पर्यावरण की परिभाषा, संरक्षण, नियतिवाद क्या है?

पर्यावरण की परिभाषा Definition of Environment)

केवल पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है, जहां पर जीवन संभव है। पृथ्वी बनाए रखने के लिए हमें पर्यावरण की मौलिकता को बनाए आवश्यकता है। मनुष्य हो या अन्य जीव-जन्त, सभी पर्यावरण । उनकी उत्पति, विकास, वर्तमान स्वरूप एवं भावी अस्तित्व मर्यावरण की परिस्थिति पर ही निर्भर है।

पर्यावरण मूल रूप से फ्रेंच भाषा के ‘Environer’ शब्द से बना है, का अभिप्राय समस्त पारिस्थितिकी अथवा समस्त बाह्य दशाएँ होता है। पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ है-‘परि’ + ‘आवरण’, अर्थात् जिससे सम्पूर्ण घिरा हआ है। प्रकृति में वायु, जल, मृदा, पेड़-पौधे तथा जीव-जन्तु भी सम्मिलित रूप में पर्यावरण की रचना करते हैं। सामान्यतया किसी स्थान विशेष में मानव के चारों तरफ (स्थल, जल, वायु, मृदा, आदि) का वह आवरण जिससे वह घिरा है, पर्यावरण (Environment) कहलाता है। पर्यावरण अनेक तत्वों का, मुख्यतः प्राकृतिक तत्वों का समूह है, जो जीव जगत को एकाकी तथा सामूहिक रूप से प्रभावित करता है। स्वच्छ पर्यावरण एक शांतिपूर्ण और स्वस्थ जीवन जीने के लिए बहुत आवश्यक है। स्वस्थ पर्यावरण प्रकृति के संतुलन को बनाए रखता है और साथ ही साथ पृथ्वी पर सभी जीवित चीजों को बढ़ने, पोषित और विकसित करने में मदद करता है।

पर्यावरण संरक्षण (Environmental Conservation)

पर्यावरण संरक्षण का तात्पर्य है कि हम अपने चारों ओर के आवरण को संरक्षित करें तथा उसे अनुकूल बनाएं। पर्यावरण और प्राणी एक-दूसरे पर आश्रित हैं। पर्यावरण के साधारणत: दो स्वरूप होते हैं-अनुकूल (favourable) और प्रतिकूल (unfavorable), अनुकूल पर्यावरण उसे कहते हैं, जो जीवधारी के अस्तित्व की रक्षा, विकास पुनरुत्पादन और उन्नति में सहायक होता है। इसके विपरीत, जो पर्यावरण जीवधारी के अस्तित्व की रक्षा विकास, पुनरुत्पादन और प्रगति में बाधक होता है, प्रतिकूल पर्यावरण कहा जाता है। जहां अनुकूल पर्यावरण मिलता है, वहाँ जीवधारी को अपने विकास में प्रायः कोई कठिनाई नहीं उठानी पड़ती, किन्तु जब प्रतिकूल पर्यावरण में उसे रहना पड़ता है, तो वह उसे अपने अनुरूप बनाने का प्रयास करता है। इस परिप्रेक्ष्य में भूगोलवेत्ता पर्यावरण और मानव के संबंधों का अध्ययन करता है।

पर्यावरण नियतिवाद (Environmental Determinism)

उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोप में एक अवधारणा विकसित हुई, जिसको हम “पर्यावरण नियतिवाद’ (environmental determinism) भी कहते हैं। इसके अनुसार यह पर्यावरण निर्धारित करता है कि किसी संस्कृति का कैसे विकास होगा। उदाहरण के लिए, यूरोपीय देशों का मानना है कि गर्म मौसम के देशों, जैसे भारत के लोग आलसी होते हैं, क्योंकि जीवन यापन के लिए उनको संघर्ष नहीं करना पड़ता है।

पर्यावरण संभाव्यता (Environmental Potential)

बीसवीं सदी के प्रारम्भ में पर्यावरण नियतिवाद की अवधारणा पर्यावरण संभाव्यता या पॉसिबिलिस्म (environmental potential) की अवधारणा से प्रतिस्थापित हो गयी, जिसके अनुसार पर्यावरण लोगों की गतिविधियों को कई मायनों में अवरुद्ध कर सकता है, लेकिन यह तय नहीं कर सकता है कि वे सटीक रूप में कैसे व्यवहार करेंगे। ऐसी अवधारणा तकनीकी विकास के कारण विकसित हुई, जिसमें मनुष्य एक प्रकार से निर्णायक की भूमिका में आ गया।

प्रजाति, जनसंख्या और समुदाय (Species, Population and Community)

प्रजाति (species) एक जैविक विचार है, इसका अभिप्राय उस जीव वर्ग से है, जो वंशानुक्रम के द्वारा शारीरिक लक्षणों में समानता रखता है, प्रजाति के सदस्यों का अंत-प्रजनन भी होता है, ताकि वंशवृद्धि हो सके। किसी विशेष प्रजाति के प्राकृतिक लक्षणों का योग किसी दूसरी प्रजाति के प्राकृतिक लक्षणों से भिन्न होता है। इसी प्रकार मानव प्रजाति का अर्थ किसी समाजिक या सांस्कृतिक वर्ग से नहीं है, अपितु प्राकृतिक नस्ल से है।

जनसंख्या किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों का लगभग स्थाई समूह होता है, जिनका आपस में अंतर-प्रजनन होता है। 

जनसंख्या को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक निम्न प्रकार से हैं:

  1. जन्म दर (Natality)
  2. मृत्यु दर (Death Rate)
  3. जनसंख्या प्रसार-उत्प्रवास, आव्रजन, पलायन (Population Dispersal-Emigration, Immi-gration, Migration)
  4. आयु वितरण (Age Distribution)
  5. जनसंख्या वृद्धि दर (Population Growth Rate)
  6. उपलब्ध संसाधन (Available Resources): भोजन, जल, स्थान, इत्यादि

जनसंख्या को उसके सामाजिक परिवेश में जनसंख्या को समुदाय कहते हैं। जनसंख्या के अंतर्गत वह सभी जीव आते हैं, जिनके मुख्य अभिलक्षण एक-दूसरे से मेल खाते हैं।

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