भारतीय कृषि

भारतीय कृषि

भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था के आधार के रूप में जानी जाती है। पिछले कुछ दशकों से कृषि नीति खाद्यान्न उत्पादन में स्व- पर्याप्तता तथा निर्भरता की रही है खाद्यान्न उत्पादन जो सन् 1951-52 में मात्र 52 मिलियन टन था वह 2013-14 में बढ़कर 254.8 मिलियन टन हो गया। 12वीं पंचवर्षीय योजना के प्रथम तीन वर्षों में कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र के ळक्च् में क्रमशः 1.2 प्रतिशत 3.7 प्रतिशत और 1.1 प्रतिशत की वृद्धि दर रही है।भारतीय कृषि का वर्गीकरण दो आधार पर किया जाता है।

1. समय के आधार पर भारतीय कृषि :-

(1) खरीफ की फसलें (Kharif Crops) :-  यह फसल जुलाई में बोई जाती है तथा अक्टूबर में काटी जाती है, खरीफ के मौसम में मुख्य रूप से धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास, गन्ना, अरहर, मूँग, उर्द, लोबिया, तिल, सोयाबीन और मूँगफली की खेती की जाती है।

(2) रबी की फसलें (Ravi Crops) :- ये फसलें अक्टूबर में बोई जाती है और अप्रैल के प्रारम्भ में ही काटी जाती है रबी के मौसम में मुख्य रूप से गेहूँ, जौ, चना, तोरिया, मटर और सरसों की खेती की जाती है।

(3) जायद की फसलें (Zaid Crops) :- रबी और खरीफ की फसलों के अतिरिक्त कुछ स्थानों पर मार्च से जून के मध्य जायद की फसल की खेती भी होती है, जिसमें मूँग, उर्द, तरबूज, खरबूज, ककड़ी, तरकारियाँ व सूरजमुखी आदि पैदा की जाती है।

2.उपयोग के आधार पर भारतीय कृषि

(1) खाद्यान्न फसलें  :-  भारतीय कृषि की एक प्रमुख विशेषता खाद्यान्न फसलों की प्रधानता है इसके अन्तर्गत गेहूँ, चावल मोटे अनाज तथा दलों को शामिल किया जाता है।

(2) गैर खाद्यान्न या नगदी फसलें  :-  गैर खाद्यान्न फसलों के अन्तर्गत तिलहन, कपास, जूट रबड़, चाय, काफी, गन्ना, तम्बाकू, आलू, मूँगफली इत्यादि को शामिल किया जाता है।

भारतीय कृषि में खेती की प्रकार (Types of Farminc) :-

खेती के प्रकार से अभिप्राय भूमि के उपयोग फसलों के उत्पादन, पशुधन तथा कृषि के क्रियाकलाप एवं रीतियों से लगाया जाता है। खेती के निम्नलिखित प्रकार हैं-

विशिष्ट खेती (Speicalised Farmins) :- इस प्रकार की खेती के अन्तर्गत एक ही फसल या उद्यम का उत्पादन बाजार के लिए किया जाता है तथा किसान अपने आय के लिए केवल उसी एक उद्यम पर निर्भर रहता है। जैसे-चाय, कहवा, गन्ना रबड़ आदि।

रैचिंग खेती (Ramching Farming) :-  इस प्रकार की खेती में भूमि की जुताई, बुआई, गुड़ाई आदि नहीं की जाती है और न ही फसलों का उत्पादन किया जाता है परन्तु प्राकृति वनस्पति पर तमाम प्रकार के पशुओं जैसे भेड़, बकरी, इत्यादि को चराया जाता है इस प्रकार की खेती तिब्बत, आस्ट्रेलिया, अमेरिका तथा भारत पर्वतीय तथा पठारीय क्षेत्रों में भेड़, बकरी चराने के लिए की जाती है। आस्ट्रेलिया में भेड़, बकरी रखने वालों को रैंचर की संज्ञा दी जाती है।

शुष्क खेती  :-  शुष्क खेती उत्पादन की वह प्रणाली है जिसके अन्तर्गत किसी निश्चित क्षेत्र पर पानी की अधिक मात्रा को सुरक्षित रखकर भरपूर उत्पादन किया जाता है। शुष्क खेती के क्षेत्रों में फसलों के उत्पादन के लिए भूमि में वर्षा के पानी की अधिक से अधिक मात्रा को सुरक्षित रखा जाता है।

मिश्रित खेती (Mixed Farming) :- मिश्रित खेती में फसलों उत्पादन के साथ-साथ पशु पालन तथा डेरी उद्योग भी किया जाता है। भारत जैसे विकासशील देश में जहां खेती में मशीनों का प्रयोग कम किया जाता है, मिश्रित खेती एक महत्व पूर्ण स्थान रखती है इसमें पशु पालन व फसल उत्पादन एक दूसरे पर पूर्णतया निर्भर रहते है।

बहु प्रकारीय खेती (Didersified Farming)  :- इस प्रकार की खेती से तात्पर्य उन जोतो या फार्मों से है जिन पर आमदनी के श्रोत कई उद्यमों या फसलों पर निर्भर करते है और प्रत्येक उद्दम अथवा फसल से जोतो की कुल आमदनी का 50 प्रतिशत के कम ही भाग प्राप्त होता है ऐसी खेती को बहु प्रकारीय खेती कहते है।

यदि भारतीय कृषि में सबसे प्रमुख समस्या का विशलेषण करें तो वह अल्प उत्पादकता की समस्या अर्थात् विभिन्न फसलों के प्रति हेक्टेयर उत्पादकता की मात्रा अन्य देशों से बहुत कम है। कृषि में प्रयुक्त होने वाली भूमि की तुलना में उनसे प्राप्त होने वाला उत्पादन अपेक्षाकृत कम होता है।

भारत में कृषि के विकास को प्रभावित करने वाले तीन मुख्य कारक- बीज, उर्वरक और कृषि निवेश हैं।

बीज (Seeds) :- फसलों को उगाने के लिए किसी भी स्पेसीज का जो भाग प्रवर्ध्य (Propagule) के रूप इस्तेमाल किया जाता है, उसे बीज (Seeds) कहते हैं। उत्तम बीज कृषि उत्पादन के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते है इनका कृषि उत्पादन वृद्धि में योगदान 20 से 25 प्रतिशत तक होता है।

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