale) से स्लेट (Slate)उल्लेखनीय है।

मूल चट्टानों में परिवर्तन पाँच प्रकार से होता है-

  1. . तापीय रूपांतरण (Thermal Matanorphism)
  2. जलीय रूपांतरण (Hydro-Matanorphism)
  3. ताप-जलीय रूपांतरण (Hydro-Thermal Matanorphism)
  4. . गतिक रूपांतरण (Dynamic Matanorphism)
  5.  स्थैतिक रूपांतरण (Statics Matanorphism)

1. तापीय रूपांतरण:- पृथ्वी के आंतरिक भाग में स्थित मैग्मा के संपर्क से चट्टानों का स्वरूप बदल जाता है। इसे तापीय रूपांतरण कहते हैं। इस प्रकार का परिवर्तन सामान्यतः ज्वालामुखी उद्भेदन के समय होता है। चूना पत्थर का रूपांतरण मैग्मा के संपर्क के कारण ही होता है। इसी प्रकार बलुआ पत्थर (Sandstone) से क्वार्टजाइट का निर्माण होता है। चट्टान का जो भाग मैग्मा के अधिक संपर्क में रहता है, उसका परिवर्तन अधिक होता है, मैग्मा से जैसे-जैसे दूरी बढ़ती है, परिवर्तन भी क्रमशः घटता जाता है।

 2. जलीय रूपांतरण:– महासागरों में स्थित जल की विशाल मात्रा के भार के कारण तली में स्थित चट्टानों में परिवर्तन हो जाता है, इसे जलीय रूपांतरण कहते हैं। इस प्रकार का परिवर्तन सीमित क्षेत्रों में तथा बहुत कम होता है।

 3. ताप-जलीय रूपांतरण:- यह रूपांतरण ताप एवं जलीय भार के कारण होता है। सामान्यतः इस रूपांतरण का प्रभाव कम ही दिखाई देता है।

 4. गत्यात्मक रूपांतरण:- भूपटल के भीतर चट्टानों के क्षैतिज अथवा ऊध्र्वाधर खिसकने से उत्पन्न घर्षण एवं ताप के कारण यह रूपांतरण होता है। इस रूपांतरण में समय बहुत अधिक लगता है। उदाहरण-शेल (Shale)से स्लेट (Slate) कोयला  से ग्रेनाइट का बनना। सामान्यतः यह रूपांतरण पर्वतीय क्षेत्रों में ही होता है।

 5. स्थैतिक रूपांतरण:- ऊपरी चट्टानों के दबाव के कारण नीचे स्थित चट्टानों में परिवर्तन होता है, तो उसे स्थैतिक रूपांतरण कहते हैं। इसे दाब रूपांतरण भी कह सकते हैं। भूपटल की बहुत सी चट्टानें इस प्रकार रूपांतरित हो जाती है।

 रूपांतरण के कारण (Agents  Matanorphism)

अधिकांश चट्टानों का रूपांतरण दबाव एवं ताप के कारण ही होता है, लेकिन इस प्रक्रिया में अन्य तत्वों का भी प्रभाव देखा गया है, जैसे-रासायनिक प्रक्रिया, घर्षण आदि। इनका विवरण इस प्रकार है,

 1. ताप(Heate)- . यही एक तत्व है, जिसके प्रभाव से भूपटल की अधिकांश रूपांतरित चट्टानें बनी हैं। ताप के कारण मूल चट्टान पिघल जाती है, जिससे उसके स्वरूप और संरचना में पूर्ण परिवर्तन हो जाता है। भूपटल के अंदर ताप का स्रोत मैग्मा होता है। जब ज्वालामुखी विस्फोट होता है, तब इस तत्व का प्रभाव अधिक दिखाई देता है।

 2. दबाव (Compression)- अत्यधिक दबाव के कारण नीचे स्थित चट्टानों में रूपांतरण हो जाता है। इसके अलावा जब दोनों ओर से दबाव पड़ता है, तो बीच का चट्टानी भाग रूपांतरित हो जाता है। इस प्रकार का परिवर्तन महाद्वीपीय निर्माणकारी (Epierogenic- Mocement) और पर्वत निर्माणकारी हलचलों (ogenic- Mocement)के कारण होता है।

 3. घोल (Solution)- विभिन्न रासायनिक पदार्थों के संपर्क के कारण चट्टानों में स्थित पदार्थ घुल जाते हैं और उनमें परिवर्तन हो जाता है। उदाहरण के लिए जल में कार्बन डाईआॅक्साइड और आॅक्सीजन गैस मिल जाने से उसकी रासायनिक क्रियाएँ बढ़ जाती हैं। इस जल के संपर्क में आने पर चट्टानों का स्वरूप एवं संगठन बदल जाता है।

 प्रमुख रूपांतरित चट्टानें

(a) आग्नेय चट्टानों के रूपांतरित रूप:-
  1.  ग्रेनाइट(Granite) से नीस (Gneiss)
  2. . गेब्रो (Grabo)से गेब्रोनीस (Grabo -Gneiss)  एवं सर्पेन्टाइन
  (b) अवसादी चट्टानों के रूपांतरित रूप:-
  1.   बलुआ पत्थर (Sandstone) से क्वार्टजाईट (Quartzite)
  2. . शेल (Shale) से स्लेट (Slate)
  3.  शेल  (Shale)  से सिस्ट एवं अभ्रक
  4.  चूना पत्थर (Limestone) से संगमरमर (Marble)
  5. . कोयला (Coal) से हीरा (Diamond)
  6.  बिटुमीनस से एन्थ्रेसाइट
  7. . डोलोमाइट एवं खड़िया से संगमरमर

 खनिज(Minrals)

.विभिन्न रासायनिक तत्वों (Chemical Elements) से बनने वाले पदार्थों को खनिज कहते हैं। लोंगवेल (Longwell) के अनुसार, खनिज प्राकृतिक रूप से उपलब्ध वह पदार्थ, है जिसमें एक प्रकार के भौतिक गुण होतें हैं और उनकी रचना को रासायनिक सूत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। सामान्यतः खनिज की निम्नलिखित विशेषताए होती हैं-

  1. . इनका एक निश्चित रासायनिक संगठन होता है।
  2. इनकी उत्पत्ति प्राकृतिक रूप से हुई है।.
  3. इनका स्वरूप एक सामान्य होता है।
  4.  इनकी उत्पत्ति पूर्णतः अजैविक तत्वों से होती है।
  5. . इनका निर्माण प्रायः भूपृष्ठीय तत्वों द्वारा ही होता है।

पृथ्वी की संरचना तीन परतों में विभाजित है। पृथ्वी का ऊपरी भाग, भूपटल (Earth Crust) कहलाता है, इसे ही भू-पृष्ठ भू-पर्पटी आदि भी कहते हैं। पृथ्वी पर स्थित पर्वत, पठार, मैदान, समुद्र सभी भूपटल के अंग है। भूपटल की औसत गहराई 10 से 25 मील तक है। इसका निर्माण खनिजों एवं चट्टानों से हुआ है। भूपटल की रचना में लगभग दो हजार खनिजों का योगदान है।

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