म्यूचुअल फण्ड (Mutual funds) , Meaning, concept and Types of Mutual Fund

म्यूचुअल फण्ड (Mutual Funds) Meaning

इसका तात्पर्य विशेषज्ञों द्वारा पूंजी बाजार में उन निवेसकों के पैसे लगाने से होता है जिन्हें पूंजी बाजार के सम्बन्ध में उपयुक्त जानकारी नहीं मिलती है। अथवा वे जोखिम से बचना चाहतें है। ऐसे में बाजार विशेषज्ञयों की सलाह में पूंजी निवेश का कार्य किया जाता है। यह दो प्रकार से होता है।

Types of Mutual Funds

1. खुले अतः वाली योजना
2. बंद अतः वाली योजना

ऐसी योजना अथवा निवेश स्कीम जिसे किसी भी समय खरीदा जा सकता है। उसे खुले अतः वाली योजना कहते हैं। परन्तु ऐसी निवेश योजना जो निश्चित समय अवधि से सम्बन्धित होती है। और उससमय अवधि के बाद उन योजनाओं में निवेश नहीं किया जा सकता है, बंद अंतः वाली योजनायें कहलाती हैं।
ऐसे निवेशक जो प्राथमिक बाजार में पूंजी लगाना चाहता हैं। परन्तु द्वितीयक बाजार में पूंजी लगाने से बचतें है वे गतिहीन निवेशक कहे जाते हैं।

शेयर बाजार । स्पेज में सूची बद्ध कम्पनियों के शेयर को अल्फा शेयर कहते हंै। इनको खरीदने या बेंचने में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती है।

ब्लू चिप शेयर (Blue Chip Share):-

ब्लू चिप शेयर शेयर बाजार में सबसे अधिक प्रसिद्ध है और यह ख्याति प्राप्त कंम्पनी के शेयर होते हैं। इनकी बाजार में सबसे ज्यादा मांग होती है। इनको ग्रोथ शेयर भी कहतें हैं। ये सबसे अधिक तरल होते हैं।

ऐसे लोग जो किसी कम्पनी में उच्च अधिकारी हों अर्थात जिनका कम्पनी में 10 प्रतिशत से ज्यादा शेयर हो उन्हें इनसाइडर कहा जाता है। इन्हें कम्पनी के आन्तरिक बातों का ज्ञान रहता है। जिसका लाभ उठाकर ये शेयर की खरीद तथा बिक्री करतें हैं। जिसे वैधानिक नहीं माना जाता है।

सार्ट सेलिंग :- जब किसी व्यक्ति अथवा एजेन्ट द्वारा उसके पास उपलब्ध शेयर से अधिक मात्रा मंे शेयर का विक्रय करता है। और अतिरिक्त शेयर की पूर्ति अन्य जगहों से व्यवस्था करके करता हो तो इसे सार्ट सेलिंग कहतें है। यह प्रक्रिया गैर कानूनी मानी जाती है। और 2001 ई0 में इसे बंद कर दिया गया।

बुल एण्ड बियर :- शेयर बाजार में दो प्रकार के एजेन्ट होते हैं। जो भविष्य में बाजार के उठने की सम्भावना से कार्य करते हैं उन्हें बुल या तेजड़िया कहा जाता है। और इसी प्रकार ऐसे ब्रोकर जो भविष्य मे बाजार की गिरने की सम्भावना से कार्य करते हैं। उन्हें बियर या मंदड़िया कहा जाता है। शेयर बाजार मे पूंजीकरण में लाभ के आधार पर कम्पनियों का वर्गीकरण तीन भागों में किया जाता है-

1. ऐसी कम्पनियाँ जिनका बाजार पूंजीकरण 10 हजार करोड़ रूपये से अधिक हो लार्ज कैप कम्पनिया कहलाती हैं।
2. ऐसी कम्पनियाॅं जहां 2500 करोड़ रूपये से 10 हजार करोड़ रूपये का बाजार पूंजीकरण हो उन्हे मिड कैप कम्पनियाॅ कहा जाता है।
3. यदि बाजार पूंजी करण 2500करोड़ रूपये से कम हो तो उन्हें स्माल कैप कम्पनी के नाम से जाना जाता है।
4. डी मैट शेयर बाजार में लेन-देन करने के लिए डी मैट एकाउन्ट की आवश्यकता होती है तथा इसे खोलने के लिए बैंक कार्ड के साथ आवश्यक प्रमाण पत्र देना होता हैं। डी मैट एकाउन्ट बैंक अथवा ब्रोकर द्वारा खुलवाया जासकता है। और इसके बाद व्यक्ति को एक कोड प्रदान किया जाता है। जिसके माध्यम से शेयर की खरीद तथा विक्री की जाती है।

बांड :- मांग एवं ब्याज की दर के बीच विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है। ब्याजदर कम होने पर बांड की माॅग बड़ जाती है। बांड एक प्रकार की प्रतिभूति होती है। जिसके आधार पर इसे खरीदने वाला ऋण प्राप्त करता है। ऋण पत्र एवं बांड में अन्तर पाया जाता क्योंकि ऋण पत्र दीर्घ कालीन होता और बांड अल्प कालीन होत है। ऐसे बांड जिन पर कोई ब्याज प्राप्त नहीं होती है उन्हें जीरो कूपन बांड कहा जाता है।

पी नोट :- पार्टी सेपर्टी नोट्स विदेशी संस्थागत निवेशको द्वारा उन निवेशकों को दिये जाते हैं जो भारतीय बाजार मे निवेश तो करना चाहते हैं। परन्तु सेवी में रजिस्ट्रेशन नहीं कराना चाहते है।

सेबी (SEBI) – सेबी की स्थापना 1 अपै्रल 1988 ई0 को हुई। जिसका उद्देश्य भारतीय स्टाक बाजार में निवेशकों को संरक्षित करना तथा बाजार के विकास तथा नियमन को सुनिश्चित करना था। इसे 1992 ई0 में वैधानिक दर्जा दिया गया यह स्टाक मार्केट पर नियंत्रण रखने वाली इकाई है।
मुद्रा बाजार एवं पूंजी बाजार के अतिरिक्त कुछ अन्य संस्थायें है जो निम्नलिखित है-

IDBI – इसकी स्थापना 1964 ई0 को हुई थी, इसका उद्देश्य औद्योगिक वित्त प्रदान करना था। इसे 1976 ई में त्ठप् से अलग कर दिया गया और 1995 ई0 में इसे पंूजी बाजार से संसाधन प्राप्त करने की अनुमति दी गयी। यह विकासात्मक संस्था के रूप में कार्य करता है।

ICICI – इसकी स्थापना 5 जनवरी 1955 ई0 को हुई। इसे भारतीय औद्योगिक साख तथा निवेश निगम लिमिटेड के रूप में जाना जाता है। इसका उद्देश्य दीर्घ कालीन ऋण प्रदान करना है तथा उद्योगों में निवेश करना है।

IFCI – भारतीय औद्योगिक वित्त निगम 1948 ई0 स्थापित हुआ और 1993 में ई0 में इसे पब्लिक लिमिटेड कम्पनी के रूप में परिवर्तित किया गया।

EXIM Bank – आयात निर्यात बैंक 1982 ई0 में अपने अस्तित्व में आया जिसकी अधिकृत पूंजी 200 करोड़ रूपये है तथा यह विदेशी ब्यापार में सहायता देता है।

SIDBI –. इसकी स्थापना 1989 ई0 में हुई इसने अपै्रल 1990ई0 में कार्य करना शुरू किया यह नये लघु उद्योगों को खोलने के लिए ऋण देता है इसका मुख्यालय लखनऊ में है।

राज्य वित्त निगम – इसकी स्थापना1951 के अधिनियम के अन्तर्गत की गयी। यह निगम राज्य में लघु एवं मध्यम उद्योगों के विकास के लिए कार्य करते हैं।

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