Indian Governor General From 1936-48

1936-44:-वाइसराय और गवर्नर जनरल लार्ड लिनलिथगो

भारत में नियुक्त अंग्रेज गवर्नर जनरलों में इनका कार्यकाल सबसे लम्बा था। सविनय अवज्ञा आन्दोलन की समाप्ति और कांग्रेस द्वारा आधिकारिक रूप से मई 1934 में इस आन्दालन को वापस लेने के बाद अधिकाधिक कांग्रेसजन 1935 के अधिनियम में प्रस्तावित विधायिकों में प्रवेश करने के इच्छुक थे। इस नवीन अधिनियम के अन्तर्गत पहला आम चुनाव 1936-37 की सर्दी के मौसम में हुआ। पांच प्रान्तों की विधानसभाओं में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ।

दो अन्य प्रान्तों में कांग्रेस समर्थक गुटों के समर्थन से इसने मंत्रिमण्डलों का गठन किया। कांग्रेस मंत्रिमण्डल का गठन किया। कांग्रेस मंत्रिमण्डल लगभग दो वर्षों तक अक्टूबर 1939 तक सत्तारूढ़ रहे। तदुपरान्त ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत को द्वितीय विश्व युद्ध में घसीटने के प्रश्न पर कांग्रेस मंत्रिमण्डलों ने त्यागपत्र दे दिया। इस अवधि में मुस्लिम लीग कांग्रेस के विरूद्ध जी-तोड़ प्रचार और विषवमन करती रही।

19 फरवरी, 1939 को कांग्रेस का 51वां अधिवेशन हरिपुर (गुजरात) में आयोजित किया गया, जिसमें सुभाष चन्द्र बोस को सर्वसम्मति से कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया। अगले वर्ष सुभाष बोस और नेहरु-गांधी गुट के बीच मूलभूत मतभेद उठ खड़े हुए। अगले वर्ष मार्च 1939 में त्रिपुरी (जबलपुर, मध्य प्रदेश) में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में इन मतभेदों के कारण कांग्रेस के अध्यक्ष पद के निर्वाचन के प्रश्न पर दोनों गुटों में टकराव हुआ। सुभाष बोस ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए गांधीजी के प्रत्याशी पट्टामि सीतारमय्या को चुनाव में पराजित किया। अगले कुछ महीनों में सुभाष बोस एवं गांधी नेहरु गुट के बीच मतभेद बढ़ते गए। अंततः अप्रैल 1939 सुभाष बोस ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और फाॅवर्ड ब्लाॅक नामक एक नई पार्टी का गठन किया।

1936 से यूरोप के क्षितिज पर युद्ध के बादल घने होते जा रहे थे। 3 सितम्बर, 1939 को ब्रिटेन एवं जर्मनी के मध्य युद्ध का विस्फोट हो गया। इस विश्वयुद्ध में भारत को भी युद्धरत बना लिया गया। कांग्रेस ने इस संबंध में वाइसराय की घोषणा का विरोध किया और जवाहर लाल नेहरु ने इस संबंध में कांग्रेस की नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि –

’’युद्ध और शान्ति के मामले भारतीय लोगों द्वारा निर्णीत किए जाने चाहिए। साम्राज्यवादी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए वे अपने संसाधनों के दोहन की अनुमति नहीं दे सकते है।’’

अक्टूबर 1939 में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने यह भी मांग की कि ’’भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र अवश्य घोेेेषित किया जाना चाहिए। ब्रिटिश युद्ध संबंधी नीतियों के विरोध में सभी कांग्रेस मंत्रिमडलों ने त्यागपत्र दे दिए।’’ जिस दिन कांग्रेस मंत्रिमण्डलों ने त्यागपत्र दिए उस दिन मुस्लिम लीग ने मुक्ति दिवस का आयोजन किया।

इस अवधि में मुस्लिम लीग के प्रति गांधीजी के दृष्टिकोण में मूलभूत परिवर्तन आया। 25 जून, 1940 को हरिजन पत्र में प्रकाशित अपने एक लेख में उन्होंने स्पष्टतः स्वीकार किया कि ’मुस्लिम लीग निस्संदिग्ध रूप से साम्प्रदायिक है और भारत को टुकड़ों में बांटना चाहती है।’’ दूसरी ओर मुस्लिम लीग ब्रिटिश सरकार के प्रति घनिष्ट होने का प्रयास कर रही थी और इसके लिए वह युद्ध-प्रयासों को समर्थन दे रही थी।

महायुद्ध की बिगड़ती स्थिति के कारण ब्रिटिश सरकार ने अपने युद्ध प्रयासों में भारत के रजामन्द समर्थन को प्राप्त करने के लिए कुछ साहसिक प्रयास किए। 8 अगस्त 1940 को अगस्त प्रस्ताव के रूप में वाइसराय ने भारत के संबंध में एक नीति विषयक जनमत को पूरा प्रतिनिधित्व देने और युद्ध के उपरान्त नवीन संविधान की रचना करने के लिए एक प्रतिनिधि भारतीय (संविधान) सभा का गठन करने के बारे में प्रस्ताव प्रस्तुत किए।
[adToappeareHere] अगस्त प्रस्तावों की कांग्रेस ने आलोचना की, जबकि लीग ने इनका भव्य स्वागत किया। भारतीय कांग्रेस ने 17 अक्टूबर, 1940 को व्यक्तिगत सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारंभ किया और इसी वर्ष दो माह 17 दिसम्बर को इसे स्थगित कर दिया।

मई 1940 में विस्टन चर्चिल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने। 9 सितम्बर, 1941 को उन्होंने घोषणा की कि अटलांटिक चार्टर भारत पर लागू नहीं होता है। ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपनी युद्ध नीति का प्रतिपादन करते हुए संयुक्त रूप से अटलांटिक चार्टर को प्रसारित किया था, जिसमें अन्य चीजों के साथ यह घोषित किया गया था कि-

’’लोगों को जहाँ अपना जीवन-यापन करना है वहां की सरकार के स्वरूप के बारे में निर्णय लेने का उन्हें अधिकार होगा उनके सार्वभौम अधिकार होंगे और जिन राज्यों को स्वशासन से बलात् वंचित कर दिया गया है, वहां इसकी पुनस्र्थापना की जाएगी’’।

चर्चिल की घोषणा ने भारतीय जनमानस को बुरी तरह आहत किया। इसी समय सुीााष बोस भारत से गुप्त रूप से बच निकले (17 जनवरी, 1941) और बर्लिन पहुंचे। अगले वर्ष उन्होंने आजाद हिन्द फौज का गठन किया जिसने बाहर से भारत की स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र संघर्ष शुरू कर दिया।

1942 के प्रारंभ में विश्वयुद्ध ने उस समय खतरनाक मोड़ ले लिया जब ब्रिटेन के विरूद्ध धुरी राष्ट्रों के पक्ष में जापान महायुद्ध में षामिल हो गया। यह बिल्कुल स्पष्ट था कि जापानियों की बर्मा और मणिपुर से होकर पूर्व की ओर से भारत पर आक्रमण करने की योजना थी। सुदूर पूर्व में जापानी विजयों के आघात से इंग्लैण्ड को भारत के प्रति नम्र रुख अपनाने की प्रेरणा मिली और मार्च 1942 में ब्रिटिश युद्ध मंत्रिमण्डल ने नए संवैधानिक सुधारों के लिए सर स्टेफोर्ड क्रिप्स को भेजा।
क्रिप्स योजना में भारत को डॅमिनूयॅन दर्जा प्रदान करने का वचन दिया गया और इस उद्देश्य के लिए युद्ध के बाद भारतीय लोगों के प्रतिनिधित्व वाली संविधान सभा के गठन को प्रस्तावित किया गया।

मुस्लिम लीग की मांगों के संतुष्टीकरण के लिए यह भी प्रस्तावित किया गया कि यदि कोई ब्रिटिष प्रान्त या देशी रियासत प्रस्तावित संघ में शामिल नहीं होना चाहते हों तो उन्हें अपना पृथक राज्य बनाने का अधिकार होगा। संघ में शामिल नहीं होना चाहते हों तो उन्हें अपना पृथक राज्य बनाने का अधिकार होगा। इस तरह क्रिप्स प्रस्तावों में भविष्य के लिए वायदे किए गए पर कोई तात्कालिक रियासतें नहीं दी गई थी। गांधीजी ने क्रिप्स प्रस्तावों ने क्रिप्स प्रस्तावों को ’’किसी दीवालिया हो रही बैंक की उत्तर दिनांकित चेक’’ बताया।

क्रिप्स मिशन की असफलता से गांधीजी के दृष्टिकोण में तात्कालिक और भिन्न-भिन्न प्रकार का परिवर्तन आया। 14 1942 को कांग्रेस की कार्यकारिणी समित ने एक लग लंबा प्रस्ताव कहा जाता है। इस प्रस्ताव के पारित हाने के काकिया, गांधीजी ने देशवासियों का आह्नान करते हुए कहा कि ’’आप सब लोगों को इस क्षण से स्वयं की स्वतंत्र पुरुष या स्त्री समझना चाहिए और इसी प्रकार व्यवहार करना चाहिए जैसे कि आप स्वतंत्र व्यक्ति हैं। हमें पूर्ण स्वतंत्रता से कम किसी भी धातु से संतुष्टि नही होगा। हम करेंगे का मरेंगे।

8 अगस्त, 1942 को कांग्रेस संगइन के महत्वपूर्ण नेताओं, गांधीजी, अबुल भारत आजाद आदि को बन्दी बना लिया गया। कांग्रेस के नेताओं की सामूहिक गिरफ्तारी से भारत छोड़ो आन्दोलन नेतृत्व-विहीन सबसे अल्पकालिक, सर्वाधिक हिंसात्मक और सबसे अधिक जुझारू गांधीवादी आन्दोलन था।

वर्ष 1942-43 में भारतीय स्वतंत्रता संर्घष समाप्त हो गया। क्रांतिकारी आन्दोलन जो इस शताब्दी के आरंभ मं शुरू था और गांधी अकामदी में शुरू हुआ था और गांधीजी द्वारा 1920 में शुरू किया गया अहिंसक सत्याग्रह लगभग एकसाथ ही समापत हुए।

वर्ष 1943-44 में दो और घटनाएं बटित हुई। मुस्लिम लीग की अलगाववादी मांग अधिक मुखरित हुई और मार्च 1944 में इसने अपने कराची अधिवेशन में ’’बांटो और छोड़ों’’ का नारा दिया। दूसरी महत्वपूर्ण घटना आजाद हिन्द फौज के सैनिक दस्तों की सफलता थी जो मणिपुर तक आ पहुंचे थे।

1944-47: वाइसराय और गवर्नर जनरल लार्ड वेवल

1944-45 में भाग्यचक्र पूरी गति से घूम रहा था। 1944 में लाॅर्ड लिनलिथगो के स्थान पर लाॅर्ड वेवेल को वाइसराय नियुक्त किया गया। ब्रिटेन के आम चुनावों में विस्टन चर्चिल की कंजर्वेटिव पार्टी की हार हुई और लेबर सरकार सत्ता में आई जिसके प्रधानमंत्री क्लेमेन्ट एटली थे। जून 1945 में लाॅर्ड वेवल ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों की संवैधानिक गतिरोध को दूर करने के लिए नई योजना पर विचार करने हेतु शिमला में (शिमला सम्मेलन-जून 25, 1945) आमंत्रित किया। लेकिन साम्प्रदायिक गतिरोध ने सम्मेलन को असफल कर दिया।

अब द्वितीय विश्वयुद्ध का समापन स्पष्टतः नजर आ रहा था। 8 और 9 अगस्त, 1945 को जापान के दो नगरों-हिरोशिमा और नागासाकी पर अणु बमों के विस्फोट से अंतिम साहसी युद्धरत राष्ट्र के सैन्य मंसूबे भी जलकर राख हो गए।

इसके ठीक के बाद सितम्बर 1945 में एटली ने भारत को स्वतंत्रता प्रदान करने से संबंधित अपनी ऐतिहासिक घोषणा की। इससे पूर्व बम्बई में गैर-कमीसन्ड भारतीय नौसैनिकों ;त्ंजपदहेद्ध ने बम्बई में सैनिक विद्रोह कर दिया। मार्च 1946 में कैबिनेट मिशन भारत भेजा गया, जिसने 16 मई, 1946 को अपने प्रस्तावों की घोषणा की। इन प्रस्तावों से भारतीयों को यह विश्वास हो गया कि ब्रिटेन की लेबर सरकार भारत को स्वतंत्र करने के लिए वस्तुतः इच्छुक हैं। कांग्रेस ने कैबिनेट मिशन प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया। जवाहर लाल नेहरु, जिन्हें कुछ समय पूर्व कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया, ने मौलाना अबुल कलाम आजाद से कांग्रेस के अध्यक्ष पद का भार ग्रहण किया।

मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन योजना को अस्वीकार कर दिया और 16 अगस्त, 1946 को सीधी कार्यवाही दिवस का आयोजन किया, जो साम्प्रदायिक दंगों का नग्न नृत्य था। लीग के इशारे पर बंगाल में जो साम्प्रदायिक दंगे भड़के, उनकी चिनगारियों ने संपूर्ण देशें को सांप्रदायिक दंगों की लपटों में लपेट लिया। इसी बीच संविधान सभा के चुनाव आयोजित किए गए और मुस्लिम लीग द्वारा आन्तरीम सरकार में शामिल होने के लिए इंकार करने के बावजूद केन्द्र में जवाहर लाल नेहरु के नेतृत्व में आंतरिम राष्ट्रीय सरकार का गठन किया गया। 9 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा का पहला अधिवेशन हुआ।
[adToappeareHere] 20 फरवरी, 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने भारत से ब्रिटिष शासन के समापन की ऐतिहासिक घोषणा करते हुए कहा कि ’’ब्रिटिश सरकार जून 1948 से पूर्व किसी उत्तरदायी सरकार के हाथों में शासनभार सौंप देगी। एटली ने लाॅर्ड वेवल के स्थान पर विसकाउण्ट माउंटबैटन की वाइसराय के रूप में नियुक्ति की भी घोषणा की।

1947-48:- भारत के अंतिम ब्रिटिष वाइसराय एवं गवर्नर जनरल लार्ड माउण्टबैटन

24 मार्च, 1947 को कार्यभारत संभाला और भारत के विभिन्न विरोधी राजनीतिक दलों से विचार विमर्श किया एवं इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भारत के राजनीतिक गतिरोध का केवल मात्र निदान देश का विभाजन है और उन्होंने अपने इस मन्तव्य के लिए कांग्रेस नेताओं को सहमत कर लिया।

3 जून, 1947 को भारत विभाजन की योजना (तीन जून योजना) की घोषणा की गई। 4 जुलाई, 1947 को एटली द्वारा ब्रिटिश संसद में भारतीय स्वतंत्रता विधेयक प्रस्तुत किया गया। दो सीमा निर्धारण आयोग गठित किए गए-पहला, बंगाल के विभाजन के लिए और दूसरा पंजाब के विभाजन के लिए। सर सायरिल रैउ्क्लिफ दोनों आयोगों के अध्यक्ष थे। 7 अगसत को जिन्ना ने भारत से कराची के लिए प्रस्थान किया, जहां पाकिसतान की संविधान सभा ने उन्हें पाकिस्तान का राष्ट्रपति चुना।

14 अगस्त की रात्रि को भारत की संविधान सभा का सत्र हुआ। उत्साह और उत्तेजना के वातावरण में नेहरु ने इसके सदस्यों को संबोधित किया।

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