दिल्ली तथा अजमेर के चैहान,चंदेल वंश (बुन्देल खण्ड),परमार वंश,कलचुरिवंश,सेनवंश

दिल्ली तथा अजमेर के चैहान

संस्थापक:- वासुदेव (सातवीं शताब्दी) 

राजधानी– शाकंभरी (अजमेर) एवं दिल्ली
चैहान ने अपना मूल केन्द्र अजमेर व दिल्ली को बनाया लेकिन बाद में उन्होंने अपनी राजधानी दिल्ली में ही स्थानान्तरित कर ली।
अजमेर:– इसका प्रारम्भिक नाम शाकंभरी था। अजयराज नामक शासक ने अजमेर की स्थापना की।
दिल्लीः-दिल्ली का प्राचीनतम नाम योगिनीपुरम मिलता है। शातवी शताब्दी में तोमरों ने (अनंगपाल तोमर) दिल्लिका नामक नगर की स्थापना की। इन्हीं तोमरों के स्थान पर ही चैहान दिल्ली में प्रतिस्थापित हुए। भारत में अपना शासन स्थापित करने के बाद कुतुबद्दीन ऐबक ने अपनी राजधानी लाहौर बनाया लेकिन इल्तुतमिश ने इसे दिल्ली में स्थापित किया। बाद में दिल्ली सुल्तानों की राजधानी बनीं रही। लोदियों के काल में सिकंदर लोदी ने 1506 में एक नये नगर आगरा की स्थापना की । तब यह आगरा ही लोदियों की राजधानी बनी। मुगल शासक बाबर हुमाँयु और अकबर आगरा की ही गद्दी पर बैठे। अपनी गुजरात विजय के बाद अकबर ने फतेहपुर सीकरी की स्थापना कर अपनी राजधानी उसे ही बनाया। जहाँगीर और शाहजहां आगरा की ही गद्दी पर बैठे। शाहजहाँ ने 1638 ई0 में एक नये नगर शाहजहानाबाद (पुरानी दिल्ली) की स्थापना करवाई और अपनी राजधानी वहीं पर स्थानान्तरित कर दिया। औरंगजेब आगरा और दिल्ली दोनों की गद्दी पर बैठा। औरंगजेब के बाद के मुगलशासक दिल्ली की गद्दी पर बैठे। अंग्रेजों ने एक नये नगर कालीकाटा का निर्माण किया और उसे अपना मुख्यालय बनाया जो बाद में उनकी राजधानी बना। 1912 ई0 में लार्ड हार्डिंग के शासन काल में कलकत्ता से राजधानी दिल्ली को स्थानान्तरित कर दी गई। तब से आजतक दिल्ली ही भारत की राजधानी है।
चैहान प्रतिहारों के सामन्त थे। सर्वप्रथम सिंहराज ने अपनी स्वतन्त्रता घोषित की उसके बाद विग्रहराज द्वितीय शासक बना। विग्रहराज के बाद अजयराज गद्दी पर बैठा उसने अजमेर नगर की स्थापना की तथा वहाँ अपनी राजधानी स्थानान्तरित किया। अजयराज के बाद अर्णोराज शासक बना तदोपरान्त विग्रहराज गद्दी पर बैठा।
विग्रहराज चतुर्थ (1153-63):- यह शासक वीसलदेव के नाम से विख्यात है। इसने एक ग्रन्थ हरिकेल नाटक की रचना की। यह नाटक बाद में कुतुबद्दीन ऐबक द्वारा बनवाये गये ’ढाई दिन के झोपड़ा’ के दिवारों पर अंकित है।
इसके दरबार में संस्कृति के प्रसिद्ध विद्वान सोमदेव रहते थे जिन्होंने कथासारत्सागर नामक ग्रन्थ की रचना की इसके अतिरिक्त बीसलदेव की प्रशंसा में एक अन्य ग्रन्थ ललित विग्रहराज की रचना की।
पृथ्वीराज तृतीय (1177-1192):- यह इस वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक था। कथाओं ने इसे ’रायपिथौरा’’ कहा है। इसके दरबार का प्रसिद्ध विद्वान चन्दरबरदाई था उसने पृथ्वीराज रासो नामक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना की यह हिन्दी साहित्य का प्रथम महाकाब्य माना जाता है इसी के दरबार में जयनिक या जमानकभट्ट ने पृथ्वीराज विजय नामक ग्रन्थ की रचना की। जिसमें पृथ्वीराज के चन्देल शासक परमर्दिदेव (परमाल) के विरूद्ध विजय का उल्लेख है। अन्य प्रसिद्ध दरबारी विद्वानों में विद्यापति गौड़, पृथ्वीभट्ट, वागीश्वर एवं जनार्दन विश्वरूप प्रमुख हैं।
विजयें:- 1. तराइन का प्रथमयुद्ध (1191 ई0)ः- इस युद्ध में पृथ्वीराज ने मुहम्मद गोरी को पराजित किया।
2. तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ई0):- इस युद्ध में मुहम्मद गोरी ने पृथ्वी राज को पराजित कर अपनी हार का बदला ले लिया।
3. चन्देल शासक परमाल से युद्ध:- इस युद्ध में पृथ्वीराज ने परमाल को एक रात्रि अभियान में पराजित किया। परमाल की तरफ से अल्हा और ऊदल नामक दो लोक प्रसिद्ध सेनानायकों ने भयंकर युद्ध किया किन्तु वे मारे गये। इस युद्ध का बड़ा ही सजीव वर्णन जगानि ने अपनी पुस्तक पृथ्वीराज विजय में किया है। इसी पुस्तक का भाग आल्हा-खण्ड है जो आज भी गाया जाता है।
तराइन के युद्ध में पराजय के बाद मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज के लड़के गोविन्द को अपनी आधीनता में अजमेर का शासक बनाया। बाद में यह राज दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया।

चंदेल वंश (बुन्देल खण्ड)

संस्थापकः- नन्नुक (831 ई0 में)
राजधानी– खजुराहों
’प्रारम्भिक राजधानी-कालिंजर
बुन्देलखण्ड का प्राचीन नाम जेजाकभुक्ति था। यहाँ के एक शासक जयशक्ति के नाम पर इसका नाम जेजाकभुक्ति पड़ा था।
यशोवर्मन (925-50):- इसका एक अन्य नाम लक्ष्मण वर्मन भी मिलता है। इसने विष्णु मन्दिर का निर्माण करवाया था। इसमे इसने बैकुण्ठ की एक मूर्ति स्थापित करवाई जिसे उसने पाल शासक देवपाल से प्राप्त किया था। इसने एक बड़े जलाशय का निर्माण भी करवाया था।
धंग:- (950-1002 ई0):- खजुराहों के कालिंजर वंश का यह वास्तविक संस्थापक था इसी ने अपनी राजधानी कालिंजर से खजुराहों में स्थानान्तरित की। इसका काल खजुराहों के मन्दिरों के लिए विख्यात है।
खजुराहों के मन्दिर:- खजुराहों में कुल 30 मन्दिर हैं जो आधुनिक मध्य प्रदेश के छत्तरपुर जिले में स्थित है ये मन्दिर शैव धर्म, वैष्णव धर्म और जैन धर्म से सम्बन्धित है। इन मन्दिरों में कन्दरिया का महादेव मन्दिर सबसे विख्यात है। इसके अतिरिक्त चित्रगुप्त स्वामी का मन्दिर जगदम्बिका का मन्दिर विश्वनाथ मन्दिर आदि भी प्रसिद्ध है जैन मन्दिरों में पाश्र्वनाथ मन्दिर सबसे प्रसिद्ध है।
एक कथा के अनुसार 1002 ई0 में इसने संगम में जल समाधि ले ली।
गंडदेव (1002-1019):- यह शासक 1008 ई0 में महमूद गजनवी के विरूद्ध आनंदपाल द्वारा बनाये गये संघ में शामिल था। इसने अपने लड़के विद्याधर को राज्यपाल को दण्डित करने के लिए भेजा था। राज्यपाल की हत्या करने के बाद विद्याधर ने उसके लड़के त्रिलोचनपाल को प्रति घर शासक बनाया था।
विद्याधर (1019-29):- यह चंदेल शासकों में सर्वाधिक शक्शिाली शासक था तत्कालीन मुस्लिम लेखकों ने इसकी बहुत प्रशंसा की है इसी ने प्रतिहार शासक राज्यपाल को दण्डित किया था। जब महमूद गजनवी ने 1019-20 में इसके राज्य पर आक्रमण किया तो इसने अपनी सेना को पीछे कर लिया और जब 1022 में पुनः आक्रमण किया तो उसके साथ एक शान्ति सन्धि कर ली।
कीर्तिवर्मन (1060-1100):– इनके दरबार में कृष्ण मिश्र नामक प्रसिद्ध विद्वान थे जिन्होंने संस्कृत में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक प्रबोध चन्द्रोदय की रचना की।
मदनवर्मन (1129-63)
परमर्दिदेव या परमल (1165-1202):- यह इस वंश का अन्तिम महान शासक था इसी के काल में अल्हा और ऊदल नामक दो महान सेनानायक थे। चैहान शासक पृथ्वीराज तृतीय ने इसे एक रात्रि अभियान में पराजित कर दिया था। अन्तिम रूप से कुतुबद्दीन ऐबक ने परमर्दिदेव को पराजित कर कलिंजर पर अधिकार कर लिया और बाद में यह राज्य दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया।

परमार वंश

संस्थापक:-उपेन्द्र अथवा कृष्णराज दशवीं शताब्दी के प्रारम्भ में।
राजधानी:- धारा, परन्तु प्रारम्भिक राजधानी उज्जैन।
परमार वंश का स्वतंन्त्र एवं प्रथम प्रतापी शासक सीयक अथवा श्री हर्ष था। इसी के बाद वाकपति मुंज ने कल्याणी के चालुक्य शासक तैल द्वितीय को छः बार पराजित किया परन्तु शातवीं बार स्वयं पकड़ लिया गया और उसकी हत्या कर दी गई। इसकी राजसभा में निम्नलिखित प्रमुख विद्वान थे।

  1. पद्मगुप्तः-इनकी प्रसिद्ध रचना नवसहशांक चरित है। नवसहशांक चरित का नायक मुंज का छोटा भाई सिन्धुराज था।
  2. धनंजय:- इनकी प्रसिद्ध रचना दशरूपक है।

सिन्धुराज (995-1000):- यह वाकपति मुंज का छोटा भाई था इसकी उपाधि शाहशांक थी यह नवशहसांक चरित नामक पुस्तक का नायक भी था।
भोज (1000-1055):- यह परमार वंश का महान शासक था। इसने धारा नामक नगर की स्थापना की और अपनी राजधानी उज्जैन से वहीं ले गया। इसकी उपाधि कविराज की थी। इसके बारे में जानकारी इसकी उददयपुर प्रशस्ति से मिलती है। इसके काल की प्रमुख घटनायें निम्नलिखित हैं

  1. युद्ध:- भोज ने कल्याणी के चालुक्य शासक तैल द्वितीय को पराजित कर उसकी हत्या कर दी परन्तु यह चन्देल शासक विद्याधर से पराजित हो गया। अन्हिलवाड़ या शोलंकी वंश चालुक्य शासक भीम प्रथम एवं कल्चुरी शासक कर्ण प्रथम ने एक संघ बनाकर इसके राज्य पर दोनों तरफ से आक्रमण किया और धारा नगरी को लूट लिया। इसी के बाद भोज की मृत्यु हो गई।
  2. सांस्कृति उपलब्धि:- भोज ने भोजसर नामक तालाब बनवाया तथा भोजपुर नामक नगर बसाया उसके अनेक निर्माण कार्यों का उल्लेख उदयपुर प्रशस्ति में है। इसमें कई मन्दिरों के निर्माण का उल्लेख भी है जैसे-केदारेश्वर, रामेश्वर, सोमनाथ और सुंडार।
  3. सोमनाथ मंदिर:- खम्भात की खाड़ी में यह मन्दिर स्थित था जब अन्हिलवाड़ा का शासक भीम प्रथम था तभी 1025-26 ई0 में महमूद गजनवी ने सोमनाथ पर आक्रमण किया और इस मन्दिर को नष्ट कर दिया इसके आक्रमण के तुरन्त बाद भोज ने इस मन्दिर का पुनः निर्माण करवाया बाद में भीम प्रथम ने भी इस मन्दिर का निर्माण करवाया। शोलंकी शासक कुमार पाल प्रथम ने भी इस मन्दिर का पुनर्निमाण करवाया था।
  4. विद्याप्रेम:- भोज स्वयं विद्वान था उसने ’कविराज’ की उपाधि भी धारण की कहा जाता है कि प्रत्येक श्लोक पर वह एक लाख स्वर्ण मुद्रायें दान में देता था। उसकी मृत्यु पर यह अनुश्रुति चल पड़ी थी कि विद्या और विद्वान दोनों निरासित हो गये एवं धारा निराधार हो गई। आइने अकबरी के अनुसार भोज के दरबार में करीब 500 विद्वान थे इसमें नौ विद्वानों का नाम अत्यन्त प्रसिद्ध था। जिनमें भास्कर भट्ट, दामोदर मिश्र, एवं धनपाल अत्यन्त प्रसिद्ध थे।

भोज के ग्रन्थ:- भोज को कई पुस्तकों का लेखक भी माना जाता है ये निम्नलिखित हैं –
1. समरांगण सूत्रधार             2. सरस्वती कठाभरण
3.सिद्धान्त-संग्रह                   4. राजमर्तण्ड
5. योग सूत्र वृत्ति                    6. विद्या विनोद
7. युक्त कल्पतरू                 8. चारू चर्चा
9. आदित्य प्रताप सिद्धान्त     10. आयुर्वेद
11. श्रृंगार प्रकाश                  12. प्राकृत न्याकरण
13. कूर्म-शतक                    14. श्रृंगा-मंजरी
15. भोज चंपू                       16. कृत्य कल्पतरू
17. तत्व प्रकाश                   18. शब्दानुसासन
19. राज मृगांक
अलाउद्दीन खिलजी ने 1305 ई0 में दिल्ली सल्तनत में मिला लिया।

कलचुरिवंश

संस्थापक:-कोकल्लप्रथम (845 ई0)
राजधानी:- त्रिपुरी (आ0 जबलपुर)
यहाँ पर पहले चेदि वंश या जिसका प्राचीन नाम डाहलमंडल था। वर्तमान के कल्चुरी प्रतिहारों के सांमत माने जाते हैं। इस वंश का प्रथम प्रतापी शासक युवराज प्रथम अथवा केयूर वर्ष था।
युवराज प्रथम अथवा केयूर वर्ष:- इसी शासक के शासन काल में प्रसिद्ध संस्कृति विद्वान राजशेखर प्रतिहार शासक महेन्द्रपाल का राजदरबार छोड़कर केयूर वर्ष के यहाँ आ गये यही रहते हुए उसने अपनी दोनों प्रसिद्ध पुस्तकें काब्यमीमांसा तथा भिद्दशालभंजिका की रचना की। भिद्दशाल मंजिका में उसने केयूर वर्ष को ’’उज्जैनी भुजंग’’ कहा है। केयूर वर्ष ने उज्जैनी को अपने अधीन कर लिया था।
लक्ष्मण राज:- लक्ष्मण राज ने अपने उड़ीसा अभियान के दौरान वहाँ के शासक से सोने एवं मणियों से निर्मित कालियानाग को छीन लिया।
गांगेयदेव विक्रमादित्य (1019-1040 ई0)- यह कल्चुरि वंश का प्रतापी शासक था इसने भोज परमार एवं राजेन्द्र चोल के साथ एक संध बनाकर अन्हिलवाड़ के चालुक्य शासक जयसिंह पर आक्रमण किया परन्तु सफलता न मिली। कहा जाता है कि इसने उड़ीसा, काशी तथा प्रयाग को जीता। प्रयाग में ही वट वृक्ष के नीचे निवास करते हुए इसने प्राण त्याग दिये।
कर्णदेव (1041-70):-
उपाधि:- त्रिकलिंगाधिपति,
यह कल्चुरि वंश का सर्वाधिक प्रतापी शासक था। इसने काशी के प्रसिद्ध विश्वनाथ मन्दिर का निर्माण करवाया तथा त्रिपुरी के निकट एक नये नगर पर्णवती का निर्माण किया और अपनी राजधानी त्रिपुरी से पर्णवती में ही स्थानान्तरित की।
इस वंश का अन्तिम शासक विजयसिंह था जिसको तेरहवीं शताब्दी में चंदेल शासक त्रयलोक्य वर्मन ने पराजित कर त्रिपुरी को अपने राज्य में मिला लिया।
नोट:- कल्चुरि शासक शैव धर्म के उपासक थे।

सेनवंश

संस्थापक:-सामन्त सेन
स्थानः- राढ
धर्म-शैव एवं वैष्णव
जाति:- ब्रहम-क्षत्र
सामान्य राजधानी:– लखनौती
सामन्त सेन के बाद विजयसेन शासक बना परन्तु इस वंश का पहला प्रमुख शासक बल्लालसेन था।
बल्लाल सेन (1158-78):- बंगाल से पाल वंश की सत्ता को पूर्णतः समाप्त करने का श्रेय इसे ही दिया जाता है। इसने सम्पूर्ण बंगाल तथा बिहार पर अधिकार कर लिया और पाल शासकों द्वारा धारण की जाने वाली ’गौड़ेश्वर’ की उपाधि स्वयं धारण की। बल्लालसेन ने स्मृतियों पर एक प्रसिद्ध ग्रन्थ ’’दानसागर’’ की रचना की। एक अन्य ग्रन्थ जो खगोल विज्ञान पर आधारित थी ’’अद्भुद्सागर’’ की रचना भी प्रारम्भ की। परन्तु इसे पूर्ण न कर सका। इसका आचार्य अनिरूद्ध अपने युग का प्रकाण्ड विद्वान था। यह शैव मतानुयायी था।
लक्ष्मणसेन (1178-1205):- सेनवंश का यह सबसे विख्यात शासक था। तािा 60 वर्ष की अवस्था में गद्दी पर बैठा। इसने गहड़वाल शासक जयचन्द के विरूद्ध विजय भी प्राप्त की थी। लक्ष्मणसेन ने पुरी काशी तथा प्रयाग में कई विजय स्तम्भ भी स्थापित किये।
लक्ष्मणसेन ने अपने पिता द्वारा प्रारम्भ किये गये ग्रन्थ अद्भुत सागर (खगोल विज्ञान पर आधारित) को पूरा किया। इसके दरबार में कई प्रसिद्ध विद्वान निवास करते थे। ये निम्नलिखित थे।
1. जयदेव:- इनकी प्रसिद्ध रचना गीत गोविन्द है जिसमें विष्णु के 39 अवतारों का वर्णन है। अमर कोष में भी विष्णु के 39 अवतारों का उल्लेख है।
2. धीयीः– ये पवनदूत के रचयिता थे।
3. हलायुध:- ब्राह्मण सर्वस्य के रचयिता।
4. श्रीधरदास:- सद्धिुक्ति करणामृत।
लक्ष्मण सेन ने परमभागवत की उपाधि धारण की तथा अपने पूर्वजों के शैव मत के विपरीत स्वयं वैष्णव धर्म ग्रहण किया। इसके लेखों का प्रारम्भ नारायण की स्तुति से होता है। इसे बंगाल में एक नये संम्वत् के प्रचलन का श्रेय दिया जाता है। 1203 ई0 में बख्तियार खिलजी ने आक्रमण कर नालन्दा एवं विक्रमशिला विश्व विद्यालय को नष्ट कर दिया।

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