मनुष्यों में रूधिर वर्ग Blood group humans

कार्ल लैण्डस्टीनर ने यह बताया कि मनुष्यों  में रूधिर सबका समान नहीं होता। मानव के लाल रूधिराणुओं की कोशिकाकला में रूधिर के प्लाज्मा में रूधिराणुओं के अभिश्लेषण से सम्बन्धित प्रोटीन पदार्थ होते हैं। लाल रूधिराणुओं में ऐसे पदार्थों को प्रतिजन या एंटीजेन्स या एग्लूटीनोजेन्स तथा प्लाज्मा में उपस्थित पदार्थों को प्रतिरक्षी या एंटीबाडीज कहते हैं। प्रतिजन की ग्लाइकोप्रोटीन्स के रूप में होते हैं- A वं B प्रतिरक्षी भी दो प्रकार के होते हैं। A रोधी (Anti-a) तथा (Anti-b)रोधी  जिन्हें क्रमशः a और b लिखा जाता है।

रूधिर बैंक (Blood bank) -: बैंको में रूधिर को 30 दिन तक उसके उसी रूप में रखा जा सकता है। प्लाज्मा को सुखाकर पाउडर के रूप में रख सकते हैं। बाद में इसमें आसुत जल मिलाकर उपयोग किया जा सकता है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने रूधिर के स्थान पर पॉलीविनाइल पाइरोलिडॉन का सफल उपयोग किया है।
सम्पूरक जीन्स(Complementary Genes) -: इसमें एक अनुवांशिक लक्षण के दृश्य रूप प्रकटन में जीनों की दो विभिन्न एलोली जोड़यों के बीच ऐसी प्रभावित होती है कि किसी भी जोड़ी के प्रबल जीन की अभिव्यक्ति तभी होती है जब दूसरी जोड़ी का प्रबल जीन भी उपस्थित हो।

अनुपूरक जीन्स (Supplementary Genes) -: इस आनुवांशिकी में एक लक्षण का दृश्य रूप प्रकटन एलीली जीन्स की दो जोड़ियों के पारस्परिक प्रभाव से होता है। इसमें एक जोड़ी के प्रबल जीन की अभिव्यक्ति तो दूसरी जोड़ी के प्रबल जीन की उपस्थिति के बिना ही स्वतन्त्र रूप से हो जाती है। परन्तु दूसरी जोडी के प्रबल जीन की अभिव्यक्ति पहली जोड़ी के प्रबल जीन की उपस्थिति में होती है।

सहयोगी जीन्स(Collaborative Genes) -: इस वंशागति में भी एलीली जीन्स की दो जोड़ियॉ काम करती हैं। इनमें से प्रत्येक जोड़ी के प्रबल जीन का अपना अलग प्रभाव होता है, परन्तु दोनों जोड़ियों के प्रबल जीन्स साथ-साथ हों तो एक नये लक्षण का प्रकटन होता है।

मानव जीनो के व्यतिक्रम से उत्पन्न होने वाले कुछ रोग

रंजकहीनता(Albinism) -: मिलैनिन की कमी से त्वचा तथा बालों का सफेद होना, रूधिर कोशिकाओं के कारण पुतलियों का गुलाबी या लाल दिखायी पड़ना ही रंजकहीनता है। मिलैनिन ‘टाइरोसिनेज’ एंजाइम की सहायता से बनता है। यह एंजाइम एक जीन के प्रभाव से बनता है।

एल्कैप्टोनूरिया(Alkaptonuria) -: इसके रोगी शरीर में ही बनने वाले होमो जेन्टीसिक अम्ल का विखण्डन नहीं कर पाते हैं। रूधिर में इस अम्ल की मात्रा बढ़ जाती है। जोड़ों में इसके जमाव से गठिया रोग हो जाता है। होमोजेन्टीसिक अम्ल के विखण्डन के लिए आवश्यक एन्जाइम एक प्रबल जीन के नियन्त्रण में संश्लेषित होता है। जिन मुनष्यों में यह जीन सुप्त होता है,उन्हीं को यह रोग होता है।

(Rh-tactro) -: लैण्डस्टीनर एवं वीनर ने रीसस बन्दर के लाल रूधिराणुओं की कला में एक प्रतिजन की उपस्थित का पता लगाया और इसे ही रीसस तत्व या प्रतिजन का नाम दिया। भारतीयों में यह तत्व 97 प्रतिशत व्यक्तियों में पाया जाता हैं जिन व्यक्तियों के अन्दर यह तत्व नहीं पाया जाता उन्हें Rh निगेटिव Rh कहते है। मनुष्य के रूधिर में Rh प्रतिरक्षी Rh-Antibodies नहीं होते, लेकिन यदि रूधिर आधान में किसी Rh को किसी Rh+ का रूधिर चढ़ा दिया जाता है तो प्रापक के प्लाज्मा में धीरे-धीरे Rh प्रतिरक्षी बन जाते हैं। लेकिन Rh+ रूधिर उसे दुबारा चढ़ा दिया जाये तो प्रापक की मृत्यु हो सकती है।

Rh का लक्षण भी आनुवांशिक होता है। इसकी वंशागति मेन्डलियन नियमों के अनुसार,दो एलीली जीन्स R,r द्वारा होती है। इसमें जीन Rh+ लक्षण जीन r(Rh-लक्षण) पर प्रबल होते हैं।

एरिथ्रोब्लासटोसिस फीटैलिस :- Rh से सम्बन्धित रोग है जो केवल शिशुओं में जन्म से पहले ही गर्भावस्था में होता है। यह बहुत कम लेकिन घातक होता है। इससे प्रभावित शिशु की गर्भावस्था में ही या जन्म के शीघ्र बाद मृत्यु हो जाती है। ऐसे शिशु सदा Rh+ होते हैं। इनकी माता Rh-. तथा पिता Rh+होता है।

डाउन्स सिन्ड्रोम (Syndrome) :-  इस प्रकार के व्यक्तियों के 21वीं जोड़ी के गुणसूत्र दो के बजाय तीन होते हैं। औसतन 700 नवजात शिशुओं मे से एक इस सिन्ड्रोम वाला होता है। इस सिन्ड्रोम वाले व्यक्ति छोटे कद एवं मन्द बुद्धि वाले होते हैं। लगभग 16-17 वर्ष की आयु तक प्रायः इनकी मृत्यु हो जाती है। इनमें केवल 8 प्रतिशत व्यक्ति ही 40 वर्ष की आयु तक जीवित रहते हैं।

टरनर्स सिन्ड्रोम :-  इस सिन्ड्रोम से ग्रसित स्त्रियों के लिंग गुणसूत्रों में केवल एक x गुणसूत्र उपस्थित रहता है (44़+xx) औसतन 5000 स्त्रियों में एक स्त्री टरनर सिन्ड्रोम वाली होती है। इस प्रकार की स्त्रियों का कद छोटा तथा जननांग अल्पविकसित होता है। इस प्रकार ये स्त्रियाँ नपुंसक होती है।

क्लाइनफेल्टर्स सिन्ड्रोम :- औसतन 500 पुरूषों में से एक पुरूष में पाये जाने वाले इस सिन्ड्रोम के कारण व्यक्ति के लिंग गुणसूत्र में दो के बजाय तीन और प्रायः ग्ग्ल् गुणसूत्र होते हैं। अतः ये लिंग गुणसूत्रों के लिए ट्राईसोमिक होते है 2n+1 या 44़+XXY गुणसूत्र की उपस्थिति के कारण इनका शरीर लगभग सामान्य पुरूषों जैसा होता है, लेकिन एक अतिरिक्त गुणसूत्र की उपस्थिति के कारण वृषण तथा अन्य जननांग छोटे होते हैं। और शुक्राणु भी नहीं बनते। इनमें स्त्रियों जैसे स्तनों का विकास हो जाता है ऐसे क्लाइन फेल्टर सिन्ड्रोम भी पाये जाते हैं जिनमें लिंग गुणसूत्र XXY से XXX या तीन से अधिक होते हैं।

ऐन्यु प्लॉयडी में गुणसूत्रों की बदली हुई संख्या अर्धसूत्रण में एक या अधिक समजात जोड़ियों के गुणसूत्रों के परस्पर पृथक न हो पाने के कारण गुणसूत्रों की कुल संख्या कुछ कम या अधिक हो जाती है।

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