कार्बनिक रसायन (Organic Chemistry)

कार्बनिक रसायन (Organic Chemistry)

यह रसायन विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत कार्बन के यौगिकों का अध्ययन किया जाता है। कार्बनिक यौगिकों के बिना जीवन की संभावना नहीं है। अंतुओं और वनस्पतियों के निर्माण में कार्बनिक यौगिक ही प्रमुख हैं। कार्बनिक यौगिकों के कुछ अति प्रमुख उपयोग निम्न है-
1. हमारा भोजन :- सभी भोज्य पदार्थ प्रायः कार्बनिक यौगिकों से निर्मित हैं जैसे- चावल, आटा, चीनी, प्रोटीन विटामिन आदि सभी कार्बनिक पदार्थ हैं।
2. हमारे दैनिक उपयोग के पदार्थ :- हमारे सूती कपड़े सेलुलोज के बने हैं। नायलोन, टेरीलीन, रेयाॅन आदि के कपड़े संश्लेषित कार्बनिक यौगिकों से निर्मित हैं। पेन, स्याही, जूते आदि कार्बनिक यौगिक ही से बने हैं। साबुन, बेसलीन क्रीम लकड़ी, कोयला, घरेलू गैस, मिट्टी का तेल आदि कार्बनिक यौगिक ही हैं।
3. औषधियाॅ :- निश्चेतक पदार्थ क्लोरोफार्म स्ट्रेप्टोमाइसिन, ऐस्पिरिन, पेनसिलिन आदि कार्बनिक यौगिक ही हैं। कीटाणुनाशक जैसे- डी0डी0 टी, गेमेक्सीन, बी0 एच0 सी0 आदि कार्बनिक यौगिक हैं।
4. यातायात :- पेट्रोल, तेल रबर, टायर आदि कार्बनिक पदार्थ हैं।
5. प्रसाधन तथा विलास सामग्री :- क्रीम, पेन्ट, साबुन, तेल फोटो फिल्म तथा प्लास्टिक के खिलौने आदि कार्बनिक यौगिक हैं।
6. विस्फोटक पदार्थ :- डायनामाइट, नाइट्रोग्लिसिरीन, टी0एन0टी0 आदि कार्बनिक यौगिक हैं।

प्रमुख हाइड्रो कार्बनों के उपयोगः-

एथिलीन अथवा इथेन (C2H4) :- यह मुख्य रूप से प्राकृतिक गैसों, कोल गैस तथा पैट्रोलियम के साथ निकलने वाली गैसों, में पाई जाती है। यह हल्की मीठी गंध वाली गैस है। इस गैस को अधिक सूंघने से मुर्छा आ जाती है। इसका उपयोग प्लास्टिक उद्योग में, मस्टर्ड गैस बनाने में, निश्चेतक के रूप में, हरे फलों को पकाने में तथा उनके संरक्षण में होता है
एसीटिलीन अथवा एथाइन (C2H2) :- यह अत्याधिक अभिक्रियाशील गैस है। आर्सीन तथा फाॅस्फीन मिली होने के कारण इसकी गंध लहसुन जैसी होती है। इसका उपयोग ईधन तथा प्रकाश के रूप में कृत्रिम रबर (निओप्रीन) बनाने में, विषैली गैस ल्यूसाइट बनाने में, जो प्रथम विश्वयुद्ध में प्रयुक्त हुई थी, होता है। इसके अतिरिक्त आॅक्सी-एसटिलीन ज्वाला बनाने में, जो धातुओं के जोड़ने तथा काटने में प्रयुक्त होती है, फलों को पकाने में भी इसका उपयोग होता है।
पेट्रोलियम :- पेट्रोलियम एक विशेष गंध युक्त भूरे काले रंग का गाढ़ा तेल होता है। यह पृथ्वी के भीतर चट्टानों के नीचे पाया जाता है यह एक प्राकृतिक ईधन है। प्राकृतिक रूप में इसे कच्चा तेल या अपरिपक्व तेल भी कहते हैं। पृथ्वी के नीचे पाये जाने के कारण इसे खनिज तेल भी कहते हैं। अपरिष्कृत पेट्रोलियम का इसी रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। अतः इसके निरंतर प्रभाजी आसवन द्वारा औद्योगिक उपयोग के विभिन्न प्रभाज प्राप्त किये जाते हैं। यह प्रक्रिया परिष्करण कहलाती है। प्रभाजी आसवन संप्राप्त प्रभाज निम्न हैं। ऐस्फाल्ट (डामर), पैराफिन मोम, स्नेहक तेल, ईधन तेल, डीजल, केरोसिन (मिट्टी का तेल), पैट्रोलियम गैस।
प्राकृतिक गैस :- यह मुख्यतः मेथेन (C2H4) होती है। (95%) इसमें मेथेन के साथ थोड़ी मात्रा में एथेन और प्रोपेन भी रहती है। प्रकृतिक गैस एक अच्छा ईंधन है। यह धुआॅ रहित ज्वाला के साथ जलती है जिससे प्रदूषण नहीं होता । इसके जलने पर कोई विषैली गैस नहीं बनती है।
द्रवित प्रेट्रोलियम गैस :- यह मेथेन (C2H6) प्रोपेन, (C2H8) तथा ब्यूटेन (C4H6) का मिश्रण है। लेकिन इसका मुख्य अवयव ब्यूटेन तथा आइसो ब्यूटेन है। इसका ऊष्मीय मूल्य काफी उच्च होता है। इसलिए यह एक अच्छा ईधन है, यह धुआॅ रहित ज्वालों के साथ जलती है, तथा जलने पर इससे कोई विषैली गैस उत्पन्न नहीं होती। गैस के सिलिण्डर में गैस रिसाव का पता लगाने के लिए एक तीक्ष्ण गंध वाला पदाथ एथिल मर्केप्टन मिला देते हैं। इसमें हाइड्रोजन सल्फाइड के समान गंध होती है जिसे आसानी से पहचाना जा सकता है। एल0पी0जी0 का प्रयोग सावधानी से करना चाहिए क्योंकि गैस के अचानक रिसने से विस्फोट हो सकता है, क्योंकि एल0पी0जी0 वायु से मिलकर विस्फोटक मिश्रण बनाती है।
कोल गैस :- 54% हाईड्रोजन, 35% मीथेन 11% कार्बन मोनो आॅक्साइड 5% हाइड्रोजन एवं 3% कार्बन डाइ आॅक्साइड आदि गैसों का मिश्रण है। कोल गैस कोयले के भंजक आसवन द्वारा बनाई जाती है। यह वायु के साथविस्फोट मिश्रण बनाती है।
प्रोड्यूसर गैस :- यह मुख्यतः नाइट्रोजन व कार्बन मोनो आॅक्साइड गैसों का मिश्रण है। इसमें 60% नाइट्रोजन, 30% कार्बन मोनो आॅक्साइड व मीथेन गैस होती है। इसका उपयोग ईधन कांच व इस्पात बनाने में किया जाता है।
वाटर गैस :- यह कार्बन मोनो आॅक्साइड (CO) व हाइड्रोजन (H2) गैसों का मिश्रण होती है। इससे बहुत अधिक ऊष्मा निकलती है। इसका प्रयोग अपचायक के रूप में ऐल्कोहल हाइड्रोजन आदि के आद्यौगिक में होता है।
गैसोलीन गैस :- इससे हेक्सेन्स, हेप्टेन्स तथा आॅक्टेन्स होते हैं। इसे पैट्रोल भी कहा जाता है। कार के उपयोग में लाये जाने वाले पैट्रोल की गुणवत्ता को उसके एण्टी नोक गुण द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। पैट्रोल सेम्पुल में एण्टीनाॅक गुणों को उसके आक्टेन नंबर वैल्यू द्वारा ज्ञात किया जाता है। किसी पेट्रोल सेंपल का आॅक्टेन नम्बर जितना अधिक होता है उसका एन्टीनाॅकिंग गुण उतना ही अधिक उपयोगी होगा। आॅक्टेन नंबर का सबसे अधिक मान 100 होता है। आॅक्टेन नंबर बढ़ाने के लिए पेट्रोल में टेट्रा एथइल लैड मिलाया जाता है।
ईधनों के ऊष्मीय मान :- किसी ईधन का ऊष्मीय मान इस कथन का मापक है, कि ईधन कितना उपयोगी है। जिस ईधन का ऊष्मीय मान अधिक होता है वह उतना ही अच्छा और उपयोगी होता है।
ईधन                                        ऊश्मीय मान
लकड़ी                                 17 किलो जूल प्रति ग्राम
कोयला                                25-33 किलो जूल प्रति ग्राम
चारकोल                              33 किलो जूल प्रति ग्राम
गोबर के उपले                      6-8 किलो जूल प्रति ग्राम
कैरोसिन                              48 किलो जूल प्रति ग्राम
ऐल्कोहल                             30 किलो जूल प्रति ग्राम
बायोगैस                               35-40 किलो जूल प्रति ग्राम
मिथेन                                  55 किलो जूल प्रति ग्राम
एल0पी0जी0                        55 किलो जूल प्रति ग्राम
हाइड्रोजन                            150 किो जूल प्रति ग्राम
मेथिल ऐल्कोहल :- यह बहुत विषैला होता है, इसको पीने से व्यक्ति अंधा या पागल हो सकता है, और अधिक पीने से मृत्यु हो जाती है। इसका उपयोग मेथिलित स्पिरिट बनाने में होता है। मेथिल ऐल्कोहल युक्त एथिल ऐल्कोहल मेथिलित या विकृत स्प्रिट कहलाता है। मेथिल ऐल्कोहल और जल का मिश्रण आटोमोबाइल में रेडियेटर के लिए ऐन्टीफ्रीज के रूप में प्रयुक्त किया जाता है।
एथिल ऐल्कोहल या एथेनाॅल :- यह फलों, वनस्पतियों और सुंगधित तेलों में पाया जाता है। यह सभी प्रकार की शराब का मुख्य अवयव है। अतः इसे स्पिरिट आॅफ वाइन भी कहते हैं। 100% एथिल ऐल्कोहल निर्जल एथिल एल्कोहल परिशुद्ध ऐल्कोहल कहलाता है।
95.5% एथिल एल्कोहल और 4.4% जल का मिश्रण परिशोधित स्प्रिट कहलाता है।
पेट्रोल, औद्योगिक ऐल्कोहल परिशोधित स्प्रिट और बेंजीन का मिश्रण पावर ऐल्कोहल कहलाता है। इसका उपयोग मोटर ईधन में होता है।
फार्मिक अम्ल (मेथेनोइक अम्ल) यह लाल चीटियों में तथा मघुमक्खी, बर्रे, बिच्छू आदि डंक में तथा कुछ अन्य जीवों मे पाया जाता है। चींटी, मुधुमक्खी या बर्रे आदि के काटने या टंक कारने पर शरीर में खुजली, जलन व चिड़चिडापन फार्मिक अम्ल के कारण होता है।
प्रमुख विस्फोटक पदार्थ :- विस्फोटक वे पदार्थ हैं जो ताप बढ़ाने या थोड़ी चोट या झटका लगने से अपने विभिन्न अवयवों में प्रचण्ड विस्फोटक के साथ तीव्र अभिक्रिया करके गैसीय उत्पाद बनाते हैं।
ट्राइनाइट्रो टाॅइलूईन (TNT) :- इसका पूरा नाम 2, 4, 6 टाई नाइट्रो टालूईन है। यह बम तथा हथगोलों को भरने में काम आता है।
ट्राइ नाइट्रोग्लिसरीन टाॅइलूईन (TNG) :- यह एक रंगहीन तैलीय द्रव है। यह संद्र सल्फ्युरिक अम्ल सांद्र नाइट्रिक अम्ल की ग्लिसरीन के साथ क्रिया करके बनाया जाता है। इसे नोबल का तेल कहते हैं क्योंकि इसका अविष्कार ऐल्फ्रेड नोबेल ने किया था। यह डायनामाइट बनाने के काम आता है। धुआॅ रहित चूर्ण बनाने में भी इसका उपयोग होता है।
आर0डी0एक्स0 (RDX)- इस विस्फोटक को अमेरिका में साइक्लोनाइट जर्मनी में होक्सान तथा इटली में टी- 4 के नाम से जाना जाता है। इसमें प्लास्टिक पदार्थ जैसे पाॅली ब्यूटाइन, एक्रिलिक अम्ल या पाॅनीयूरेथेन को मिलाकर प्लास्टिक बान्डेड एक्पलोसिव बनाया जाता है। यह एक प्रचंड विस्फोटक है।
डायनामाइट :- इसकी खोज 1867 में ऐल्फ्रेड नोबेल ने की। इसका मुख्य अवयव नाइट्रोग्लिसरीन है। यह चट्टानों व खानों को उड़ाने के काम में आता है।
गन काॅटन :- रूई अथवा लकड़ी के रेशों पर सांद्र नाइट्रिक अम्ल की अभिक्रिया से गन काॅटन अथवा नाइट्रोलोस प्राप्त किया जाता है। इसका उपयोग पहाड़ों को तोड़ने तथा युद्ध में किया जाता है।
पिक्रिक एसिड :- यह TNT से अधिक विस्फोटक होता है। इसका प्रयोग बमों आदि में होता है।
साबुन तथा डिटर्जेंट (अपमार्जक) :- उच्च वसीय अम्लों के सोडियम तथा पोटेशियम लवण साबुन कहलाते हैं। कपड़ा धोने का साबुन घटिया किस्म के तेल या वसा से बनाये जाते हैं, जबकि नहाने के साबुन के लिए उच्च कोटि की वसा का प्रयोग होता है। कपड़ा धोने का साबुन प्रायः कठोर होता है क्योंकि इसे कास्टिक सोडा, से बनाते हैं। नहाने का साबुन मृदु होता है क्योंकि इसे कास्टिक पोटाश से बनाते हैं।
अपमार्जक :- अपमार्जक एक विशेष प्रकार के कार्बनिक पदार्थ हैं जिनमें साबुन की तरह मैल साफ करने का गुण होता है। साबुन का उपयोग केवल मृदु जल में किया जाता है, कठोर जल में नहीं, परंतु इसके विपरीत अपमार्जक मृदु तथा कठोर दोनों प्रकार के जल में उपयोग किये जा सकते हैं। अपमार्जक कठोर जल में उपस्थित कैल्शियम और मैग्नीशियम आयनों के साथ जल में अविलेय लवण नहीं बनाते अर्थात् अवक्षेप नहीं देते हैं। अपमार्जक का जलीय विलयन उदासीन होता है, अतः अपमार्जक बिना किसी हानि के कोमल रेशों से बने वस्त्रों को साफ करने में प्रयुक्त किये जा सकते हैं। साबुन का विलयन जल-अपघटन के कारण क्षारीय होता है, जो कोमल वस्त्रों को धोने के लिए हानिकारक है।
प्लास्टिक :- वह प्रक्रिया जिसमें एक ही प्रकार के एक से अधिक गुण आपस में जुड़कर कोई अधिक अणुभार वाला बड़ा अणु बनाते है, बहुलीकरण कहलाती है। बहुली करण में भाग लेने वाले अणुओं को एकलक और उत्पाद को बहुलक कहते हैं। बहुत से असंतृप्त हाइड्रोकार्बन जैसे- एथिलीन, प्रोपलीन आदि बहुलीकरण की क्रिया के पश्चात् जो उच्च बहुलक बनाते हैं, प्लास्टिक कहते हैं।

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