मुद्रा स्फीति एवं उसके प्रकार

मुद्रा स्फीति

मुद्रा स्फीति की धारणा एक सामान्य प्राकृतिक धारणा है जिसकी चर्चा प्रायाः सभी आर्थिक तथा राजनीतिक चर्चाओं में होती है। स्फीति वह स्थिति है जिसमें मुद्रा का मूल्य गिर रहा हो अर्थात वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हों। मुद्रा स्फीति का यह एक सामान्य लक्षण है कि मूल्य स्तर में वृद्धि होगी और मूल्य स्तर में हाने वाले परिवर्तनों को नापकर मुद्रा स्फीति के अंश या स्तर को नापा जाता है। मन्दी काल या अवसाद की स्थिति में जब कीमतें बहुत नीचे गिर चुकी हों ऐसे स्थिति में मूल्य में थोड़ी से वृद्धि स्फीतिक नहीं कही जायेगी। यदि कोई अर्थव्यवस्था मन्दी की स्थिति में हो और पूर्ति में वृद्धि के बाद मूल्य स्तर में वृद्धि आये तो इसे मुद्रा संस्फीति कहना चाहिए मुद्रा स्फीति नही। एक अन्य शब्दों में मांग का पूर्ति के ऊपर आधिक्य ही मुद्रा स्फीति का सूचक हो।

कीन्स ने यह मत व्यक्त किया कि पूर्ण रोजगार स्तर तक मुद्रा की पूर्ति के फलस्वरूप मांग में वृद्धि के साथ-साथ वस्तुओं की पूर्ति भी बढ़ेगी फलस्वरूप मूल्य स्तर में वृद्धि नही होगी। पूर्ण रोजगार स्तर के बाद मूल्य की वृद्धि को कीन्स से पूर्ण स्फीति कहा।

वर्तमान समग्र मांग या समग्र व्यय स्तर या व्यय योग्य मौद्रिक आय इस वांछित पूर्ण रोजगार व्यय या मांग स्तर से जितना ही अधिक होगा स्फीतिक दबाव उतना ही अधिक होगा और इन दोनों का अन्तर ही अर्थव्यवस्था में स्फीतिक अन्तराल प्रदर्शित करेगा।

स्फीतिक अन्तराल त्र वर्तमान व्यय योग्य आय – पूर्ण रोजगार के लिए वांछित व्यय योग्य मौद्रिक आय।

कीन्स ने मुद्रा स्फीति को पूर्ण रोजगार का प्रतिभाष माना है इसलिए उनके अनुसार स्फीतिक अन्तराल की स्थिति पूर्ण रोजगार स्तर के बाद ही प्राप्त होगी पहले नहीं।

मुद्रा स्फीति के प्रकार

1. वस्तु स्फीति :- उत्पादन में कमी के कारण जब सामान्य मूल्य में वृद्धि होती है तो इसे वस्तु स्फीति कहते हैं।

2. पूर्ण स्फीति तथा आंशिक स्फीति :- पूर्ण रोजगार के पहले मुद्रा में वृद्धि के कारण जो मूल्य स्तर में वृद्धि होती है वह स्थायी होती है इसे आंशिक स्फीति कहेगें। परन्तु जब पूर्ण रोजगार स्तर के बाद मूल्य स्तर में वृद्धि हो तो इसे पूर्ण स्फीति कहते हैं।

3. खुली या छिपी या दमित स्फीति :- जब मुद्रा की पूर्ति के फलस्वरूप मूल्य स्तर में वृद्धि बिना किसी रोक-टोक के होने दिया जाता है तो इसे खुली स्फीति कहते हैं पर जब मूल्य स्तर में होने वाली वृद्धि को रोक लिया जाता है जिससे मूल्य स्तर में वृद्धि नहीं दिखाई नही देती है इसे दमित या छिपी स्फीति कहते हैं।

मुद्रा अवस्फीति (संकुचन)

मुद्रा अवस्फीति मुद्रा स्फीति की सर्वथा विपरीत स्थिति है। मुद्रा स्फीति वह अवस्था है जिसमें मुद्रा का मूल्य बढ़ता है और कीमतें नीचे गिरती हैं। जब पूर्ण रोजगार स्तर के वांछित मूल्य स्तर से नीचे मूल्य स्तर गिरता है तो मूल्य स्तर की गिरावट को अवस्फीति कहते हैं। मुद्रा अवस्फीति का सबसे अधिक कारण अर्थव्यवस्था में अधिनियोग तथा उसके फलस्वरूप अधिक उत्पादन है। जब अभिवृद्धि की स्थिति में लाभ की बहुत अधिक प्रत्याशा के कारण साहसी बहुत अधिक मात्रा में विनियोग कर देते हैं तो बाजार में प्रचलित में प्रचलित मूल्य पर माँग की तुलना में बहुत अधिक उत्पादन या पूर्ति हो जाती है।

अवस्फीति आर्थिक क्रियाओं की मन्दी स्थिती होती है। इसके प्रतिकूल प्रभाव के कारण अर्थव्यवस्था में उत्पादन रोजगार तथा अन्य व्यापारिक क्रियाओं में कमी आती है। मन्दी की स्थिति में मूल्य बहुत तेजी से गिरता हुआ होता है दूसरी ओर लागत न केवल स्थिर रहती है बल्कि इसमें निरन्तर वृद्धि होती रहती है इसलिए लाभ की सीमा कम होती जाती है फलस्वरूप उत्पादन तथा रोजगार कम होने लगता है।

मुद्रा-प्रत्यवस्फीति तथा मुद्रा अपस्फीति:- जब मन्दी के परिणामों को दूर करने के लिए जानबूझकर मुद्रा का विस्तार किया जाता है तो उसे मुद्रा प्रत्यवस्फीति कहते हैं। मूल्य की वृद्धि के साथ-साथ रोजगार उत्पादन आय में वृद्धि होती है और अर्थव्यवस्था पूर्ण रोजगार अवस्था की स्थिति को प्राप्त कर लेती है।

मुद्रा स्फीति अन्याय पूर्ण क्यों:-
1. मुद्रा स्फीति एक प्रकार का अप्रत्यक्ष कर है। मुद्रा स्फीति के कारण जब मूल्य स्तर में वृद्धि होती है तो धनी तथा गरीब दोनों को एकही मूल्य चुकाना पड़ता है इस प्रकार कर का बोझ गरीब पर अधिक पड़ता है। घाटे की बचत तो अग्नि में घी का कार्य करती है।

2. मुद्रा स्फीति आय के असमान जन्म देती है इसके कारण निम्न वर्ग तो कष्ट उठाता है जबकि पूंजी तथा सम्पत्ति का केन्द्रीयकरण धनिकों के हाथ में हो जाता है।
3. मुद्रा स्फीति में आर्थिक प्रगति तो होती है पर बड़ी ही अस्थाई। यह प्रगति कुछ दिनों के बाद अभिवृद्धि की स्थिति में आ जाता है जहां से अर्थव्यवस्था मन्दी की ओर मुड़ जाती है।
4. मुद्रा स्थिति का प्रभाव प्रतिगामी होता है क्योंकि इसका प्रतिकूल प्रभाव उन पर ज्यादा पड़ता है जो कमजोर तथा जो इसके बोझ को सहन करने में असमर्थ है।
5. मुद्रा स्फीति सामाजिक दृष्टि से अन्यायपूर्ण है क्योंकि यह जनता के नैतिक स्तर को गिरा देती है। सट्टाबाजी जुआ चोर बाजारी, भ्रष्ट्राचार आदि बुराईयां मुद्रा स्फीति की उपज हैं।

स्टेगफ्लेशन :-  स्टेगफ्लेशन एक ऐसी विरोधाभास की स्थिति है जिसमें अर्थव्यवस्था में मुद्रा स्फीति के साथ-साथ गतिहीनता की स्थिति विद्यमान रहती है। इस स्थिति में अर्थव्यवस्था के कुछ क्षेत्रों में एक ओर ऊंचे मूल्य तथा अधिपूर्ण रोजगार की स्थिति दिखाई पड़ती है तथा दूसरी ओर कुछ क्षेत्रों में गतिहीनता की स्थिति अर्थात औद्योगिक तथा कृषि उत्पादन की कमी अत्यधिक मात्रा में बेरोजगारी प्रतिकूल भुगतान संतुलन, अप्रयुक्त उत्पादन क्षमता आदि दिखाई देती है। इस प्रकार की स्थिति में मूल्य स्थिति में वृद्धि के साथ-साथ बेरोजगारी की स्थिति पायी जाती है। अधिक उचित तथा प्रभावपूर्ण स्टेगफ्लेशन की स्थिति का सामना करने के लिए विभेदात्मक मौद्रिक तथा राजकोषीय नीति जिसके अन्तर्गत मौद्रिक तथा राजकोषीय स्तरों का स्वरूप विभिन्न क्षेत्रों की समस्या तथा विशेषता के अनुरूप हो। प्रत्येक के लिए एक ही नहीं दोनों अपनाये।

बैंक अधि विकर्ष :-  यह एक विशिष्ट प्रकार का ऋण है जो बैंक अपने विश्वनीय ग्राहकों को प्रदान करता है इसके अन्तर्गत बैंक अपने ग्राहकों को उनके द्वारा खाते में जमा राशि से अधिक निकासी का अधिकार देता है। जमा राशि से अधिक निकाली गयी राशि पर बैंक ब्याज लेता है।

ट्रस्टी तथा एक्जीक्यूटर :-  बैंक अपने ग्राहकों के वसीयतनामें को सुरक्षित रखने का कार्य करता है तथा मृत्यु के बाद उन्हें क्रियान्वित करता है।
लीड बैंकिंग स्कीम:- बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों के विस्तार पर बल दिया। इसके सम्बन्ध में प्रो0 डी0आर0 के अध्यक्षता में एक अध्ययन समूह ने शाखाओं के विस्तार के सम्बन्ध में क्षेत्रीय प्रत्यागम का सुझाव दिया। रिजर्व बैंक द्वारा नारी मैन समिति ने गाड्गिल समिति ने क्षेत्रीय प्रत्यागम को स्वीकार किया और इसी को लीड बैंकिंग स्कीम के अन्तर्गत एक व्यापारिक रूप प्रदान किया। समिति ने उन क्षेत्रों व जिलों में जहां राष्ट्रीयकरण के समय पर्याप्त बैंकिंग सुविधायें नही थी बैंकिंग सुविधाओं को विकसित करने की योजना बनायी। रिजर्व बैंक ने नारी मैन के सुझाव को स्वीकार करते हुए लीड बैंक योजना चलाया। लीड बैंक योजना का मुख्य उद्देश्य विशेष आवंटित जिले में गहन विकास करना था तथा आवंटित जिले में बैंकिंग तथा सुविधा के विकास में प्रमुख भूमिका या लीड रोड निभाने के लिए कहा गया।

लीड बैंक योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे।
1. सम्पूर्ण देश को व्यापारिक तथा सहकारी बैंकिंग सुविधाओं को समुचित रूप प्रदान करना।
2. अपने आवन्टित जिले में व्यष्टि स्तर पर बैंकिंग सुविधा का विस्तार करना।
3. जिले के विकास के लिए अधिकतम साख सुविधा का विस्तार करना।
4. जिले के व्यापारिक बैंक, सहकारी बैंक, अन्य वित्तीय संस्थाओं तथा सरकारी अधिकारियों के बीच समन्वय स्थापित करना, जिससे जिले का विकास हो सके।
5. जिले में लोगों की बचत का गतिशीलन।
6. जिले के विकास में उत्पन्न होने वाले प्रमुख अवरोधों का पता लगाना तथा उचित संस्थाओं को उन्हें दूर करने के लिए प्रेरित करना।

उच्च शक्ति मुद्रा :- यह मुद्रापूर्ति का सिद्धान्त है चक्रवर्ती समिति की रिपोर्ट के अनुसार निधि मुद्रा, अत्यधिक शक्तिमान मुद्रा, आधार मुद्रा या प्राथमिक मुद्रा के रूप में जानी जाती है। बैंकिग क्षेत्र की साख सृजन शक्ति इसी मुद्रा के ऊपर निर्भर करती है।

विधि मुद्रा = रिजर्व बैंक को दी गयी निवल साख

  1. रिजर्व बैंक द्वारा बैंको को दिया गया साख
  2.  रिजर्व बैंक द्वारा व्यापारिक क्षेत्र को दिया गया साख
  3.  रिजर्व बैंक की निवल विदेशी विनिमय सम्पत्ति
  4. जनता के प्रति सरकार का करेन्सी दायित्व
  5.  रिजर्व बैंक का निवल अमौद्रिक दायित्व

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