पारिस्थितिकी और पारिस्थितिकी तंत्र, जीवमण्डल और पारिस्थितिकी के घटक

पारिस्थितिकी (Ecology)

पारिस्थितिकी शब्द का उपयोग सबसे पहले वर्ष 1866 में अर्नस्ट हैकल (Ernst Haeckel) द्वारा किया गया। पारिस्थितिकी जीव-विज्ञान की वह शाखा है, जिसमें जीव पर वातावरण के प्रभाव तथा जीवों के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है। यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि यह अध्ययन उनके प्राकृतिक आश्रय (natural home) में किया जाता है।

यह निम्न तीन स्तरों पर विद्यमान है:

  1. जीव-जन्तु–ये कैसे पर्यावरण से प्रभावित होते हैं, और वातावरण को कैसे प्रभावित करते हैं
  2. जनसंख्या
  3. समुदाय (community)

पारिस्थितिकी को ‘पारिस्थितिक तंत्र के अध्ययन’ के रूप में परिभाषित किया गया है। पारिस्थितिकी को एन्वायरनमेंटल बायोलॉजी भी कहा जाता है। अगर आपने अभी तक नहीं पढ़ा तो जान लें – पर्यावरण की परिभाषा, संरक्षण, नियतिवाद क्या है?  

पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem)

  पारिस्थितिकी तंत्र को सर्वप्रथम वर्ष 1935 में आर्थर टान्सले  (Arthur  Tansley) ने परिभाषित करने का प्रयास किया। पारिस्थिति प्राणियों का या यूं कहें कि प्रजातियों की जनसंख्याओं का विनियमन समुदाय (self-regulating community) है, जो एक-दूसरे को प्रभाव करते हैं और उनसे प्रभावित होते है। इनका निर्जीव का आदान-प्रदान होता सागर पारिस्थितिकी तंत्र, और भौतिक पर्यावरण के साथ पदार्थ और ऊर्जा का आदान प्रदान  है। उदाहरणस्वरूप-वन पारिस्थितिकी तंत्र और सागर पारि । यहां तक कि झाड़ियों का झुरमुट भी एक पारिस्थितिकी तंत्र हो सकता है।  एक मुक्त पारिस्थितिकी तंत्र (open ecosystem) वह होता। जहां ऊर्जा और पदार्थ का बाह्य संसार के साथ मुक्त आदान प्रदान होता है।  बंद पारिस्थितिकी तंत्र में यह आदान-प्रदान बिलकुल भी नहीं या  नाम मात्र होता है।

जीवमण्डल (Biosphere):

इस ग्रह पर सभी पारिस्थितिक के परस्पर जुड़े हुए हैं तथा एक-दूसरे पर आश्रित हैं। जैवमण्डल पर चारों तरफ व्याप्त 30 किमी. मोटी वायु, जल, स्थल, मृदा, तथा युक्त एक जीवनदायी परत होती है, जिसके अंतर्गत पादपों एवं जन्तओं जीवन सम्भव होता है। सामान्यत: जैवमण्डल में पृथ्वी के हर उस अंगका समावेश है जहां जीवन पनपता है।

पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषताएँ (Characteristics of Ecosystem)

1. सुनिश्चित कार्यशील क्षेत्रीय इकाई-सभी जीवधारियों एवं उनके भौतिक पर्यावरण के सकल योग का प्रतिनिधित्व। 

२. तीन मूलभूत संघटक:

  1.  जैविक (बायोम) संघटक
  2. अजैविक या भौतिक (निवास्य) संघटक-स्थल, जल तथा वायु
  3. ऊर्जा को भी पारिस्थितिकी तंत्र का तीसरा महत्त्वपूर्ण संघटक माना जाता है

3. ऊर्जा, जैविक तथा भौतिक संघटकों के मध्य जटिल पारिस्थितिकी ‘अनुक्रियाएं

4. मुक्त तंत्र (open system)

5. पारिस्थितिकी तंत्र प्राकृतिक संसाधनों का प्रतिनिधित्व करता है

6. संरचित तथा सुसंगठित तंत्र

7. पारिस्थितिकी तंत्रों को मुख्यतः दो वर्गों में भी बाँटा गया है जलीय (aquatic) पारिस्थितिकी तंत्र और स्थलीय (terrestrial) पारिस्थितिक तंत्र

पारिस्थितिकी के घटक (Components of Ecosystem)

पारिस्थितिक तंत्र के मुख्यत: दो प्रकार के संघटक होते हैं:

1.जैविक घटक

2. अजैविक घटक

जैविक घटक

पर्यावरण के  जैविक घटक या कारक मिलकर जैविक पर्यावरण की रचना करते हैं। इसके अंतर्गत मुख्यत: उत्पादनकर्ता (producers) और उपभोक्ता (consumers) आते हैं।

उत्पादनकर्ता (producers)

वे जीव जो अपना भोजन स्वयं उत्पन्न कर सकते हैं, उनको उत्पादक कहा जाता है। हरे संश्लेषण विधि द्वारा क्लोरोफिल की सहायता से कार्बन डाई और जल से अपना भोजन स्वयं तैयार करते हैं। प्रकाश संश्लेषण उत्प पौधे प्रकाश संश्लेषण ऑक्साइड और जल अपना भोजन तैयार करते है।  प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में दो परिवर्तन होते है। 

  1. अकार्बनिक यौगिक का कार्बनिक यौगिक में परिवर्तन 
  2. सौर ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तन

उपभोक्ता  (Consumers)

उपभोक्ता अपनी भोजन की आवश्यकता के लिए मूलत: उत्पादनकर्ता पर निर्भर करते हैं, जिनके निम्नलिखित तीन स्तर हैं:

1-शाकाहारी (Herbivores):

प्राथमिक उपभोक्ता—यह अपना योजन सीधा उत्पादनकर्ता से प्राप्त करते हैं, इसलिए इनको प्राथमिक उपभोक्ता कहा जाता है। उदाहरणार्थ-खरगोश, बकरी, गाय।

2-मांसाहारी (Carnivores):

इनका भोजन दूसरे प्राणी होते हैं, यह पादप भोजन कभी नहीं करते। उदाहरणार्थ-शेर, बाघ, मेंढक, सांप, किंग फिशर, छिपकली, आदि।

  1. द्वितीयक मांसाहारी उपभोक्ता (Secon-dary carnivores): ये शाकाहारी प्राणियों अर्थात प्राथमिक उपभोक्ताओं को अपना भोजन बनाते हैं, इसलिए इनको द्वितीयक उपभोक्ता कहते हैं। उदाहरण—चूहा, मेंढक, आदि।
  2. तृतीयक मांसाहारी उपभोक्ता (Tertiary carnivores): जो द्वितीयक मांसाहारी उपभोक्ता को अपना भोजन बनाते हैं। उदाहरण-बाघ, बाज, आदि।
3-सर्वाहारी (Omnivores):

जो मांसाहारी और शाकाहारी दोनों ही होते हैं। उदाहरण-मनुष्य, कुत्ता, भालू, मैना, चींटी, आदि।

अपघटक (Decomposers):

इसमें मृतोपजीवी, कवक और जीवाणु आते हैं। ये मृत प्राणियों तथा पौधों का भोजन करते हैं। इनको सैप्रोफाइट्स, रिड्यूसर्स, आदि भी कहा जाता है।

अजैविक घटक

जैविक घटक का स्वरूप जैव जगत की भांति ही जटिल है। इसके अन्तर्गत जव जगत को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित करने वाले प्राकृतिक पर्यावरण क सभी तत्व मुख्यत: आते हैं। अत: अजैविक घटक भी पारिस्थितिकी तत्र का विशेष महत्त्वपूर्ण अंग है, इसके मुख्य घटक निम्नलिखित  है 

  1. अकार्बनिक घटक (Inorganic Compo-nents): मृदा, जल,वायु, प्रकाश, खनिज तत्व, आदि।
  2. कार्बनिक घटक (Organic Components): कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन्स, लिपिड्स, अमीनो अम्ल, आदि।
  3. भौतिक घटक (Physical Components): जलवायु, ताप, प्रकाश, सौर ऊर्जा। पृथ्वी पर मुख्यत: दो प्रकार के पारिस्थितिकीतंत्र पाए जाते हैं-स्थलीय, जलीय।

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