मौर्य साम्राज्य-चन्द्रगुप्त मौर्य -बिंदुसार

संस्थानक-चन्द्रगुप्त मौर्य

कौटिल्य को भारत का मैकियावली भी कहते हैं। मैकियावली की पुस्तक का नाम The Prince है। यह इटली का था। चन्द्रगुप्त मौर्य का नाम यूनानी लेखकों ने सेन्ड्रोकोट्स के रूप में वर्णित किया है। सेन्ड्रोकोट्स की पहचान चन्द्रगुप्त से करने वाला व्यक्ति विलियम जोन्स था। इस मौर्य साम्राज्य को जानने के स्रोत प्रमुख निम्नलिखित है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र:- कौटिल्य का मूल नाम विष्णु गुप्त था। इसकी उपाधि चाणक्य थी। ’अर्थशास्त्र’ चाणक्य द्वारा राजनीति पर लिखी गयी पहली प्रमाणिक पुस्तक है। अर्थशास्त्र में कुल 15 अधिकरण (15 भाग), 180 प्रकरण (180 उपभाग) एवं 6000 श्लोक हैं। डा0 शाम शास्त्री ने सर्वप्रथम 1909 में इसे प्रकाशित करवाया। अर्थशास्त्र राजनीति पर लिखी गयी सामान्य पुस्तक है। इससे न तो किसी शासक का वर्णन है और न ही पाटिलपुत्र या किसी राज्य का वर्णन है। यह Third person के रूप में लिखी गयी है। इस पुस्तक के प्रमुख तथ्य निम्नलिखित है-

सप्तांग सिद्धान्त:-

कौटिल्य ने राज्य को सात अंगो से निर्मित माना है इसे ही राज्य का सप्तांग सिद्धान्त कहते हैं। ये अंग थे-
  1. स्वामी:- अर्थात राजा।
  2. अमात्य:- यह योग्य अधिकारियों का एक वर्ग था इन्हीं अधिकारियों में से विभिन्न विभागों के अध्यक्षों मंत्रियों आदि की नियुक्ति होती थी। अर्थशास्त्र में लिखा है कि ’’राज्य रूपी रथ का पहिया बिना योग्य अमात्यों के नही चल सकता’’
  3. जनपद:- राज्य क्षेत्र
  4. दुर्ग:- किले
  5. कोष:- धन
  6. दण्ड – सेना
  7. मिल
इन सप्तांग सिद्धान्तों में शत्रु सम्मिलित नही थे।

सामाजिक वर्णन:-

अर्थ शास्त्र में पहली बार शूद्र को भी आर्य कहा गया है और उन्हें भी ब्राह्मण क्षत्रिय एवं वैश्य के साथ सेना में भर्ती होने की छूट प्रदान की गयी। अर्थशास्त्र में दासप्रथा का भी वर्णन है इसमें 9 प्रकार के दासों का उल्लेख है। इनमें से Arhitak (आर्हितक या अहितक) नामक दास अस्थायी दास थे अर्थात इन्हें दासत्व से मुक्ति मिल जानी थी।

गुप्तचर व्यवस्था का वर्णन:-

अर्थशास्त्र पहली पुस्तक है जिसमें गुप्तचर प्रणाली पर विस्तृत उल्लेख मिलता है। गुप्तचरों को गूढ़ पुरुष कहा जाता था ये दो प्रकार के थे।  1. संस्था        2. संचार संस्था नामक गुप्तचर एक ही जगह पर रहते थे जबकि संचार भेष बदलकर इधर-उधर घूमते रहते थे। गुप्तचर विभाग का प्रमुख महा आत्यपर्सप था। भू-राजस्व:- अर्थ शास्त्र में भू-राजस्व की मात्रा के लिए भाग शब्द मिलता है। इस पुस्तक के अनुसार राज्य को भू-राजस्व का 1/6 भाग लेना चाहिए।

जहाजरानी का वर्णन:-

जहाजरानी का सर्वप्रथम उल्लेख अर्थशास्त्र में ही प्राप्त होता है। स्टेबो ने भी जहाजरानी का वर्णन किया है। कौटिल्य के अनुसार जहाजरानी पर राज्य का नियंत्रण होना चाहिए। मेगस्थनीज का इण्डिका:- मेगस्थनीज एक यूनानी राजदूत था जिसे सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा था। यह भारत में कुल पाँच वर्ष (304 ई0पू0 से 299 ई0पू0) तक रहा। इण्डिका एक पुस्तक के रूप में प्राप्त नहीं है बल्कि यह समकालीन यूनानी लेखकों जैसे एरियन, स्टेवो, प्लूटार्क जस्टिन आदि के वर्णनों में प्राप्त है। इण्डिका एक अन्य यूनानी लेखक एरियन की भी पुस्तक मानी जाती है। नोटः-कौटिल्य के वर्णन में न तो राजा का उल्लेख है न पाटलिपुत्र का न नगर प्रशासन का और न ही सैन्य प्रशासन का जबकि इन चारों का उल्लेख इण्डिका में मिलता है। मेगस्थनीज यूनानी था अतः भारत की व्यवस्था को पूर्ण रूप से समझ न सका इसी कारण उसने अपनी पुस्तक में निम्नलिखित भ्रामक विवरण दिये-
  1. भारतीय समाज में सात प्रकार की जातियां थी परन्तु हम जानते हैं कि भारतीय समाज चार जातियों में विभक्त था।
  2. मेगस्थनीज के अनुसार भारत में दास प्रथा विद्यमान नही थी यह भी गलत है कौटिल्य ने स्वयं नौ प्रकार के दासों का वर्णन किया है।
  3. मेगस्थनीज के अनुसार भारत में अकाल नही पड़ते थे यह कथन भी सत्य से परे हैं। चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में ही मगध में अकाल पड़ा था अशोक के अभिलेखों में भी अकाल का वर्णन है।
  4. मेगस्थनीज के अनुसार भारत में लेखन कला का अभाव था परन्तु हम जानते हैं कि यहाँ वेद एवं सूत्र साहित्यों की रचना हुई थी।

रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख:

यह संस्कृत भाषा का प्रथम अभिलेख है जो चपूशैली (गद्य एवं पद्य मिश्रित) में लिखित है इस अभिलेख में चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक दोनों के नामों का एक साथ उल्लेख है। इस अभिलेख के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य ने यहाँ सुदर्शन झील का निर्माण करवाया था। चन्द्रगुप्त के समय में यहाँ का राज्य पाल पुष्यगुप्त वैश्य था। अशोक के समय में सुदर्शन झील के बाँध का पुनर्निमाण कराया गया उसके समय में यहाँ का राज्य पाल यवनराज कुषाण था। विशाखदत्त की मुद्रा राक्षस:- इस पुस्तक में चन्द्रगुप्त मौर्य के लिए वृषल शब्द का उल्लेख किया गया है इस शब्द का अर्थ कुछ विद्वान निम्न वंश से जोड़ते हैं। चंद्रगुप्त मौर्य (321 ई0पू0):- मौर्य राजवंश की स्थापना चंद्रगुप्त मौर्य ने की। चंद्रगुप्त ने नंदवंश के अंतिम राजा घनानंद को अपदस्थ कर राजधानी पाटलिपुत्र पर अधिकार जमाया और 321 ईसा पूर्व में मगध के राज सिंहासन पर बैैठा। चंद्रगुप्त के वंश और जाति के संबंध में विद्वान एकमत नहीं है। कुछ विद्वानों ने ब्राह्मण ग्रंथो, मुद्राराक्षस, विष्णुपुराण आदि के आधार पर चंद्रगुप्त को शूद्र माना है। ब्राह्मण परंपरा को विपरीत बौद्ध ग्रंथों का प्रमाण मौर्यों को क्षत्रिय जाति से संबंधित करता है। जैन ग्रथ भी मौर्यों की शूद्र-उत्पत्ति की ओर इशारा तक नहीं करते। सर्वाधिक मान्य मत भी यही है कि चंद्रगुप्त मौर्य क्षत्रिय थे। चंद्रगुप्त के शत्रुओं के विरूद्ध चाणक्य ने जो चालें चली उनकी विस्तृत कथा मुद्राराक्षस नामक नाटक में मिलती है, जिसकी रचना विशाखादत्त ने नौंवी सदी में की। रुद्रदामन के गिरनार अभिलेख से ज्ञात होता है कि चंद्रगुप्त ने पश्चिम भारत में सुराष्ट्र तक का प्रदेश जीतकर अपने प्रत्यक्ष शासन के अधीन कर लिया था। इस प्रदेश में पुष्यगुप्त चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यपाल था और उसने यहीं पर सुदर्शन झील का निर्माण करवाया था। अशोक के अभिलेख तथा जैन एवं तमिल स्रोतों से ज्ञात होता है कि उत्तरी कर्नाटक तक का क्षेत्र चंद्रगुप्त ने विजित किया था (दक्षिण भारत)। इस प्रकार चंद्रगुप्त ने विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया, जिसमें पूरे बिहार तथा उड़ीसा और बंगाल के बड़े भागों के अतिरिक्त पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भारत तथा दक्कन के क्षेत्र भी सम्मिलित थे। फलतः मौर्यों का शासन केवल तमिलनाडु तथा पूर्वोत्तर भारत के कुछ भागों को छोड़कर सारे भारतीय उपमहादेश पर स्थापित हो गया। प्रमुख तथ्य: चंद्रगुप्त मौर्य
  • बैक्ट्रिया के शासक सेल्यूकस को चंद्रगुप्त ने पराजित कर उसकी पुत्री से विवाह किया तथा दहेज में हेरात, कंधार, मकरान तथा काबुल प्राप्त किया।
  • सेल्यूकस ने अपना राजदूत मेगस्थनीज को चंद्रगुप्त के दरबार में भेजा था। यूनानी लेखकों ने पाटलिपुत्र को पालिब्रोथा के नाम से संबोधित किया है।
  • ’चंद्रगुप्त’ नाम का प्राचीनतम उल्लेख रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में प्राप्त हुआ है।
  • जीवन के अंतिम दिनों में चंद्रगुप्त ने श्रवणबेलगोला में जैन विधि से उपवास पद्धति (संलेखना पद्धति) द्वारा प्राण त्याग दिये।
  • चंद्रगुप्त के समय में भूमि पर राज्य तथा कृषक दोनों का अधिकार था। (प्रबंधकर्ता-सीताध्यक्ष)
  • आय का प्रमुख स्रोत भूमिकर (भाग) था। संभवतः कर ;ज्ंगद्ध उपज का 1/6 होता था।
  • मुद्रा-पंचमार्क या आहत सिक्के।
  • इसी के काल में सर्वप्रथम कला के क्षेत्र में पाषाण का प्रयोग किया गया।
  • चंद्रगुप्त जैन धर्म का अनुयायी था।
  • चंद्रगुप्त का प्रधानमंत्री चाणक्य/कौटिल्य था।
  • इसके शासनकाल के अंत में मगध मे भीषण अकाल पड़ा था।

बिंदुसार:-

  • चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र बिन्दुसार मौर्य साम्राज्य की गद्दी पर बैठा।
  • बिंदुसार के काल में भी चाणक्य प्रधानमंत्री था।
  •  बिंदुसार आजीवक संप्रदाय का अनुयायी था।
  • स्टेबो के अनुसार यूनानी शासक एण्टियोकस ने बिंदुसार के दरबार में डाइमेकस नामक दूत भेजा था। बिंदुसार ने एण्टियोकस से मदिरा, सूखा अंजीर तथा एक दार्शनिक भेजने की मांग की थी, परंतु एण्टियोकस ने मदिरा तथा सूखे अंजीर तो भेजे लेकिन दार्शनिक नहीं भेजे।
  • प्लिनी के अनुसार मिस्र के राजा टालेमी द्वितीय फिलाडेल्फस ने डाइनोसियस को बिंदुसार के दरबार में भेजा था।
  • अमित्रघात अर्थात् ’शत्रुओं का वध करने वाला’ बिंदुसार की उपाधि थी। उसका अन्य नाम भद्रसार तथा सिंहसेन भी था।
  • दिव्यावदान के अनुसार उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला में विद्रोह को खत्म करने के लिए उसने अपने पुत्र अशोक को भेजा था। तारानाथ के अनुसार नेपाल के विद्रोह को भी अशोक ने समाप्त किया।

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