मुगल साम्राज्य-बाबर,हुमायूँ

मुगल साम्राज्य

संस्थापक-बाबर
मुगल शब्द ग्रीक शब्द डवदह से बना है जिसका अर्थ है बहादुर, मुगल शासक पादशाह की उपाधि धारण करते थे। पाद का अर्थ है मूल और शाह का अर्थ है स्वामी अर्थात ऐसा शक्तिशाली राजा अथवा स्वामी जिसे अन्य कोई अपदस्थ नही कर सकता। मुगल राज्य का संस्थापक यद्यपि बाबर माना जाता है परन्तु इसका वास्तविक संस्थापक वस्तुतः अकबर था।

मुगलों का राजनीतिक इतिहास 

बाबर (1526-1530)

जन्म:-14 फरवरी 1483 फरगना (अफगानिस्तान में) पिता की ओर से तैमूर का पाँचवा वंशज, माता की ओर से चंगेज मंगोल का चैदहवां वंशज,
परिवार:-चगताई तुर्क, परन्तु बाबर अपने को मंगोल ही मानता था। उसने अपनी आत्मकथा बाबर नामा में लिखा है चूंकि वह माँ के ज्यादा करीब था इसीलिए उसे मंगोल के वंश से जोड़ा जाना चाहिए। अपने पिता की मृत्यु के बाद 11 वर्ष की आयु में वह फरगना का शासक बना उसके बाद समरकन्द और काबुल पर अधिकार कर लिया। परन्तु अफगानिस्तान में वह अपने साम्राज्य को स्थायी न रख सका अतः उसने भारत पर आक्रमण करने का निश्चय किया।
भारत का आक्रमण:– बाबर ने भारत पर कुल पाँच आक्रमण किये इसका पांचवा आक्रमण पानीपत के युद्ध में परिवर्तित हो गया इन आक्रमणों का मूल उद्देश्य धन की प्राप्ति था।
प्रथम आक्रमण (1519):- उत्तर पश्चिम में बाजौर और भेरा के दुर्ग पर।
द्वितीय आक्रमण (1519)-पेशावर पर
तृतीय आक्रमण (1520)-बाजौर और भेरा
चतुर्थ आक्रमण (1524)-लाहौर पर
अपने चैथे अभियान के समय इसे पंजाब के सरदार दौलत खाँ लोदी का नियन्त्रण मिला। इसके अतिरिक्त इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खाँ और राणा संागा का भी उसे निमन्त्रण प्राप्त हुआ। फलस्वरूप वह अपने पांचवे अभियान के दौरान वह दिल्ली तक चढ़ आया इस प्रकार पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ।
पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रैल 1526) बाबर एवं इब्राहिम लोदी के बीच
बाबर ने इस युद्ध में तुलगमा युद्ध नीति एवं तोपखाने का प्रयोग किया उसके दो प्रसिद्ध तोपची उस्ताद अली और मुस्तफा थे। बाबर ने अपने विजय का श्रेय अपने दोनों तोपचियों को दिया अपनी विजय के उपलब्ध में उसने काबूल निवासियों को दिया। अपनी विजय के उपलब्ध में उसने काबूल निवासियों को एक-एक चाँदी के सिक्के उपहार में दिये इसी उदारता के कारण उसे कलन्दर की उपाधि दी गई।
खानवा का युद्ध (17 मार्च 1527) बाबर एवं मेवाड़ के राणा सांगा के बीच
राणा सांगा की सेना इब्राहिम लोदी से अधिक शक्तिशाली थी। बाबर के सैनिक राणा सांगा की सेना देखकर भयभीत हो गये। सैनिकों के उत्साह को बढ़ाने के लिए उसने शराब पीने और बेंचने पर प्रतिबन्ध लगा दिया। मुसलमानों से तमगा कर न लेने की घोषणा की तथा जेहाद का नारा दिया। युद्ध में जीतने के बाद उसने गाजी की उपाधि धारण की। राणा सांगा के सामन्तों ने ही उसे जहर दे दिया। भारत में मुगल प्रभु सत्ता की स्थापना खानवा के युद्ध से ही मानी जाती है।
चन्देरी का युद्ध (29 जनवरी 1528):- इस युद्ध में बाबर ने चन्देरी के सुबेदार मेदिनीराय को पराजित किया।
घाघरा का युद्ध (6 मई 1529):- इस युद्ध में बाबर ने अफगान प्रमुख महमूद लोदी को पराजित किया।
बाबर आगरा में बीमार पड़ा तथा 27 दिसम्बर 1530 ई0 को आगरा में ही उसकी मृत्यु हो गई उसके शव को आगरा के आराम बाग में रखा गया जिसे बाद में ले जाकर काबुल में दफना दिया गया।
बाबर का अन्य उपलब्धियां:- बाबर संस्कृत लैटिन, फारसी, तुर्की, भाषाओं का ज्ञाता था। उसने अपनी आत्मकथा, बाबर नामा चगुताई तुर्क में लिखी, इस पुस्तक का सर्वप्रथम फारसी में अनुवाद अब्दुल रहीम खान खाना ने किया। इसका सर्वप्रथम अंग्रेजी में अनुवाद 1826 ई0 में लीडेन एवं एर्सकिन ने किया। इसका पुनः अंग्रेजी में अनुवाद फारसी भाषा से 1905 मिसेज बेवरीज ने किया।
बाबर को ’मुबइयान’ नामक पद्य शैली का भी जन्मदाता माना जाता है।

हुमायूँ (1530-56)

माँ का नाम:- माहिम बेगम
जन्म:- काबुल में
बाबर के चार पुत्र थे हुमायूँ, कामरान, अस्करी एवं हिन्दाल। हुमायूँ ने कामरान को काबुल कान्धार एवं पंजाब की सुबेदारी की। अस्करी को सम्हल की एवं हिन्दाल को अलवर की सुबेदारी प्रदान की।
हुमायूँ की विजयें
1. कालिंजर अभियान:-1531 यहाँ के शासक प्रताप रुद्र देव ने हुमायूँ से सन्धि कर ली।
2. दोराहा का युद्ध (1532):- लखनऊ के पास सई नदी के किनारे हुआ और महमूद लोदी के बीच, महमूद लोदी पराजित हुआ।
3. चुनार का युद्ध (1532):- चुनार शेरखाँ के कब्जे में था। हुमायूँ ने शेरखाँ को पराजित किया अन्ततः दोनों के बीच एक समझौता हो गया। शेर खाँ ने अपने पुत्र कुतुब खाँ को हुमायूँ के पास रखना स्वीकार कर लिया परन्तु शेरखाँ की शक्ति को न कुचलना हुमायूँ की बहुत बड़ी भूल थी। अपनी इस विजय की खुशी में हुमायूँ ने 1533 ई0 में दिल्ली में दीन पनाह नामक नगर बसाया और अपनी राजधानी वहीं स्थानान्तरित कर ली।
गुजरात से युद्ध (1535-1536):- इस समय गुजरात का शासक बहादुर शाह था। उसने मालवा को अपने अधिकार में कर लिया तथा 1534 ई0 में चित्तौड़ के शासक विक्रमादित्य पर अभियान किया। एक क्विंदन्ती के अनुसार विक्रमादित्य की माता कर्णवती ने हुमायूँ के पास अपने राज्य की सुरक्षा के लिए राखी भेजा। बहादुर शाह के पास टर्की का एक कुशल तोपची रुमी खाँ की सेवाएं थी। बहादुर शाह और हुमायूँ के बीच के युद्ध में बहादुर शाह पराजित हुआ और भागकर माण्डू चला गया। बाद में बहादुर शाह की मृत्यु समुद्र में डूबने से हो गई।
शेरखाँ से युद्ध
1. चैसा का युद्ध (26 जून 1539):- गंगा नदी के तट पर चैसा नामक स्थान पर हुमायूँ और शेरशाह के बीच युद्ध हुआ। निजाम नामक भिश्ती की सहायता से किसी तरह हुमायूँ की जान बच पाई शेरखाँ ने अपनी इस विजय के उपलक्ष्य में शेर शाह की उपाधि धारण की।
2. बिलग्राम का युद्ध, अथवा कन्नौज या गंगा का युद्ध (17 मई 1540):- युद्ध में हुमायूँ शेरशाह से अन्तिम रूप से पराजित हो गया। शेरशाह ने आगरा एवं दिल्ली पर कब्जा कर लिया। हुमायूँ भागकर सिन्ध पहुँचा जहाँ वह 15 वर्षों तक रहा। यहीं पर उसने हमीदन बेगम से निकाह किया जिससे अकबर उत्पन्न हुआ। सिन्ध से हुमायूँ काबुल चला गया और उसे अपनी अस्थायी राजधानी बनाया।
हुमायूँ द्वारा पुनः गद्दी की प्राप्ति:- हुमायूँ ने 1555 ई0 में लाहौर पर कब्जा कर लिया उसके बाद अफगानों से उसका मच्छीवारा का प्रसिद्ध युद्ध हुआ।
मच्छीवारा का युद्ध (15 मई 1555 ई0):- यह स्थान सतलज नदी के किनारे स्थित था, हुमायूँ एवं अफगान सरदार नसीब खाँ के बीच युद्ध हुआ। सम्पूर्ण पंजाब मुगलों के अधीन आ गया।
सरहिन्द का युद्ध (22 जून 1555):- अफगान सेनापति सुल्तान सिकन्दर सूर एवं मुगल सेनापति बैरम खाँ के बीच युद्ध। मुगलों को विजय प्राप्ति हुई। इस प्रकार 23 जुलाई 1555 ई0 को हुमायूँ दिल्ली की गद्दी पर पुनः आसीन हुआ। जनवरी 1556 ई0 में दीनपनाह भवन में अपने पुस्तकालय की सीढि़यों से गिरने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। लेनपूल ने लिखा है ’’वैसे हुमायूँ का अर्थ है भाग्यवान परन्तु वह जिन्दगी भर लड़खड़ाता रहा और लड़खड़ाते ही उसकी मृत्यु हो गई’’
हुमायूँ की असफलता के कारण:- हुमायूँ की असफलता का मूल कारण उसकी चारित्रिक दुर्बलता थी हलांकि प्रसिद्ध इतिहासकार डाॅ0 सतीस चन्द्र अफगानों की शक्ति का सही आकलन न कर पाना उसके पतन का प्रमुख कारण मानते है।
अन्य उपलब्धियां

  1. हुमायूँ ज्योतिष में बहुत विश्वास करता था इसीलिए उसने सप्ताह के सातों दिन सात रंग के कपड़े पहनने के नियम बनाये-जैसे-शनिवार को काला, रविवार को पीला एवं सोमवार को सफेद।
  2. हुमायूँ समकालीन सूफीसन्त शेख मुहम्मद गौस (सत्तारी सिलसिला का शिष्य था) यह उनके बड़े भाई शेख बहलोल का भी शिष्य था।
  3. हुमायूँ को ही भारत में चित्रकला की शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता है। इसने अपनी अस्थायी राजधानी काबुल में फारस के दो चित्रकारों मीर सैय्यद अली एवं ख्वाजा अब्दुल समद को आमन्त्रित किया बाद में इन्हें अपने साथ भारत ले आया।
  4. फारसी में इसका काब्य संग्रह दीवान नाम से जाना जाता है।

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