सिंधु घाटी सभ्यता

सिंधु घाटी सभ्यता The Indus valley Civilization

हड़प्पा सभ्यता को निम्नलिखित नामों से जाना जाता है-

1. हड़प्पा संस्कृतिः- इस संस्कृति का सबसे पहले खोजा गया स्थल पंजाब प्रान्त में स्थित हड़प्पा था। इसलिये इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता या हड़प्पा संस्कृति कहा जाता है।

2. सिन्धु सभ्यताः- इस सभ्यता के प्रारम्भिक स्थल सिन्धु नदी के आसपास ही पाये गये, इसलिए इस सभ्यता को सिन्धु सभ्यता कहा जाने लगा। किन्तु अब इस सभ्यता का क्षेत्र काफी विस्तृत हो गया है।
3. कांस्य युगीन सभ्यताः- सैन्धव लोगों ने ही सर्वप्रथम तांबे में टिन मिलाकर कांसा तैयार किया, इसलिए इसे कांस्य युगीन सभ्यता कहा गया।
4. प्रथम नगरीय क्रान्तिः- सिन्धु सभ्यता में ही सर्वप्रथम नगरीय क्रान्ति के चिन्ह दृष्टिगोचर होते हैं। अतः इसको प्रथम नगरीय क्रान्ति के नाम से भी जाना जाता है।
5. सिन्डनः- सैन्धव लोगों ने ही सर्वप्रथम कपास की फसल उगाई, इसी कारण युनानी इस सभ्यता को सिन्डन (कपास) कहने लगे।
उपर्युक्त सभी नामों से इस सभ्यता को पुकारा जा सकता है। किन्तु सर्वाधिक उपयुक्त नाम हड़प्पा सभ्यता ही होगा।

सिंधु घाटी सभ्यता (The Indus valley Civilization) की खोज

सबसे पहले हड़प्पा सभ्यता के विषय में जानकारी 1826 ई0 में चाल्र्स मैसन ने दी। 1852 और 1856 ई0 में जान ब्रिन्टन एवं विलियम ब्रिन्टन नामक इंजीनियर बन्धुओं ने करांची से लाहौर रेलवे लाइन निर्माण के समय यहाँ के पुरातात्विक सामाग्रियों को तत्कालीन पुरातत्व विभाग के प्रमुख कनिंघम से मूल्यांकन करवाया। कनिघंम को भारतीय पुरातत्व विभाग का जनक कहा जाता है। भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना लार्ड कर्जन के समय में अलिक्जेन्डर कनिंघम ने की थी। जब पुरातत्व विभाग के निर्देंशक जान मार्शल थे तभी दयाराम साहनी ने 1921 ई0 में हड़प्पा स्थल की खोज की। अगले ही वर्ष 1922 ई0 में राखलदास बनर्जी ने इसके दूसरे स्थल मोहनजोदड़ों की खोज की।

सिंधु घाटी सभ्यता (The Indus valley Civilization) का काल निर्धारण

सैन्धव सभ्यता का काल निर्धारण भारतीय पुरातत्व विभाग का विवादग्रस्त विषय है। इतिहासकारों ने इस सभ्यता का काल निर्धारण भिन्न-भिन्न प्रकार से निर्धारित किया है। कुछ प्रमुख इतिहासकारों द्वारा निर्धारित तिथियां निम्नलिखित हैं-

1. 3250 ई0पू0 से 2750 ई0- इस तिथि का निर्धारण 1931 ई0 में जान मार्शल ने किया।
2. 2350 ई0पू0 से 1750 ई0पू0 –डी0पी0 अग्रवाल द्वारा निर्धारित यह तिथि कार्बन डेटिंग पर आधारित है।
3. 2800 ई0पू0 से 2500 ई0पू0- इस काल का निर्धारण अर्नेस्ट मैके ने किया।
4. 2500 ई0पू0 से 1500 ई0पू0- यह मार्टिमर ह्वीलर द्वारा निर्धारित तिथि है।
5. 2500 ई0पू0 से 1700 ई0पू0-रेडियो कार्बन-14 (ब्.14द्ध जैसी नवीन पद्धति के द्वारा निर्धारित तिथि है। जो वर्तमान में सर्वाधिक मान्य है।

सिंधु घाटी सभ्यता (The Indus valley Civilization) के निर्माताः

सिन्धु सभ्यता की पुरातात्विक खुदाई से प्राप्त साक्ष्यों से पता चलता है कि यह एक मिश्रित प्रजाति वाली सभ्यता थी जिसमें निम्नलिखित चार प्रजातियाँ सम्मिलित थी-

1.    प्रोटो आस्ट्रेलायड
2.    अलपाईन
3.    भूमध्यसागरीय
4.    मंगोलायड

इसमें प्रोटो आस्ट्रेलायड सर्वप्रथम आने वाली प्रजाति थी किन्तु सभ्यता के निर्माण का श्रेय भूमध्य सागरीय को दिया जाता है।
सिन्धु सभ्यता का विस्तारः-सिन्धु सभ्यता का विस्तार आधुनिक तीन देशों भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में मिलता है। अफगानिस्तान के प्रमुख स्थलों में मुण्डीगाक एवं शुर्तगोई हैं। इस सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल सुत्कांगेडोर (ब्लुचिस्तान) पूर्वी पुरास्थल आलमगीरपुर, उत्तरी पुरास्थल मांडा (जम्मू कश्मीर) तथा दक्षिणी पुरास्थल दैमाबाद। सैन्धव स्थलों का विस्तार त्रिभुजाकार आकृति लिए हुए हैं। जिनका क्षेत्रफल लगभग 20 लाख वर्ग किलोमीटर है।
सैन्धव सभ्यता के प्रमुख नगरः-

(1) हड़प्पा

हड़प्पा पंजाब के मांटगोमरी जिले में स्थित है। इसका सर्वप्रथम उल्लेख चाल्र्स मैशन ने किया जबकि पुरातत्व विभाग के निदेशक जान मार्शल के समय में 1921 में दयाराम साहनी ने इस स्थल की खोज अन्तिम रूप से की। इस स्थल की खोज से माधोस्वरूप वत्स (1926) तथा मर्टिमर  ह्वीलर (1946) भी सम्बन्धित थे।
  •  हड़प्पा से प्राप्त दो टीलों में पूर्वी टीलें को नगर टीले तथा पश्चिमी टीले को दुर्ग टीला के नाम से जाना जाता है।
  •  यहाँ पर एक 12 कक्षों वाला अन्नागार प्राप्त हुआ है। हड़प्पा के सामान्य आवास क्षेत्र के दक्षिण में एक ऐसा कब्रिस्तान स्थित है जिसे समाधि आर-37 कहा जाता है।
  • यहाँ अभिलेखयुक्त मुहरें भी प्राप्त हुई हैं।
  • कुछ महत्वपूर्ण अवशेषों में एक बर्तन पर बना मछुआरे का चित्र, शंख का बना बैल, स्त्री से गर्भ से निकलता हुआ पौधा, पीतल का बना इक्का, ईंटों के वृत्ताकार चबूतरे, गेहँू तथा जौ के दाने प्राप्त हुए हैं।

(2) मोहनजोदड़ोंः-

सिन्धु नदी के दायें तट पर सिन्धु प्राप्त के लरकाना जिले में स्थित मोहनजोदड़ों की खोज 1922 ई0 में राखालदास बनर्जी ने किया। सिन्धी भाषा में मोहनजोदड़ों को मृतकों या मुर्दों का टीला कहा जाता है।

  • मोहनजोदड़ों का सबसे महत्वपूर्ण स्थल विशाल स्नानागार है। इस स्नानागार को मार्शल ने तात्कालीन विश्व का आश्चर्य बताया है।
  •  विशाल अन्नागारः- यह मोहनजोदड़ों की सबसे बड़ी इमारत थी।
  • मोहनजोदड़ों के पश्चिम भाग में स्थित दुर्ग टीले को स्तूप टीला कहा जाता है जिसका निर्माण सम्भवतः कुषाण शासकों ने कराया था।
  • मोहनजोदड़ों से प्राप्त कुछ महत्वपूर्ण अवशेष निम्नलिखित हैं- महाविद्यालय भवन, सी0पी0 की बनी हुई पटरी, योगी की मूर्ति, काँसे की नृतकी, मुद्रा पर अंकित पशुपति शिव, हाथी का कपाल खण्ड, घोडे़ के दांत एवं गीली मिट्टी के कपड़े के साक्ष्य मुख्य हैं।
  • मोहनजोदड़ों की खुदाई से इसके भवनों से सात स्तर प्रकाश में आये हैं। अन्तिम स्तर पर विखरे हुए नर कंकाल प्राप्त हुये हैं जबकि यहाँ से कोई कब्रिस्तान प्राप्त नहीं हुआ।

(3) चान्हूदड़ोंः-

सिन्धु नदी के बांये तरफ स्थित जिसकी खोज 1931 में एम0जी0 मजूमदार ने की। यह नगर अन्य नगरों की तरह दुर्गीकृत नहीं था। यहाँ से हड़प्पोत्तर अवस्था की झूकर-झाकर संस्कृति का प्रमाण प्राप्त हुआ है।

  •   यहाँ के निवासी मनके, सीप, अस्थि तथा मुद्रा की कारीगरी में बहुत कुशल थे।
  •   यहाँ के प्रमुख अवशेषों में अलंकृत हाथी, कुत्ता द्वारा दौड़ाई गयी बिल्ली, लिपिस्टिक, विभिन्न प्रकार के खिलौने प्रमुख हैं।

(4) लोथलः-

गुजरात के अहमदाबाद जिले में भोगवा नदी के किनारे यह स्थल स्थित है। इसकी खोज एस0आर0 राव ने 1955 ई0 में किया। इस स्थल से कोई पूर्वी टीला नहीं मिला है अर्थात पूरा स्थल एक ही टीले द्वारा घेरा गया था। यहाँ के भवनों के दरवाजे और खिड़कियाँ अन्य स्थलों से विपरीत सड़कों की ओर खुलती थी।
इस स्थल के प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • यह स्थल पश्चिम एशिया से व्यापार का प्रमुख बन्दरगाह था।
  • फारस की मुद्रा शील या पक्के रंगों में रंगे पात्रों के अवशेषों से यह पता चलता है कि लोथल एक सामुद्रिक व्यापारिक केन्द्र था।
  • यहाँ से धान और बाजरे का साक्ष्य, फारस की मुहर, घोड़े की लघु मृण्यमूर्ति, तीन युगल समाधि, मुहरें, बाट-माप आदि पुरातात्विक अवशेष प्राप्त हुए हैं।

(5) कालीबंगाः-

कालीबंगा राजस्थान के गंगा नगर जिले में सरस्वती दृश्यद्वती नदियों के किनारे स्थित था इसकी खोज अमलानन्द घोष ने 1951 में की। यहाँ के पश्चिमी और पूर्वी टीले दोनों अलग-अलग रक्षा प्राचीर से घिरे हुए थे। यहाँ के मकान कच्ची ईंटों से निर्मित हुए थे जबकि नालियों में पक्की ईंटों का प्रयोग मिलता है।

  • जुते हुए खेत, हवनकुण्ड, अलंकृत ईंट, बेलनाकार मुहर, युगल तथा प्रतीकात्मक समाधियां आदि कालीबंगा से प्राप्त  प्रमुख पुरातात्विक साक्ष्य हैं।
  • कालीबंगा में अन्तमष्टि संस्कार हेतु तीन विधियां जिसमें पूर्ण समाधीकरण, आंशिक समाधीकरण एवं दाह संस्कार प्रचलित थी।
  •  कालीबंगा से भूकम्प आने से प्राचीनतम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
  •  यहां से एक ही खेत में एक साथ दो फसलों का उगाया जाना तथा लकड़ी को कुरेद कर नाली बनाना आदि प्रमुख साक्ष्य मिले हैं।

(6) बनवाली:-

यह स्थल हरियाणा के हिसार जिले में सरस्वती नदी के किनारे स्थित था इसकी खोज 1974 ई0 में आर0एस0 विष्ट ने की थी।

  • यहाँ पर जल निकासी का अभाव दिखता है।
  • पुरातात्विक साक्ष्यों में मिट्टी के बर्तन, सेलखड़ी की मुहर, हड़प्पा कालीन विशिष्ट लिपि से युक्त मिट्टी की मुहर, फल की आकृति, तिल, सरसों का ढेर, अच्छे किस्म का जौ, मातृ देवी की मृण्ड मूर्ति, तांबे के वावांग, चर्ट के फलक आदि प्रमुख हैं।

(7) धौलावीरा:-

गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तहसील में स्थित है। इसकी खोज 1967-68 में जे0पी0 जोशी ने किया।

  • यह नगर आयताकार तथा तीन भागों किला, मध्य नगर, निचला नगर में विभाजित था।
  • धौलावीरा से सैन्धव लिपि के दस ऐसे अक्षर प्रकाश में आये हैं जो काफी बड़े हैं तथा विश्व की प्राचीन अक्षर माला में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

(8) सुरकोटडा:-

इसकी खोज जे0पी0 जोशी में 1964 में की। यह स्थल भी गुजरात के कच्छ जिले में स्थित है। अन्य नगरों के विपरीत यह नगर दो दुर्गीकृत भागों गढ़ी तथा आवास क्षेत्र में विभाजित था। यहाँ से घोड़े की हड्डी, एक कब्रिस्तान से शवाधान की नई विधि कलश शवाधान का साक्ष्य प्राप्त होता है।

(9) कोटदीजी:-

सिन्धु प्रान्त में खैरपुर में स्थित इस स्थल की खोज धु्रवे ने 1935 ई0 में किया। यहाँ के प्रमुख अवशेषों में वाणाग्र, कांस्य की चूडि़यां, धातु के उपकरण तथा हथियार प्रमुख हैं।

(10) देशलपुर:-

इस स्थल का उत्खनन 1964 ई0 में के0वी0 सौन्दर राजन ने कराया।

  • यहाँ से एक सुरक्षा प्राचीर, मिट्टी तथा जेस्पर के वाट, गाडि़यों के पहिये, छेनी, ताँबे की छूरियां, अँगूठी आदि महत्वपूर्ण अवशेष मिले हैं।

(11) रोजदी:-

गुजरात के सौराष्ट्र जिले में स्थित सैन्धव कालीन महत्वपूर्ण स्थल हैं। यहाँ से प्राप्त मृदभाण्ड लाल, काले तथा चमकदार हैं। रोजदी से हाथी के अवशेष प्राप्त हुए हैं।

(12) आलमगीरपुर:-

उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित सैंन्धव सभ्यता का सबसे पश्चिमी स्थल है। यहाँ की खुदाई से मृदभाण्ड, रोटी बेलने की चैकी, कटोरे के बहुसंख्यक टुकड़े, सैन्धव लिपि के दो अक्षर, कुछ बर्तनों पर मोर, गिलहरी आदि की चित्रकारियां प्राप्त हुई हैं।

13) दैमाबाद:-

महाराष्ट्र के अहमद नगर जिले में प्रवरा नदी के बायें किनारे स्थित सैन्धव सभ्यता का सबसे दक्षिणी स्थल है। यहाँ से मृदभाण्ड, सैंन्धव लिपि की एक मोहर, प्याले, तस्तरी, बर्तनों पर दो सीगों की आकृति, मानव संसाधन आदि के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।   

(14) माण्डी:-

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर जिले में स्थित हड़प्पा सभ्यता का नवीनतम स्थल है। इस स्थल से सोने के छल्ले, टकसाल गृह आदि के पुरातात्विक साक्ष्य मिले हैं।

(15) कुन्तासी:-

गुजरात के राजकोट जिले में स्थित है इस स्थल की खुदाई से लम्बी सुराहियां, दोहत्थे कटोरे, मिट्टी की खिलौना गाड़ी, चूडि़यां, अगूंठी आदि अवशेष प्राप्त हुए हैं।

(16) रोपड़:-

पंजाब के सतलज नदी के तट पर स्थित इस स्थल की खोज 1955-56 में यज्ञदत्त शर्मा ने की।

  •  यहाँ से हड़प्पा संस्कृति के पांच स्तरीय क्रम प्राप्त हुए हैं।
  • मानवीय शवाधान या कब्र के नीचे एक कुत्ते का शवाधान प्राप्त हुआ है।

(17) राखीगढ़ी:-

हरियाणा के जींद जिले में घग्घर नदी के तट पर स्थित इस स्थल की खोज 1969 ई0 में सूरजभान ने किया। राखीगढ़ी को हड़प्पा सभ्यता की प्रान्तीय राजधानी कहा जाता है।

(18) रंगपुरा:-

यह स्थल अहमदाबाद जिले में स्थित है यहाँ पर 1931 ई0 एम0एस0 वत्स तथा 1953 में एस0आर0 राव ने खुदाई करवायी।

  • यहाँ सैन्धव संस्कृति के उत्तरा अवस्था के दर्शन होते हैं। यहाँ से मातृ देवी तथा मुद्रा का कोई साक्ष्य नहीं मिला है।
  • यहाँ धान की भूसी के ढेर, कच्ची ईंटो के दुर्ग, नालियां, मृदभाण्ड, पत्थर के फलक आदि मिले हैं।

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