खाद्य श्रृंखला एवं पारिस्थितिक पिरामिड्स की संरचना

खाद्य श्रृंखला एवं पारिस्थितिक पिरामिड्स क्या है?

खाद्य श्रृंखला एवं पारिस्थितिक पिरामिड्स (Food Chain and Ecological Pyramids) पारिस्थितिक तंत्र में खाद्य श्रृंखलाएँ आपस में एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं तथा एक तंत्र का निर्माण करती हैं, जिसे खाद्य जाल कहते हैं। खाद्य जाल में जीवों के पास वैकल्पिक व्यवस्था रहती है। पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह होता है तथा रासायनों का चक्रण (जैवभु रासायनिक चक्र) होता है। पोषक या खाद्य स्तर (Trophic Level) ऊर्जा पिरामिड में एक जीव की स्थिति को दर्शाता है। इसके पहले आप को  पारिस्थितिकी और पारिस्थितिकी तंत्र, जीवमण्डल और पारिस्थितिकी के घटक के बारे में जान लेना चाहिए।

रेमंड लिंदमन (Raymond Lindeman) ने वर्ष 1942 में दशांश (10 प्रतिशत) का नियम दिया था, जिसके अनुसार हर स्तर पर ऊर्जा का | क्षय होता है। 10% नियम का अर्थ है कि एक पारिस्थितिकी तंत्र में जब ऊर्जा खाद्य स्तर से अगले स्तर तक पहुँचती है, तो अगले स्तर तक ऊर्जा | का केवल दस प्रतिशत ही पहँच पाता है। शेष ऊष्मा के रूप में उपयोग हो जाता है।

खाद्य श्रृंखला में विभिन्न पोषक स्तरों के बीच संबंध को चित्र के द्वारा दर्शाने को पिरामिड कहा जाता है। पारिस्थितिक पिरामिड्स की अवधारणा का विकास चार्ल्स एल्टन (Charles Elton) ने किया था। पारिस्थितिक पिरामिड्स मुख्यतः तीन प्रकार के हैं:

जीव संख्या का पिरामिड (Pyramid of Numbers)

यह पारितंत्र के विभिन्न आहार स्तरों पर पाए जाने वाले जीवों की संख्या का तुलनात्मक अध्ययन है। यह मुख्यत: दो प्रकार के हो सकते हैं।

सीधा पारितंत्र (Upright Ecological Pyra-mid): इसमें उत्पादकों की संख्या अधिक होती है, इसका अर्थ है कि जैसे हम पिरामिड के नीचे से ऊपर की ओर जाते हैं, जीवों की संख्या कम होती जाती है। उदाहरण जलीय एवं घासीय मैदान पारितंत्र।

उल्टा या औंधा पारितंत्र (Inverted Ecological Pyramid): वृक्ष पारितंत्र औंधा पारितंत्र का उदाहरण है। वन पारितंत्र उपरोक्त दोनों पारितंत्रों के मध्य आता है।

ऊर्जा का पिरामिड (Pyramid of Energy)

यह सदैव सीधा होता है। इसमें दस प्रतिशत का नियम लागू होता है। हर पोषक तल पर ऊर्जा क्रमशः कम होती जाती है क्योंकि प्रत्येक पोषण तल के जन्तु केवल 10% ऊर्जा ही अगले तल पर दे पाते हैं।

जैवमात्रा का पिरामिड (Pyramid of Biomass)

एक खाद्य श्रंखला के उत्तरोत्तर पोषण स्तर मैं जीवो के संपूर्ण जैव भार के अनुपात को प्रदर्शित करने वाले पिरामिड को जैव मात्रा या जैव भार का पिरामिड कहते हैं एक स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र के  जैव भार के पिरामिड  सदैव सीधे व उध्र्ववर्ती बनते हैं क्योंकि उत्पादकों का जैव भार सबसे अधिक होता है |  जलीय पारिस्थितिकी तंत्र जैसे तालाब जैसे समुद्र में जैव भार का पिरामिड (उध्र्ववर्ती)  उल्टा बनता है क्योंकि सर्वोच्च श्रेणी के उपभोक्ताओं का जैव भार सबसे अधिक होता है | तालाब/जल पारितंत्र के सिवाय सभी सीधे पारितंत्र के उदाहरण हैं।

इकोटोन (Ecotone)

इकोटोन (Ecotone) एक पारिस्थितिकी तंत्र की दूसरे पारिस्थितिकी तंत्र की सीमा को पूर्ण रूप | से चिह्नित नहीं किया जा सकता है। इनका परस्पर मिश्रण हो जाता है। | एक झील में कई पारिस्थितिकी तंत्र हो सकते हैं। इकोटोन दो पारिस्थितिक तंत्रों के मध्य अथवा दो भिन्न समुदाय के मध्य स्थित संक्रमण क्षेत्र है, जिसमें दोनों पारिस्थितिक तंत्रों की विशेषताएं पाई जाती हैं। इकोटोन में जैव-विविधता दोनों ही ओर के समुदाय की तुलना में अधिक होती है। इस परिघटना को ‘एज इफेक्ट’ (Edge Effect) कहते हैं। इसका कारण यह है कि इकोटोन न केवल दोनों ओर से समुदाय के सदस्यों के अनुकूल होते हैं, बल्कि कई ऐसी प्रजातियां इकोटोन में पाई जाती हैं, जो केवल इकोटोन के लिए ही अनुकूलित होती है। घास भूमियां, ज्वारनदमुख व नदी तट आदि भी इकोटोन के उदाहरण हैं। 

बायोम (Biome)

बायोम एक बहुत बड़े पारितंत्र जैसा प्रतीत होता है, जबकि बायोम पृथ्वी की सतह पर बहुत बड़ी पारिस्थितिक क्षेत्र के जिस पर जीव और वनस्पति अपने वातावरण के अनुकूल हल हैं। बायोम मुख्यत: अजैविक कारकों जैसे कि जलवायु, रिलीफ मिट्टी और वनस्पति, आदि से परिभाषित होते हैं। इनको माया में विभाजित किया गया है-मरुस्थलीय बायोम, वनीय बार बायोम, घासीय मैदान के बायोम एवं टुंड्रा क्षेत्र के बायोमा पर जीवन को बनाए रखने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

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